चिडियाँ

 

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दो नन्ही खूबसूरत चिडियाँ

छोटे पेड पर झूले   पे सवार !

आँखों में समाया था

उनके निश्चल प्यार -दुलार !!

ना पीड़ा  ना दुःख  ना तकलीफ

का  एहसास

जीवन सिमटा पेड पर

रही  सदा धुरी के आसपास

छीन लिया  कुछ  गीदों ने 

उनका छोटा सा संसार

आज ना दिखी

उनकी चहल-पहल

दोनों पक्षी थे

लटके थे घायल

ख़ाली झूला झूल

रही थी सिर्फ बयार

दो नन्ही खूबसूरत चिडियाँ 

छोटे पेड पर झूले पे सवार !

आँखों में समाया था

उनके निश्चल प्यार –दुलार !!

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पूछा  जंगल  के  राजा  से  

क्यों हुआ उनका यह   हाल

बोले  कुछ  रौब से 

मना है जंगल  में

करना  ऐसे सवाल

गीद बेचारे

गलती  कर देते हैं

है  उनको  एहसास

दो नन्ही खूबसूरत चिडियाँ 

छोटे पेड पर झूले पे सवार !

आँखों में समाया था

उनके निश्चल प्यार –दुलार ~मोहन अलोक

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