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Ram Katha

राम कथा की विकास यात्रा

प्राचीन काल से लेकर अब तक राम कथा हमारे जन जीवन को प्रभावित करती आ रही है। यह कथा विभिन्न युगों एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित तथा परिवद्धिंत होती रही है। यह संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रशं से होती हुई भारत की आधुनिक भाषाओं के साहित्य को परिपूर्ण कर रही है, “मानव हृदय को आकर्षित करने की जो शक्ति राम कथा में है। वह अन्यत्र दुलर्भ है ।”
राम कथा की विकास यात्रा का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है ।

1. वैदिक साहित्य
राम कथा के पात्रों के अतिरिक्त वैदिक साहित्य में इक्ष्वाकु वंशीय अन्य राजाओं का भी उल्लेख हैं। ऋगवेद में इक्ष्वाकु को धनी और तेजस्वी राजा कहा गया है। अथर्व वेद में लिखा है “हे कुष्ठ (औषधि) तुम्हे प्राचीन इक्ष्वाकु राजा जानता था।”
इक्ष्वाकु वंश के पच्चीसवें राजा मंधाता का ॠग्वेद में कई बार उल्लेख हुआ है। उसे अंगिरा ऋषि जैसा पवित्र कहा गया है। वैदिक साहित्य में भगेरथ राजा का उल्लेख है। समझा जाता है कि भगेरथ और भगीरथ एक ही थे।
ऋगवेद में रघु का वर्णन भी है। रघु का अन्य अर्थ तीव्र गति भी है। इसी वेद में दशरथ का भी नाम है। “दशरथ के चालीस भूरे रंग वाले घोड़े एक हजार घोड़ों वाले दल का नेतृत्व कर रहें है।”
ऋगवेद में राम का उल्लेख यजमान राजा के रूप में आया है। “मैनें दुशीम, पृथवान, वैन और बलवान राम इन यजमानों के लिए यह सूक्त गाया है।” वैदिक साहित्य में राजा जनक का नाम कई बार आया है शतपथ ब्राह्मण में जनक को इतना महान तत्वज्ञ और विद्वान कहा है कि वे ऋषि याज्ञवल्क्य को भी शिक्षा देते थे। ऋगवेद में सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है। सीता का अर्थ “लांगल पद्धति भी है। अन्य कृषि सम्बन्धी देवों के साथ सीता के प्रति भी प्रार्थना की गई है। (हल चलाते हुए जो पंक्ति बनती है उसे लांगल पद्धति कहते है।) पंजाबी भाषा में यह “सियाड़” कहलाती है।
वैदिक साहित्य धार्मिक था, इतिहास नही। इसलिए इस साहित्य में राम कथा का अभाव है, परन्तु राम कथा के पात्रों का यत्र तत्र उल्लेख है।
2. वाल्मीकि रामायण
विद्वानों का विचार है कि वाल्मीकि रामायण से पूर्व राम सम्बंधी स्फुट आख्यान प्रसिद्ध थे। इनमें अयोध्या काण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक की कथा विद्यमान थी । यह अख्यान केवल कौशल में ही नही, अपितु दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गये थे। वाल्मीकि ऋषि ने इन अख्यानों को प्रबंध काव्य में संकलित कर के रामायण की रचना की। आज कल वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ पश्चिमोत्तसरीय, गौड़ीय और दक्षिणात्य प्रचलित है। इन पाठों की तुलना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वाल काण्ड और उत्तर काण्ड बाद के लिखें है। ये विचार आधुनिक इतिहासकारों और विदेशी लेखकों के है। भारत के प्राचीन इतिहास के अनुसार वाल्मीकि ऋषि राजा दशरथ के समकालीन व उन के मित्र थे। वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में सीता के बच्चों का पालन पोषण व शिक्षा दीक्षा हुई थी। इसी ऋषि ने आदि रामायण की रचना की थी। सम्भवतः इस गद्दी पर प्रतिष्ठित अन्य वाल्मीकि ऋषि ने इस कथा में संशोधन किया हो । और सीता बनवास बाद में शामिल किया हो । वाल्मीकि रामायण में सात काण्ड हैं। बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड, युद्ध कांड व उत्तर कांड।
