waqat

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तब मेरे पास वकत था

तब मेरे पास वकत था
की मैं रो लेता
जीवन के बचे  पल
में सो लेता
तब मेरे पास वकत था
कभी सपनो के
महल बनाये
तो कभी बिखरे
आशाओं के फूल
कभी मुर्जाये
तो कभी निखरे
उन बिखरी आशाओं को
 सपनों में पिरो लेता
तब मेरे पास वकत था
जीवन को हार कर भी
खुद पर नाज था
सुर सब छीने थे तुमने
पर एक साज तो था
जीवन के सुरों में आँखें भिगो लेता
तब मेरे पास वकत था ………मोहन अलोक ..

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