जब वक्त रुक गया
जब वक्त रुक गया !
कारवां रूक गया !!
मंजिल पर नजर
पर
मील का पत्थर
रुक गया !!
आंखें बेचैन
भावनाओं का समन्दर
उमड़ने को आतुर ।
शंकाएं और जिज्ञासाएं
की खातिर
वो आए
मिलन हुआ उनसे
पर होंठ सिल गए
आंसुओं के मोती
प्रेम की अविरल धारा
से मिल गए
टप-टप गिरता
कोई मोती
रुक गया
जब वक्त रुक गया !
कारवां रूक गया !!
मंजिल पर नजर
पर
मील का पत्थर
रुक गया !!!
भावनाओं ने रफ्तार पकड़ी
मंजिल बन गयी
इस तरह अंतहीन
समय पंख लगाकर उड़ गया
और खो दिया शीन
जिगर में एक दर्द
और उनका छलावा
मन कचोट रहा था
गुनाह का पछतावा
कहने को काफी था
लेकिन वक्त
रुक गया
जब वक्त रुक गया !
कारवां रूक गया !!
मंजिल पर नजर
पर
मील का पत्थर
रुक गया !!
~मोहन अलोक