jindagi
देखा बदबू सा
फैलता जातपात
गंदी चादर में क़ैद
हो जैसे लफजात
आज़ादी का आनंद लूटते
देखे कुछ चोर
देखा बदबू सा
फैलता जातपात
गंदी चादर में क़ैद
हो जैसे लफजात
जिया चोरों के राज में
शरीफ का यही गुनाह
षडयन्तरो के दौर से
दुर्गम हुई राह
गंदी टोपी
गंदी चादर के
नेता का था वो दोर
देखा बदबू सा
फैलता जातपात
गंदी चादर में क़ैद
हो जैसे लफजात
जिंदगी की रफ़्तार को रोक दिया
यह थे अंधे मोड़
अंधे शासक अंधे क़ानून
ने दी कमर तोड़
धर्म की आड़ में देश टूटा
कत्लेआम हुआ
पूर्वजों का साथ छूटा
बचपन बीता
पतंग जैसा
टूटी जिसकी डोर
जिंदगी की रफ़्तार को रोक दिया
यह थे अंधे मोड़
देखा बदबू सा
फैलता जातपात
गंदी चादर में क़ैद
हो जैसे लफजात
आज़ादी का आनंद लूटते
देखे कुछ चोर
जिंदगी की रफ़्तार को रोक दिया
यह थे अंधे मोड़
जिया चोरों के राज में
शरीफ का था यही गुनाह
शरयंत्रों के दौर से
दुर्गम हुई थी राह
गंदी टोपी गंदी चादर के
नेता का था वो दोर
जिंदगी की रफ़्तार को रोक दिया
यह थे अंधे मोर
बंसी बन करता जातपात
च्छेद देता क्या थी तेरी औकात
ख़तम इतिहास का भद्दा दौर
जिंदगी की रफ़्तार को रोक दिया
यह थे अंधे मोड़- मोहन आलोक