कोई जा कर उनकी आँखों से कह दे
कोई जा कर उनकी आँखों से कह दे
परेशान न हो ख्यालों से
अगर जवाब नहीं कुछ फर्क नहीं पड़ता
खुद में उलझते सवालों से
गहरी नींदों के हसीन सपनों की डोर
शांत समुद्र में कुछ लहरों का शोर
आँखों की नमी मानो हँसी के सागर
में तड़पती मछली बंद हो जालों में
कोई जा कर उनकी आँखों से कह दे
परेशान न हो ख्यालों से
अगर जवाब नहीं कुछ फर्क नहीं पड़ता
खुद में उलझते सवालों से
तू भी नहीं और तेरा कोई एहसास भी नहीं
आँखों से दूर है, लेकिन दिल के आसपास यहीं
अक्सर मेरी हर सुबह-शाम गुलज़ार रहती हैं।
तेरी नफरत के छटपटाते किसी भुलावे में
कोई जा कर उनकी आँखों से कह दे
परेशान न हो ख्यालों से
अगर जवाब नहीं कुछ फर्क नहीं पड़ता
खुद में उलझते सवालों से
सह ना पाया कोई आततायी मुस्कराता वो चेहरा
राख हुआ मानो दुल्हन और जाता हसीं सेहरा
चीत्कार निकली मानो मां की देख जब
गहरी निद्रा के आगोश जाते मासूम नौनिहालों से
कोई जा कर उनकी आँखों से कह दे
परेशान न हो ख्यालों से
अगर जवाब नहीं कुछ फर्क नहीं पड़ता
खुद में उलझते सवालों से ~ मोहन अलोक