ancient indian history

Ramavtar

रामावतार
रामावतार दशमग्रन्थ साहिब में संग्रहीत 24 अवतारों के अन्तर्गत हैं। इस में 26 अध्याय है। रामावतार का लेखक वाल्मीकि रामायण से अधिक प्रभावित है राम के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक इस में सम्पूर्ण राम कथा दी गई है। वाल्मीकि रामायण का एक श्लोक ज्यों का त्यों ही रखा गया है।
ततो दशरथः प्राप्य पायसं देवनिर्मितम् । बभूव परम प्रीतः प्राप्य वित्तमिवाधनः ।। खीर पात्र कढ़ाई लेकरि दीन नृप के आन । भूप पाई प्रसन्न भयो जिमु दारदी लै दान ।। रामावतार का महात्मय भी वाल्मीकि रामायण के आधार पर है। : यावत स्थास्यन्ति गिरयः सरतिश्च महीतले । तावद्रामायण – कथा लोकेश प्रचारिष्यति ।।
राम कथा जुग २ अटल, सभ कोई भारवत नेता । जो इह कथा सुने और गावै। दुख पाप तिह निकट न आवै । वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों का प्रभाव भी रामावातर पर लक्षित होता है। हवि वितरण तथा श्रवण कथा ‘उदार राधव’ और राधवीयम् के अनुरूप है। दशरथ के प्रति लक्ष्मण का आक्रोश राम द्वारा सम्पत्ति दान ‘रामायण मंजरी’ पर आधारित है। ‘लक्ष्मण रेखा का हिन्दी के ग्रन्थों सूर-सागर तथा ‘राम-चन्द्रिका में वर्णन है।
लेखक ने फारसी की रामायण मुल्ला मसीह से भी कुछ विचार ग्रहण किए हैं। रामावतार में सीता के द्वारा रावण का चित्र बनाना भी इसी रामायण से लिया गया है। रामायण मसीह में राम की बहिन के कहने पर सीता रावण का चित्र बनाती है, परन्तु रामावतार में सखी के कहने पर वाल्मीकि ऋषि द्वारा सीता के दूसरे पुत्र की रचना तथा लवकुश द्वारा पराजित हो कर राम आदि का अचेत हो जाना आदि । परन्तु उनके सचेती करण में थोड़ा भेद है। रामायण मसीह में ऋषि वाल्मीकि जल छिड़क कर उन्हे चेतनावस्था में लाते है परन्तु रामावतार में सीता । गोसाई गुरवाणी से भी रामावतार का लेखक प्रभावित है। विश्वामित्र द्वारा राम लक्ष्मण को दो मार्ग दिखाने, एक छोटा परन्तु डरावना, दूसरा लम्बा तथा वाल्मीकि द्वाराकुश की रचना ।
हृदय राम भल्ला द्वारा रचित ‘हनुमान नाटक’ से भी रामावतार का रचयिता प्रभावित है। लेखक ने इस का उल्लेख भी किया है। रामावतार वीर काव्य है। युद्ध वर्णन में लेखक का मन अधिक रमा है। राम के शौर्य गुणों का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया है। राजा दशरथ श्री राम को युवराज पद देने से पूर्व उन के वीर रूप को प्रतिष्ठित करते हैं। राजा दशरथ अश्वमेघ यज्ञ करवातें हैं और श्री राम दिग्विजय को प्रस्थान करते हैं। और अनेक राजाओं को दास बनाकर लोटतें है। राम परम पवित्र हैं रघुवंश का अवतार । दुष्ट देतन को संहारक सन्त प्रानाधार ॥ देस देस नरेस जीत, अनेक कीन्ह गुलाम ।
