some writings
ग़ालिब की आशिकी
भी कुछ अजीब थी
हर बेवफा उसके करीब थी
और कोई पीड़ापहारक दवा भी
उस को कहाँ नसीब थी~ मोहन अलोक ..
भी कुछ अजीब थी
हर बेवफा उसके करीब थी
और कोई पीड़ापहारक दवा भी
उस को कहाँ नसीब थी~ मोहन अलोक ..
यह खुराफती नहीं यकीन करो ग़ालिब
यह नाचीज क्या मदद कर पाये गा
आप जैसे सूरज को दिया दिखाने का
चिश्ता नहीं कर पाये गा ~ मोहन अलोक
यह नाचीज क्या मदद कर पाये गा
आप जैसे सूरज को दिया दिखाने का
चिश्ता नहीं कर पाये गा ~ मोहन अलोक
मुस्कराती है जब भी यह हसीं कलियों की बगिया
मैंने खुद को अतीत में लेजा कर तुम्हे महसूस किया
दर्द दे गया तुम्हारा हाथ झटक कर जाना
सपनों में आ कर तुम्हारा बार बार रुलाना
लाता रहा मेरे मन में तुम्हारे याद का दिया
मुस्कराती है जब भी यह हसीं कलियों की बगिया
मैंने खुद को अतीत में लेजा कर
तुम्हे महसूस किया ~ मोहन अलोक ..
मैंने खुद को अतीत में लेजा कर तुम्हे महसूस किया
दर्द दे गया तुम्हारा हाथ झटक कर जाना
सपनों में आ कर तुम्हारा बार बार रुलाना
लाता रहा मेरे मन में तुम्हारे याद का दिया
मुस्कराती है जब भी यह हसीं कलियों की बगिया
मैंने खुद को अतीत में लेजा कर
तुम्हे महसूस किया ~ मोहन अलोक ..