वाल्मीकि रामायण जिसे आदि रामायण भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में अनुष्टप छन्द में लिखी गई है। इस छंद में चार पाद होते एक पाद में आठ अक्षर होते हैं। यह चौबीस हजार श्लोंकों में रचित काव्य है। रामायण सम्बन्धी विशेष स्थान निम्न है। : सिद्ध आश्रम : महर्षि विश्वामित्र का तपस्या स्थल है। श्रृंगवेर पुर : अयोध्या की सीमा समाप्त होते ही प्रयाग के पास एक राज्य निषाद राज गुह जहां का अधिपति था। मंदाकिनी : चित्रकूट में प्रवाहित नंदी, मंद गति में बहने के कारण इस का नाम मंदाकिनी पड़ा।
नंदि ग्राम : अयोध्या के पास एक गांव, भरत इसी स्थान राज्य संचालन करता था ।
दण्डकारण्य : विंध्याचल पर्वत, पार कर एक घना जंगल है। पंचवटी : गोदावरी नदी के तट पर पांच वट वृक्षों से घिरा नासिक के पास सुन्दर स्थान है।
पंपा सरोवर दण्डक अरण्य में स्थित सरोवर।
प्रस्रवण, दण्डक में एक पर्वत सीता की खोज के समय राम, लक्ष्मण आदि ने इस पर्वत पर निवास किया।
ऋष्य मूक पर्वत, भारत के दक्षिण पश्चिम में एक पर्वत सुग्रीव का वानर सेना सहित निवास स्थल ।
मधुवन: सुग्रीव का बाग, इस की रखवाली सुग्रीव का मामा दधिमुख करता था ।
मैनाक : हिन्द महासागर स्थित पर्वत, हनुमान जी ने लंका जाते समय इस की चोटी नष्ट कर दी थी। अरिष्ट पर्वत : लंका के निकट एक पर्वत है।
राम सेतु अथवा रामेश्वर सेतु : रामेश्वर से लेकर लंका जाने के लिए हिन्द महासागर में नील, नल द्वारा वानरों की सहायता से निर्मित सेतु ।
नैमिष- अरण्य : लखनऊ के पास एक तीर्थ स्थल । इस स्थान पर श्री राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ किया था ।
समस्त राम काव्य का मूल स्रोत परोक्ष या अपरोक्ष रूप में आदि काव्य वाल्मीकि रामायण है। प्राचीन काल से लेकर अब तक असंख्य ही कवि हुए जिन्होने अपनी रूचि व समय की मांग के अनुसार राम कथा को अपने काव्य का आधार बनाया।
3. महाभारत
महाभारत में राम कथा का तीन स्थलों में उल्लेख हुआ है। परन्तु राम कथा के पात्रों का कई स्थलों पर वर्णन है।
वन पर्व : में राम कथा तीन प्रसंगो में वर्णित है। तीर्थ यात्रा-प्रसंग में, भृंगु तीर्थ में परशुराम की तपस्या और श्री राम से विवाद आदि पर प्रकाश डाला है। हनुमान भीम संवाद में हनुमान ग्यारह श्लोकों में राम सुग्रीव मिलन से लेकर अयोध्या लौटने तक राम अभिषेक तक की कथा संक्षेप में कहते है। तृतीय प्रसंग राम उपाख्यान है। राम जन्म से लेकर श्री राम के राज्य अभिषेक तक का समस्त कथानक अठारह अध्यायों में बड़े विस्तार से लिखा है।
