ख़ामोशी
जब खामोशियों से खामोश दिल ने
की कुछ बातें
भीगी सी पलकों ने जब बयान की
बेज़ुबान हसीं मुलाकातें
अतीत के भंवर में ग़ुम होती
कुछ तनहा रातें
काली चादर और्डे तन्हाई का आलम
बेज़ुबान आँखों को रुलाता सावन
जालम समय की सूइयों को
हमने देखा है कई बार सहलाते
पत्थर के इस जहाँ में ख्वाब मना हैं
तनहा राहों का सफर हम से बना है
तलाशता हूँ हर वक़त तुझे ,
कोई तो उनकी खबर लाते
जब खामोशियों से खामोश दिल ने
की कुछ बातें
भीगी सी पलकों ने जब बयान की
बेज़ुबान हसीं मुलाकातें~ मोहन अलोक