होश में आ मुकदर

 

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जिंदगी में आये तूफानों को

भयानक कहर बनते देखा है

बजती थी शहनाई जहाँ वहां 

मोत सी तन्हाई पलते देखा है

 गुस्से को लहर बनते देखा है

जब करना फरियाद फ़िज़ूल

तो शहर जलते देखा है

  दर्द भरे अफ़्सानो में

हर पल हर पहर जलते देखा है

जिस्मो के नगरी को
रूहों की नहर बनते देखा है

होश में आ  मेरे देश के सूत्रधार 

कई दशकों से तुझे

सर्प जहर बनते देखा है~ मोहन अलोक

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