शोर मचा मेरे शब्द -II

 

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शोर मचा मेरे शब्द

आज मैं अकेला हूँ !

शोर मचा

नदी की धारा    

आज मैं अकेला हूँ !

 

शब्द बने जब नसीहत

हक़ीक़त से अनजान

मूर्खता की कसोटी पर

पहुंचे ऐसा इंसान

झूट फरेब ऐसे लोगों का झेला हूँ

शोर मचा मेरे शब्द

आज मैं अकेला हूँ !

शोर मचा

नदी की धारा    

आज मैं अकेला हूँ !

 

काश हर चुगलखोर

जीवन अपना संवारे

प्रभु का पैगम्बर बन

व्यर्थ शब्द न संवारे

शमशान बनती

नगरियों में

शब्दों से ही खेला हूँ

शोर मचा मेरे शब्द

आज मैं अकेला हूँ !

शोर मचा

नदी की धारा    

आज मैं अकेला हूँ !

 

जिस जमीन को तू

शमशान बताये

दूसरों को नासमझ

और खुद को कवि बताये

उस जमीन ने भी

अहसान हमारा कबूला है

शोर मचा मेरे शब्द

आज मैं अकेला हूँ !

शोर मचा

नदी की धारा    

आज मैं अकेला हूँ ! ~ मोहन अलोक  

 

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