राहगीर

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छुप गए हैं  निगाहों  से रास्ते

राहगीर और नज़ारे
लग चुकी है आग इस जहाँ में

मन ज्योति के सहारे
वक्त कम है दुनिआ को

अपनी बनाने के वास्ते
मन में चाह जज्बे हिम्मत

लूट गया तेरे वास्ते
आसमान वही धरती वही

पर छुप गए क्यों सितारे

छुप गए हैं  निगाहों से रास्ते राहगीर और नज़ारे 

लग चुकी है आग इस जहाँ में

मन ज्योति के सहारे 
मृतक की आत्मा भटक गयी

आधुनिकता की रफ़्तार में
भटक गया कोई इंसान

अदनी सी औकात के प्यार से
नहीं संभला कोई बचपन

माँ के निश्चल प्यार -दुलार से
कैसे जीवन यात्रा पूर्ण होगी

एकांत और विरानो के सहारे

छुप गए हैं   निगाहों से रास्ते राहगीर और नज़ारे 

लग चुकी है आग इस जहाँ में

मन ज्योति के सहारे 
हमनें कोशिश की निभाने की

हर रिश्ते नाते कौन रूठा
जीवन डगर में कुछ समरण नहीं

क्या टूटा क्या छूटा
अब तो चाह है की कोई भगवान ही

हमारा जीवन सुधारे

छुप गए हैं. निगाहों से 

रास्ते राहगीर और नज़ारे 

लग चुकी है आग इस जहाँ में

मन ज्योति के सहारे ~मोहन आलोक

मुझे कुछ याद नहीं यह क्या हो गया

क़ब किस राह में मेरा क्या खो गया

पागलों की तरह ढूंढा जो पराया हो गया

अपना    था या पराया यह नहीं जानता

उस खुदगर्ज को वफ़ा कहूं मन नहीं मानता

 जुदा अब मुझसे मेरा साया हो गया

मुझे कुछ याद नहीं यह क्या हो गया

कब किस राह में मेरा क्या खो गया

मंजिल दूर थी फिर तुमने छोड़ दी राह

या कुछ तो था उसमे तुम्हारा गुनाह

एक बार बता दो जुलम यह क्या हो गया

मुझे कुछ याद नहीं यह क्या हो गया

क़ब किस राह में मेरा क्या खो गया~ मोहन अलोक ..

 

 

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