निर्मल विचार धारा

 

ganga

 

 

 

हर पड़ाव जिसका

मंदिर घाट ने निखारा !

गंगा हूँ  मैं एक

निर्मल विचार धारा !!

 ganga 1

 

 

जब  गोमुख से निकली तो

शिव की अलका ने पाला

लेकिन जब   मिला

किसी मोड़ पर

नफरत का गन्दा नाला

किसी भगत ने मुझे

 तब तब संवारा

 

temple

 

 

 

 

हर पड़ाव जिसका

मंदिर घाट ने निखारा !

गंगा हूँ  मैं एक

निर्मल विचार धारा !!

 गंगा जल ने दी किसी

 आखिरी साँस को मुस्कान

शीतल जल ने मिटाई

किसी  राही की थकान

सदियों की दास्ताँ कहे

मेरा हर किनारा

हर पड़ाव जिसका

मंदिर घाट ने निखारा !

गंगा हूँ  मैं एक

निर्मल विचार धारा !!

 मेरे  आगोश में समाया

 किसी का वर्तमान

मंजिल पहुँच गया

हर भटका कारवां

आखरी सांसो में

हर गंगा पुत्र ने

मुझे पुकारा

हर पड़ाव जिसका

मंदिर घाट ने निखारा !

गंगा सी मैं

निर्मल विचार धारा ~ मोहन अलोक

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