रामावतार के राम विष्णु के अवतार हैं उनके जन्म का उद्देश्य धरती को असुरों से मुक्त कराना है, देवताओं के कार्य सिद्धि के लिए अकाल पुरूष ने राम को अवतार धारण करने के लिए कहा है। रणबीर प्रगट भए । जग अटल राम अवतार ।। अवतार धरो रघुनाथ हर । चिर राज करो सुख से अवध ।। गुरू गोविन्द सिंह हिन्दी – पंजाबी भाषाओं के अतिरिक्त उर्दू व फारसी के भी ज्ञाता थे। रामावतार ब्रज भाषा (हिन्दी) में लिखा है, उस की लिपि गुरूमुखी है, परन्तु उर्दू फारसी के शब्द भी कहीं-कहीं दिखाई देते है, यथा-जालिम, कमाल, जुल्फ, गुलाम, हराम। ये शब्द समाज में बोलचाल में भी उपयुक्त होते थे। और साहित्य में भी इन का उपयोग होता था।
वीर काव्य होने के कारण इस ग्रन्थ में युद्ध वर्णन अधिक हैं। लेखक का उद्देश्य वीर रस का निष्पादन है। पंजाबी छंद शिखण्डी का उदाहरण है।
जुट्टे वीर जुझारें धग्गां वज्जियां ।।
रामावातार में मार्मिक स्थलों का अभाव है। रामावतार के अतिरिक्त गुरू गोविन्द सिंह के दरबारी कवियों द्वारा संस्कृत के ग्रन्थों, वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि का अनुवाद हिन्दी पंजाबी भाषा में किया गया ।
मुस्लिम शासन में उर्दू भाषा सरकारी भाषा बना दी गई थी। स्कूलों में लड़कों को आरम्भ से ही उर्दू पढ़ाया जाता था। अंग्रेज राज्य में भी यही सिलसिला रहा, परन्तु अंग्रजी भाषा छठी कक्षा से आरम्भ की गई थी। समस्त पंजाब में पुरुष वर्ग हिन्दु-मुस्लिम सभी उर्दू पढ़ते व लिखते थे । कतिपय उर्दू लेखकों ने राम कथा का उर्दू भाषा में अनुवाद भी किया और अपनी रुचि अनुसार राम कथा लिखी। मुझे खेद है कि मैं उनका विवरण नही जुटा पाई। उन लेखकों में धनी राम चात्रक का नाम उल्लेखनीय है । बचपन में उर्दू में लिखी रामायण व अन्य धर्मिक ग्रन्थ पढ़ती रही हूँ ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार सन् 1643 ई० से 1843 ई० तक का समय साहित्य का रीति काल माना जाता है। इस काल में रचित काव्य की मुख्य प्रवृतियां श्रृंगारिकता, आलंकारिकता और लक्षण गन्थों का निर्माण थी । विलासमय वातावरण में रचित इस काव्य की श्रृंगारिकता अश्लीलता के अति निकट है। हिन्दी भाषी प्रान्तों में सगुण धारा के अन्तर्गत रसिक संप्रदाय चल पड़ा था। इस मत के अनुयायियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का चरित्र-चित्रण भी श्रृंगारिक धरातल पर करना आरम्भ कर दिया था। परन्तु यह साहित्य लोकप्रिय नहीं हुआ। परन्तु पंजाब में सगुण धारा के प्रवर्त्तक पण्डोरी धाम के वैष्णव श्री भगवान और नारायण बद्दो की (गुजरां वाला, अब पाकिस्तान) के गोसाई, गुरु ध्यानपुर ( गुरदासपुर) के बाबा लाल तथा गुरुनानक देव के पुत्र श्री चन्द द्वारा स्थापित सम्प्रदायों के अनुयायियों ने श्री राम व श्री कृष्ण के मर्यादापूर्ण आदर्श ही अपनाए रखें