द्रोण पर्व : पुत्र मृत्यु से दुखी संजय को नारद ने 16 राजाओं की कथाएं सांत्वना देते हुए सुनाई थी। सभी राजा महान होते हुए भी काल के सामने असमर्थ रहे। उन्हीं राजाओं में एक राजा श्री राम चन्द्र थे। राम जन्म से लेकर स्वर्ग आरोहण तक का समस्त कथानक अति सक्षेप में दिया गया है। इसमें राम राज्य की समृद्धि व राम महिमा को अधिक महत्व दिया है।
शान्ति पर्व : इस पर्व में श्री राम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ तथा उनका लम्बी अवधि तक शासन करने का उल्लेख है। राम राज्य तथा राम महिमा का उल्लेख करते हुए श्री कृष्ण श्री राम के परमध् म पहुचने की कथा कहते है।
5. बौद्ध साहित्य
महात्मा को बौद्ध श्री राम का अवतार मानते हैं। गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं जातकों में संग्रहीत है। राम कथा सम्बन्धी तीन जातक पाली भाषा में वर्णित है। यह ई० पांचवीं शताब्दी की एक सिहली पुस्तक का पाली अनुवाद है। महात्मा बुद्ध ने यह जातक जैतवन में किसी गृहस्थ को उस के पिता की मृत्यु पर सुनाया था। राजा दशरथ की मृत्यु पर महान राम के धैर्य का उदाहरण इसमें प्रस्तुत किया गया है। पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर लक्षमण और सीता शोक से व्याकुल हो गए। परन्तु राम
पण्डित दुखी नही हुए। उन्होनें सीता और लक्षमण को जीव की अनित्यता का उपदेश दिया। अन्त में महात्मा बुद्ध जातक का सांमजस्य इस प्रकार बैठाते है। महाराजा शुद्धोदन दशरथ थे। महामाया राम की माता थी, यशेधरा सीता, आनन्द भरत और बुद्ध स्वंय राम पंडित थे। इस जातक में राजा दशरथ की दो पत्नियां बताई है। महारानी के दो पुत्र राम और लक्ष्मण तथा पुत्री सीता बताई है। कई अन्य ग्रन्थों के अनुसार राजा दशरथ की एक पुत्री शांता थी। ऐसा लगता है कि बोद्ध साहित्य पाली भाषा में रचा गया था। लेखकों को संस्कृत का ज्ञान न होने के कारण उन्होनें शांता या सीता का अन्तर नही जाना।
अनामक जातक में राम सीता बनवास, सीता हरण, जटायु प्रसंग, बाली सुग्रीव युद्ध, सेतु बंध, सीता की अग्नि परीक्षा आदि प्रसंगों के संकेत मिलते है।
दशरथ कथानक में राजा दशरथ की चार रानियों का उल्लेख है। शेष कथा अन्य राम कथा जैसी है। बनवास से लौट कर श्री राम ने भरत के आग्रह पर राज्य का कार्यभार संभाला। उन का राज्य सुख शान्ति से परिपूर्ण था।
महात्मा बुद्ध सभी के श्रद्धेय हैं। वे विष्णु के अवतार माने जाते है। बौद्ध मत के विद्वानों को चाहिए कि इस साहित्य की समीक्षा करें, और यथोचित संशोधन करें। शान्ता और सीता को लेकर जो भ्रम है, उसे दूर करना चाहिए ।
6. जैन साहित्य
संस्कृत में उपलब्ध जैन साहित्य निम्नलिखित है।
‘पद्म चरित’ संस्कृत का प्राचीनतम जैन ग्रन्थ है। 676 ई० में रविषेण ने इस का संस्कृत रुपान्तर किया है।
उत्तर पुराण के रचयिता गुण भद्र हैं। यह नवीं शती की रचना है। “जैन रामायण” के लेखक हेम चन्द्र है। इस का रचना काल 12 वीं शताब्दी है। यह रामायण “त्रिषष्टि शालाका पुरूष चरित” के अन्तर्गत है। हेमचन्द्र की अन्य रचना सीता-रावण-कथानक है। “राम वेद पुराण” जिन दास कृत यह 15 वीं शती की रचना है। राम चरित के रचयिता पद्म देव विजय गणि है। यह 16 वीं शती की रचना है। इन के अतिरिक्त कई अन्य लेखकों ने राम कथाओं की रचना की है।

