tanha
तनहा सावन
इस तनहा सावन में
बिखरा क्यूँ मदिरा का प्याला
इस सर्द सावन में
बुझती क्यूँ नहीं ये गर्म जवाला
जहर को आंसू समझ मैं यूं ही पी लिया
तेरी यादों के सहारे कुछ पल जी लिया
तू नहीं तो अब जाम है
सही दिल है मतवाला
इस तनहा सावन में बिखरा क्य्युं
मदिरा का प्याला
इस सर्द सावन में बुझती क्यूँ नहीं
यह गर्म जवाला
जीवन अब तो कोई नया मोर्ड़ मूढ़ गया
मय और मयखाना से
अब मेरा नाता झुर्र गया
भूल गए अब तुम्हे हम
दारू से है न्या रिश्ता निकाला
इस तनहा सावन में बिखरा कय्यू मदिरा का प्याला
इस सर्द सावन में बुझती क्यों नहीं यह गर्म जवाला
कुछ गुस्सा था कुछ शिकायत और कुछ पछतावा
वफ़ा की उम्मीद तुमसे थी एक भुलावा
एक बहुत हसीं दुर्द को हमने है मुश्किल से है पाला
इस तनहा सावन में बिखरा क्य्युं मदिरा का प्याला
इस सर्द सावन में बुझती क्यों नहीं यह गर्म जवाला ….. मोहन अलोक