yaad
मुझे कुछ याद नहीं
मुझे कुछ याद नहीं
यह क्या हो गया
कब किस राह में
मेरा क्या खो गया
पागलों की तुरह दूंडा
जो पराया हो गया
अपना था या पराया
यह नहीं जानता
उस खुदगर्ज को वफ़ा कहूं
मन नहीं मानता
जुदा अब मुझसे मेरा साया हो गया
मुझे कुछ याद नहीं
यह क्या हो गया
कब किस राह में मेरा क्या खो गया
मंजिल दूर थी
फिर तुमने छोड़ दी राह
या कुछ तो था उसमे तुम्हारा गुनाह
एक बार बता दो
जुलम यह क्या हो गया
मुझे कुछ याद नहीं
यह क्या हो गया
कब किस राह में
मेरा क्या खो गया….मोहन अलोक