7. प्राकृत जैन साहित्य
विमल सूरि का ‘पउम चरित्र’ शील आचार्य कृत ‘राम-लक्खन चरियम् (नवीं शताबदी) पुष्प दंत कृत तिसट्ठी महापुरिस गुणालकार (दसवीं शताब्दी) के अन्तर्गत “रामायणम्” और भुवन तुंग रचित ‘सिय चरिय’ तथा ‘राम लक्खन चरिय’ प्राकृत भाषा में राम कथा सम्बधी जैन ग्रन्थ है।

8. अपभ्रंश साहित्य
स्वयं भूदेव रचित ‘पउम चरिय’ या रामायण पुराण का समय 7-8 वीं शताब्दी के मध्य में है। रइघुकृत पदम पुराण 15 वीं शती का है। जैन साहित्य के अन्तर्गत कन्नड़ भाषा में भी श्री राम कथा उपलब्ध है।
9. पुराण साहित्य: पुराणों के अन्तर्गत मार्कण्डेय, भविष्य, लिंग वराह, वामन, मत्स्य और ब्रह्माण्ड पुराणों में राम कथा का विशेष उल्लेख नहीं। अवतार चर्चा के साथ-साथ राम चरित का वर्णन कहीं-कहीं मिलता है। अन्य पुराणों में राम कथा का उल्लेख निम्नलिखित है।
10. विष्णु पुराण: इस पुराण में इक्ष्वाकु वंश का इतिहास वर्णन करते हुए, राम जन्म से लेकर उनके परम धाम तक पहुचने का संक्षेप में वर्णन है। श्री राम के भाईयों के पुत्रों का भी इसमें उल्लेख है।
हरिवंश पुराण : इस पुराण का रचना काल लगभग चार सौ ई० है। रामावतार से लेकर रावण वध तक राम कथा का संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ में मिलता है।
11. वायु पुराण: इस ग्रन्थ में इक्ष्वाकु वंश के समस्त राजाओं का उल्लेख है।
12. ब्रह्म पुराण: इस में अनेक स्थलों पर राम कथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख है।
13. ब्रह्मवैवर्त पुराण : इस पुराण का रचना काल सातवीं शताब्दी के लगभग है। वेद वती चरित्र प्रसंग में सीता जन्म से लेकर श्री राम के स्वर्गारोहण तक की कथा है।
14. अग्नि : यह पुराण आठवीं शती का माना जाता है। इस ग्रन्थ में सभी अवतारों का वर्णन है। रामवतार के अन्तर्गत राम जन्म से लेकर राम राज्य तक का कथानक सात अध्यायों में दिया गया है। इसका लेखक वाल्मीकि रामायण से प्रभावित हैं।
15. नृसिंह पुराण: इस का रचना काल चार सौ से पांच सौ ई० के मध्य में है। इस ग्रन्थ में अवतार वाद को अधिक महत्व दिया गया है। सीता-त्याग का उल्लेख नहीं। श्री राम को नारायण और लक्ष्मण को शेष के अवतार माना गया है ।

16. भागवत पुराण: इस का रचना काल छठी सातवीं शताब्दी के लगभग है। इस में राम जन्म से लेकर निर्वाण तक की कथा है। सीता को लक्ष्मी का अवतार माना गया है। धोबी प्रसंग भी है।