रसिक सम्प्रदाय

तुलसी दास के पश्चात् हिन्दी भाषी प्रान्तों में राम साहित्य एक नई दिशा की और मुडा । इस साहित्य की विभिन्न शाखाओं के नाम जानकी सम्प्रदाय, जानकी बल्लभ सम्प्रदाय और रहस्य- सम्प्रदाय आदि हैं। इन सम्प्रदायों में राम-सीता की युगल रूप में उपासना की जाती है। रसिक सम्प्रदाय के भक्त उन ग्रन्थों से प्रभावित प्रतीत होते हैं, जिन में श्री राम के श्रृंगारी रूप को अपनाया गया है। यथा तमिल भाषा में रचित कंवन रामायण (10वीं शताब्दी) संस्कृत भाषा में रचित आनन्द रामायण (15वीं शताब्दी) राम-लिंगामृत तथा भुशुण्डि रामायण आदि ।इस सम्प्रदाय के इषृदेव श्री राम परात्पर ब्रह्म है। कारण रूप में निर्गुण है और कार्य रूप में सगुण सीता उन की पराशक्ति है। इस साहित्य में पूरी राम कथा के दर्शन नही होते । कवियों का मुख्य उद्देश्य अपने ईष्ट देव की रसिक मनोवृतियों का चित्रण करना है। अतः उन की रचनाओं का विषय पुष्प वाटिका, राम-सीता मिलन ही रहे। यह साहित्य ब्रज व अवधी भाषाओं में रचा गया है। रसिक सम्प्रदाय के प्रमुख भक्त कवि व उनकी रचनाएं इस प्रकार हैं। अग्रदास : ये तुलसी दास के समकालीन थे। सोलहवीं शताब्दी के उतरार्द्ध में इन का जन्म राजस्थान में हुआ । इन की रचनाएं यान-मंजरी, श्रृंगार रस, व अग्रसागर हैं।नाभादास : ये अग्रदास के भक्तों में थे। उनकी रचनाएं भक्तमाल और राम-अष्टयाम हैं। भक्तमाल में दो सौ भक्तों का परिचय दिया गया है। राम अष्टयाम में श्री राम की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है।बाल कृष्ण अली के नेह प्रकाश नाम के अनेक ग्रन्थ हैं। सीतायन: राम प्रिय शरण द्वारा रचित सीतायन में सात काण्ड हैं। सीता के बालपन और यौवन काल की लीलाओं का वर्णन है। उज्जवल, उत्साह, विलास उन के अन्य ग्रन्थ है। रामचरण दास : ये अयोध्यावासी थे। गणपति चन्द्र गुप्त के अनुसार इन के 25 ग्रन्थ हैं। इन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य राम चरित मानस की टीका है। इन का जन्म 1817 ई० में तथा प्राणन्त सन् 1888 में हुआ।महाराज विश्वनाथ सिंह का जन्म 1846 वि में हुआ तथा मृत्यु 1911 विं० में हुई। इन के ग्रन्थों की संख्या 38 है। काठ जिह्वा स्वामी : इन की 15 रचनाऐं उपलब्ध हैं। इन्होनें श्री राम के दोनों रूपों निर्गुण व सगुण को माना है। वे भगवान् राम को सत्य स्वरूप, लक्षमण को ज्ञान स्वरूप और सीता को शक्ति मानते हैं। इन का गुरू के साथ विवाद हो गया। अतः उन्होनें पश्चाताप के कारण जीभ पर काठ का खोल चढा लिया था । उमापति त्रिपाठी कोविद : ये संस्कृत व हिन्दी के विद्वान थे। इन्होने वात्सल्य भाव से राम की भक्ति की है। स्वयं को गुरू और श्री राम को राजकुमार मानते थे। इन के 42 ग्रन्थ थे । बाबा रघुनाथ राम स्नेही : इन का महत्व पूर्ण ग्रन्थ विश्राम सागर है। इसके रामायण खण्ड में राम कथा है। यह ग्रन्थ राम चरित मानस से प्रभावित है।बाबा बनादास : इन का जन्म सं० 1890 विं० को हुआ था । गोंडा जिले के निवासी थे। ये राम निर्गुण और सगुण दोनों रूपों को मानते थे। गुरु खण्ड में उन्होनें तुलसी को कवि सम्राट की उपाधि दी थी, तथा उन्हें अपना गुरु माना था। युगल नारायण हेमलता : इन के 84 ग्रन्थों में 75 उपलब्ध हैं। अयोध्या में लक्ष्मण किला इन का निवास स्थान था। इन का समय 1818 वि० से 1876 विक्रमी तक है। ये अपने समय के प्रसिद्ध भक्त व सिद्ध थे। जानकी प्रसाद रसिक बिहारी : इनका जन्म काल सं० 1901 है। कनक भवन (अयोध्या) में निवास करते थे। ये भी तुलसी से प्रभावित थे। इनके द्वारा रचित राम रसायण राम-भक्ति शाखा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। महाराज रघुनाथ सिंह, ये विश्व नाथ सिंह जी के पुत्र थे । इन का समय सं० 1890 वि० है । इन की भक्ति दास्य भाव की थी। इस काव्य में उस समय की राजसी वैभव दिखाई देता है। उपरोक्त भक्त कवियों के अतिरिक्त कई अन्य हैं। जिन में कुछेक निम्न हैं। सूर किशोर, राम सखे, कृपा निवास, शिव लाल पाठक, राम गुलाम द्विवेदी, जीवा राम युगल प्रिय, जनक राज .किशोरी, शरण अली, प्रताप कुंवरि बाई, पतित दास रघुनाथ दास आदि । भाषा प्रान्तों का अन्य साहित्य यह साहित्य रसिक समप्रदाय से भिन्न है। 18-19 वीं शताब्दी में “अद्भुत रामायण” नामक रचनाएं लिखी गई थी। उन लेखकों में शिव प्रसाद, भवानी लाल, नवल सिंह के नाम उल्लेखनीय है । इन कथाओं में रावण का वध सीता के हाथों करवाया गया है।रामायण सूचनिका 33 दोहों में है इसमें अक्षरों के क्रम से राम कथा दी गई है। यह 1857 वि० से पहले की रचना है। अनेक काव्य रामायण के रामेत्तर पात्रों को नायक बना कर लिखे गये हैं।

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