sambhalke
संभल संभल के जीते थे हम
अब संभल के भी चल देंगे
कफ़न न डालो मेरे चेहरे पे
चिंगारी की आग को भी
पानी कह दें गे
इस आशिक़ दिल में क्या
क्या छुपा है
हर दर्द क़े पुराने
जखम कह देंगे
माना की यह रास्ते हैं
बहुत अनोखे
रास्तों में पड़े लफ्जात
क़े धोखे
सह लेंगे
संभल संभल के जीते थे हम
अब संभल के भी चल देंगे ~ मोहन अलोक