साथी चलो घर लोट जाते हैं

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शाम हो गयी अब सितारों में बसे
कुछ दोस्त बुलाते हैं
साथी चलो घर लोट जाते हैं
कोनसी थी वह नगरी कैसे थे यह राह
बदनाम कुछ गलियां और हमारी कमजोर निगाह
वक़्त के मजबूर पल क्यों यहां ले आते हैं

शाम हो गयी अब सितारों में बसे
कुछ दोस्त बुलाते हैं

साथी चलो घर लोट जाते हैं

साथी चलो घर लोट जाते हैं

अथाह पीड़ा मुश्किल घड़ियों की
बदलते मूल्यों की अजीब कड़िओं की
कैसे कुछ कारवां गुम हो जाते हैं
साथी चलो घर लोट जाते हैं
सीने में पीड़ा अँधेरे दहशत दिखाने लगे
तारों में छुपे कुछ दोस्त अब बुलाने लगे
फिसलती जमीन पर अब पाँव लरड़खड़ाते हैं

शाम हो गयी अब सितारों में बसे
कुछ दोस्त बुलाते हैं

साथी चलो घर लोट जाते हैं
कैसी थी जमीन कैसे थे कुछ अजनबी लोग
कैसे था वह वतन और कैसे थे इसके रोग
टूटी जिंदगी में सपने
शब्दों  में खो जाते हैं

शाम हो गयी अब सितारों में बसे
कुछ दोस्त बुलाते हैं

साथी चलो घर लोट जाते हैं

साथी चलो घर लोट जाते हैं

~मोहन अलोक

 

 

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