शांत मन
शब्दों की वाणी कर दे प्रसन
समुद्र सा था वो शांत मन
कमल से जिसके दो नयन
मुख मंडल था इक उपवन
तूफानों कुछ वक़्त सब्र करो
मेरी नाव में कुछ मुसाफिर हैं
उनकी हिफाज़त ही
अब मेरा वतन
शब्दों की वाणी कर दे प्रसन
समुद्र सा था वो शांत मन
कमल से जिसके दो नयन
मुख मंडल था इक उपवन
क्रोध कर क्यों डालूँ
उन पर संकट
मानता हूँ परिस्थिति है
अब विकट
लेकिन बादळ बन चुके
काले बदन
शब्दों की वाणी कर दे प्रसन
समुद्र सा था वो शांत मन
कमल से जिसके दो नयन
मुख मंडल था इक उपवन
मेरा वेग किनारो को ना तोड़ दे
प्रलय अब धरती समुद्रर
जोड़ दे
दुर्भर. ना कर दे
हर साँस हर क्षण
शब्दों की वाणी कर दे प्रसन
समुद्र सा था वो शांत मन
कमल से जिसके दो नयन
मुख मंडल था इक उपवन
~मोहन अलोक