तेरी खुदाई

जब जड़ से उखाड़े कोई

पते डूंड ले नया  आशियान

अंजान गुमराह में भी

मंज़िल ले जाए हर  कारवाँ

वक़त के घाव हरदम

वक़त ही करे आसान

तो ऐ खुदा तेरी खुदाई

से क्यूँ डरे यह इंसान – मोहन आलोक

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