17. स्कन्द पुराण: इस ग्रन्थ का रचना काल आठवीं शताब्दी के बाद है। इस के सभी खण्डों में राम कथा का कुछ ना कुछ भाग प्राप्त हो जाता है। प्रभास खण्ड में राम, लक्ष्मण, दशरथ तथा रावण द्वारा अनेक पुण्य क्षेत्रों में शिव लिंगों की स्थापना का विस्तृत उल्लेख है।
18. श्रीमद् देवी भागवत पुराण: इस पुराण में 12 स्कंद है। सीता हरण के बाद रावण पर विजय पाने हेतु श्री राम नवरात्रों का व्रत रखते हैं। देवी भगवती श्री राम को दर्शन देती है। इस ग्रंथ के नवम स्कन्ध में वेदवती व छाया सीता का भी उल्लेख है। इस का रचना काल 950 ई के लगभग है।
19. महाभागवत पुराण : इस का रचना काल 11वीं शताब्दी के लगभग है। शिव हनुमान का रूप धारण कर श्री राम की सहायता करते हैं। श्री राम को देवी अमोध शस्त्र प्रदान करती है। जिससे वे रावण पर विजय पाते है। इस पुराण में नारद शाप व सीता हरण का उल्लेख है।
20. कालिका पुराण : इस पुराण का रचना काल 10-11वीं शताब्दी माना गया है। श्री राम की विजय के लिए ब्रह्मा देवी की पूजा करते हैं। जनक हल जोतते है और पृथ्वी से सीता व दो पुत्र प्राप्त करते हैं। आर. सी. हाजरा इस पुराण की रचना का मूल स्थान बंगाल मानते है। उन का कथन है कि बंगाल में देवी पूजा अष्टमी और नवम को की जाती थी और बली प्रथा भी थी। यह तर्क ठीक नही जचता। उत्तरी भारत में देवी पूजा की जाती है और हिमाचल में देवी को बलि देने की भी प्रथा थी ।
21. शिव पुराण : राम जन्म की हेतु कथाओं और शिव चरित्र के लिए राम चरित मानस शिव पुराण का आभारी है। सती राम की परीक्षा लेती है। धर्म संहिता के अन्तर्गत बनवास के समय सीता द्वारा दशरथ के लिए पिण्ड दान का उल्लेख है। सागर पार करने के लिए राम द्वारा शिव से सहायता की प्रार्थना की गई है।
22. कल्कि पुराण: इस ग्रन्थ में संक्षिप्त राम कथा है। हाजरा के अनुसार इस का रचना काल 18वीं शती हैं। और यह पुराण बंगाल में रचा गया है। क्योंकि इस पुराण के सभी हस्त लिखित ग्रंथ जो अब तक मिले हैं, बंगला लिपि में है।
23. बहि पुराण: इस रचना में बाल काण्ड से युद्ध काण्ड तक राम कथा का विस्तृत वर्णन है। रामावतार और सीता हरण का कारण भृगु और पृथ्वी का शाप बताया गया है। रावण और कुम्भकरण की जन्म कथाओं का भी वर्णन है।
पद्म पुराण : इस पुराण में अवतार वाद अधिक दिखाई देता है। राम को विष्णु व सीता को लक्ष्मी का रूप कहा है। लक्ष्मण भरत व शत्रुघ्न को क्रमशः अनन्त, सुर्दशन व पांच जन्य का अंश माना गया है। इस पुराण के खण्डों का रचना काल अलग-अलग माना जाता है।
24. पुराणेतर धर्मिक साहित्य
योग वसिष्ठ – आधुनिक अलोचक यथा एस. एन. दास गुप्ता और एम. विंटर नित्स इस ग्रंथ को आठवीं शताब्दी का मानते है। डा० वी. राघवन के अनुसार इस ग्रंथ का रचना काल 1100 ई० और 1250 ई० के बीच का है, विश्वा मित्र के कहने पर वसिष्ठ श्री राम को मोक्ष प्राप्ति पर उपदेश देते हैं।
अध्यात्म रामायण यह रचना पार्वती शंकर संवाद रूप में है। यह संवाद नारद ने ब्रह्मा से सुना था। इसमें अवतार वाद अत्याधिक है। श्री राम पर ब्रह्म, सीता मूल प्रकृति (योग माया) लक्ष्मण शेष के अवतार माने गए है। गुरु वसिष्ठ कौशल्या जनक व रावण आदि इस रहस्य को जानते हैं। रामचरित मानस इस रामायण से अत्यधिक प्रभावित है। इस ग्रन्थ का मुख्य विषय राम भक्ति का प्रतिपादन करना है।

25. अद्भुत रामायण : इस ग्रन्थ की सम्पूर्ण कथा वाल्मीकि भरद्वाज संवाद में है। इस में नारद और पर्वत द्वारा विष्णु को शाप देना रामावतार का कारण माना गया है। सीता शाप के कारण राक्षस के द्वारा चुराई गई है। रावण का वध सीता द्वारा होता है। वह देवी का रूप धारण करके आती है।

