हर्ष

  1. url

पर न अपनी भावना को
हर्ष इन अनुभवों को !
शब्द का परिधान दे कर
व्यक्त कर पाता कभी हूँ !!

कोनसा वह दृश्य ऐसा
जो न हर्षाता मुझे है !
कोनसा संगीत ऐसा
जो न करता मगन मन को !!

शक्ति यदि वाणी में होती
तो जगत  पीड़ा  भगाता !
काव्य की धारा बन कर
मोद उर का मै बहाता !!

मधुरतम इन अनुभवों को
चाहता हूँ व्यक्त करना !
विश्व  का सोंद्रय सारा
इन  पदों में पुनह भरना !!

विहग- गण के मधुर कलरव
जो सुधा धारा बहाते !
ह्रदय मेरे में सभी तो
मधुरम- संचार कराते !!

प्रातः की मुस्कान उज्जवल
चंद्रमा का हाल नीरव !
उड्रू- गणों के मधुर चितवन
काननो के दृश्य अनुपम !!

ये प्रकृति के नव इशारे
रम्य बहुविन्ध दृश्य सारे !
हैं उठाते मेरे  मन में
हर्ष की  उड़ंग लहरें !!

भावनाएं हैं मचलती
कल्पनायें  भी थिरकती !
पर ना पाकर शब्द अम्बर
लींन होती हृदय ही में !!

आज यह उद्दार मेरे,
व्यक्त हो पाते नहीं हैं !
फूट पड़ते हैं ह्रदय से,
पर ना होंठो  तक  पहुंचते 

 – मेहता वसिष्ठ

Leave a comment