करामात

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जब सितारों के बिना
मिली एक कांपती रात !
कर दिया जर्ड जिसने
था बिना बर्फ का हिमपात !!
ना निशान ना सूजन
ना जखम कैसा था आघात !!!

लौ बिना मोमबत्ती को
हमने पिघलते देखा है
आग बिना एक जंगल
को हमने जलते देखा है
बनते बिघरते फैलते सिकुर्डते
वक़त की देखी ऐसे करामात

जब सितारों के बिना 
मिली एक कांपती रात !
कर दिया जर्ड जिसने 
था बिना बर्फ का हिमपात !!
ना निशान ना सूजन 
ना जखम कैसा था आघात !!!

बिना पत्तों के पतझरी वृक्षों
को हरियाली देते देखा है
इस मिटटी के सज्जन को
भद्दी गाली देते देखा है
कैसा है मेरा देश
जहाँ फैले सिर्फ एक धरम एक जात

जब सितारों के बिना 
मिली एक कांपती रात !
कर दिया जर्ड जिसने 
था बिना बर्फ का हिमपात !!
ना निशान ना सूजन 
ना जखम कैसा था आघात !!!

उल्लुओं को नसीहतें देने का शगल
हम उनसे निभाते रहे
अपने लिए कांटे और उनकी
राहों को  फूलों से सजाते रहे
अब तो इन्तजार है मेरे खुदा का
जो करेगा कभी कुछ करामात

जब सितारों के बिना
मिली एक कांपती रात !
कर दिया जर्ड जिसने
था बिना बर्फ का हिमपात !!
ना निशान ना सूजन
ना जखम कैसा था आघात !!! ~मोहन अलोक

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