26. आनन्द रामायण : सम्भवतः यह रचना 15वीं शताब्दी की है। इसमें 12252 शलोक है। इस राम कथा में कई अद्भुत कथाओं का समावेश है। यथा सुलोचना की कथा, राम व लक्ष्मण के आठ पुत्रों का उल्लेख आदि । अन्तिम सर्गों में राम-उपासना की विधि, राम नाम का महात्म्य, चैत्र महिमा तथा राम आदि के बैकुंठवास का वर्णन है। तत्व संग्रह रामायण : इस ग्रंथ की भूमिका में श्री राम को शिव, ब्रह्मा, हरिहर त्रिमूर्ति व परब्रह्म का अवतार माना गया है। इस का राम मन्त्र “रामोऽहम” है अर्थात अद्वैत राम-उपासना का सिद्धान्त भी अपनाया गया है। कई तीर्थों का सम्बंध श्री राम से जोड़ कर उन की महानता दिखाई गई है।
27. जैमनीय भारत : इस में कुश-लव की कथा भी है। मेघनाथ के संहार के बाद अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण को पाताल ले जाता है। हनुमान अपने पुत्र की सहायता से अहिरावण का वध करके उन्हे छुड़ा लाते है। इस में रावण का वध सीता द्वारा होता है।
28. मंत्र रामायण: इस में व्यक्त किया गया है कि वेद भी श्री. राम के साथ रामायण के रूप में प्रकट हुए।
वेदान्त रामायण: इस का विषय परशु राम चरित है जो श्री राम द्वारा जिज्ञासा करने पर वाल्मीकि ने उन्हें सुनाया।
29. सत्योपाख्यान: यह रामायण वाल्मीकि मार्कण्डेय संवाद में है। हनुमत् सहिता : यह राम कथा हनुमान अगस्त संवाद में वर्णित है। इस का प्रतिपाद्य सरयु तट पर श्री राम की राम लीला तथा जल विहार है। इस कृति पर कृष्ण काव्य की श्रृंगारिता का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
उपरोक्त रचनाओं के अतिरिक्त वृहत कौशल खण्ड आदि कई अन्य कृतियां है।
30. महाकाव्य
धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त राम कथा सम्बन्धी कुछ महाकाव्य ऐसे हैं जिनमें आद्यान्त राम चरित्र का वर्णन है, और कुछ में अन्य चरित्रों के साथ राम चरित का समावेश कर लिया गया है। संस्कृत में प्रमुख राम-काव्य निम्न है :
रघुवंश : कालिदास कृत इस ग्रन्थ का रचनाकाल 400 ई० के लगभग है। इस के 19 सर्गों में राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक 29 राजाओ का वर्णन है। प्रजा प्रसन्न हो तो राजा की समृद्धि होती है। प्रजा के दुखी होने पर राजा का नाश होता है। इस रचना का यही उद्देश्य है। राम चरित 6 सर्गों में वर्णित है। इस काव्य का मुख्य रस वीर है। रावण वध इस के लेखक भट्टि हैं। रचना काल सातवीं शताब्दी है। राम जन्म से लेकर राज्य अभिषेक तक की कथा व्याकरण के नियमों के निरूपण के साथ वर्णित हैं। इसका प्रधान रस वीर है।
जानकी हरण: इस रचना अयोध्या वर्णन से लेकर जानकी हरण तक का कथानक है। इस की भूमिका में 25 सर्गों का उल्लेख है। परन्तु सभी सर्ग उपलब्ध नहीं है। इसका प्रमुख रस श्रृंगार है।
राम चरित : यह अभिनन्दन कृत नवीं शताब्दी की रचना है। इस में 36 सर्ग हैं।
रामायण मंजरी : क्षेमेन्द्र द्वारा रचित इस महाकाव्य में 36 सर्ग हैं। यह सम्पूर्ण राम कथा वाल्मीकि नारद संवाद में है। राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ से पूर्व अश्वमेध यज्ञ का भी इस में उल्लेख है।
दशावतार चरित : यह रचना भी क्षेमेन्द्र द्वारा रचित है। रचना काल 1066 ई० है। इस में दस अवतारों का सरस और सरल वर्णन है। अन्य रचनाएं निम्न हैं। उदार राघव, रघुवीर चरित, श्री राम विजय, राधवीयम्, जानकी परिचय, राम लिंगामृत, नारायणीयम्, राघव-उल्लास, राम रहस्य आदि ।

 

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