मुस्कराती है जब भी यह हसीन कलियों की बगिया मैंने खुद को अतीत में लेजा कर तुम्हे महसूस किया दर्द दे गया तुम्हारा हाथ झटक कर जाना सपनों में आ कर तुम्हारा बार बार रुलाना जलता रहा मेरे मन में तुम्हारे याद का दिया मुस्कराती है जब भी यह हसीन कलियों की बगिया मैंने खुद को अतीत में लेजा कर तुम्हे महसूस किया
बांध टूटा, रेल पटरी टूटी, जल प्रवाह छूटा, दुष्ट समाज की पहचान यहीं ! बिजली टूट पड़ी कुछ परिवारों पे हत्या बलत्कार रेल दुर्घटना भरे अख़बारों से माला के मनके माताएं रोती रोती फेर रही यहीं पर कहीं, गरजे भोले नाथ पिघली बर्फ कहीं !! बांध टूटा, रेल पटरी टूटी, जल प्रवाह छूटा, दुष्ट समाज की पहचान यहीं ! बांध टूटा, रेल पटरी टूटी, जल प्रवाह छूटा, दुष्ट समाज की पहचान यहीं ! असुर नाच से मची हर जगह हाहाकार माँ सरस्वती का किया इन्होने तिरस्कार पशु और अपराधी मिले साथ यहीं कहीं बांध टूटा, रेल पटरी टूटी, जल प्रवाह छूटा, दुष्ट समाज की पहचान यहीं ! गरजे भोले नाथ पिघली बर्फ कहीं !! अच्छे दिन की आस से अच्छाई बिखर गयी जब काले धन से कुछ की जिंदगी निखर गयी आम आदमी ढूंढ रहा खोयी जिंदगी यहीं कहीं बांध टूटा, रेल पटरी टूटी, जल प्रवाह छूटा, दुष्ट समाज की पहचान यहीं ! गरजे भोले नाथ पिघली बर्फ कहीं !! ~मोहन अलोक