मुक्त है गगन मेरा मुक्त है मेरी हवाएँ !

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मुक्त है गगन मेरा मुक्त है मेरी हवाएँ !

मुक्त धरती है हमारी मुक्त है अब कल्पनाएँ

दासता से है युगों की देश ने अब मुक्ति पाई
अब न मेरे देश का धन भूखे किसानो से छिनेगा
द्वेष मिट जाये यहाँ से कलेश कूट जाये यहाँ से
सब सुख समृधि होवे सवर्ग ले आयें धरा पर !

मैं न हूंगा, पर रहेंगे गीत मेरे !
एक दिन यह देह मेरी, ख़ाक का एक ढेर
धूल ही रहे गी, या रहेंगे गीत मेरे !
राख मेरी को हवाएँ, ले दिशाओं में उर्ढ़ेंगी
हडिओं को नदी की धार सहसा ले बहेगी
स्नेहिओं के हर्दयिओन में भी, याद धुंधली पड़ जायेगी __ मेहता वसिष्ठ

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