बूर्ढे फौजियों का निकल पड़ा काफिला

oropतन पर गिरती बादलों सी बिजलियाँ
मन में उठती हवा सी ज्वाला

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों  का निकल पड़ा काफिला

कहां खो गयी तेरी वर्दी की शान
किस नीच ने लूटा तेरा अभिमान

चोर डाकूओं की बनी बिरादरियाँ
गरीब और अमीर का बड़ा फ़ासिला

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों का निकल पड़ा काफिला

वतन का फौजी है अमर जाओगे कहां

आसमानो के तारों से कह लूँगा बुला
वर्दी बिन क्या शरीर मर गया भला

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों  का निकल पड़ा काफिला

सब गरीब आत्माओं में
पला है फौजी अंश आपका

किसान मजदूर कामगार
मिल देंगे इन सब को सजा

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों  का निकल पड़ा काफिला

विफल हो गया हर खंजर जो आप पर चला

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों  का निकल पड़ा काफिला

देश प्रेम का संकल्प था तुम में जला

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों  का निकल पड़ा काफिला

अकाल पुरख ने आग लगा अकलदीप से
कोयले की खानो को
सूर्य देव ने जला कर पीला कर दिया
विदेशों से आते सोने और खजानो को
बीमार हो गए सब उद्योग क्यों सो रहा है
समुद्र का रखवाला

तन पर गिरती बादलों सी बिजलियाँ
मन में उठती हवा सी ज्वाला

युद्ध भूमि की मानो  गजल
बूर्ढे फौजियों  का निकल पड़ा काफिला

~ मोहन अलोक

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