फौजी हैं

A poem dedicated to our soldiers

फौजी हैं फिर भी
सब किराये का पहरेदार कहते हैं
चीनी और पकिस्तानी द्रिन्दो
की गोली और पत्थर सहते हैं
भारत के टुकडे की
सोच वालों में खोफ. बन रहते हैं
जब गलियों के चौकीदार सो रहे थे
कुछ मजहबी लोग आतंकी बो रहे थे
हम हमेशा
जजबे देश भक्ती में रहते थे
फौजी हैं फिर भी
सब किराये का पहरेदार कहते हैं
चीनी और पकिस्तानी द्रिन्दो
की गोली और पत्थर सहते हैं
भारत के टुकडे की
सोच वालों में खोफ. बन रहते हैं
अब भी है वकत मेरी कीमत जानो
दगा मत दो फौजी की नसीहत मानो
शहीदो की कुर्बानी से ही
तुम्हारी खुशहाली के दरिया बहते हैं
फौजी हैं फिर भी
सब किराये का पहरेदार कहते हैं
चीनी और पकिस्तानी द्रिन्दो
की गोली और पत्थर सहते हैं
भारत के टुकडे की
सोच वालों में खोफ. बन रहते हैं –
मोहन आलोक