महाराणा प्रताप महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था । उनके पिता महाराणा उदयसिंह द्वितीय और माता रानी जीवन कंवर थीं। महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने चित्तौड़ में अपनी राजधानी के साथ मेवाड़ राज्य पर शासन किया। सन् 1572 ई० में राणा उदय सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र राणा प्रताप सिंह गद्दी पर बैठा। अकबर ने राणा के पास कई दूत भेजे, कि वह उसकी अधीनता स्वीकार कर ले । परन्तु राणा प्रताप स्वाभिमानी था। दिनांक 21 जून, 1576 में मान सिंह ने पांच हजार सैनिकों के साथ राणा प्रताप पर आक्रमण कर दिया। हल्दी घाटी के स्थान पर दोनों सेनाओं में भंयकर युद्ध हुआ। राणा की सेना में तीन हजार सैनिक थे। उनमें कुछ भील युवक भी जी जान से लड़े। राणा प्रताप का प्रिय घोडा चेतक उसे शत्रु के पंजे से सकुशल भगाकर ले गया। अकबर को दुःख था कि राणा न मारा गया, न पकड़ा गया। चितौड़ में स्थान- स्थान पर आग लगी थी। मान सिंह ने अकबर को बताया- राजपूतनियों द्वारा जोहर किया जा रहा है । चितौड़ पर मुगल सेना का अधिकार हो गया। शाही सेना ने कत्ले आम शुरु कर दिया। मुगल खुश थे। जीतें या हारें, काफिर ही मरते है हल्दी घाटी एक तीर्थ स्थल बन गया। राजपूतों के त्याग और बलिदान की यह कहानी है। पास ही चेतक की समाधि है । इब्राहिम लिंकन एक बार भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि मैं हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए| तब माँ का जवाब मिला- “उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना । राणा प्रताप सपरिवार वनों में भटकते रहे, घास की रोटियाँ खाई परन्तु उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकर नहीं की। एक बार वे अवश्य विचलित हो गए थे। जब उनकी प्रिय पुत्री चम्पा ने भूख-प्यास से तड़पकर प्राण त्याग दिए थे। उन्होंने अकबर के नाम पत्र लिखा कि वह उसकी अधीनता स्वीकार करने को तैयार है। वह पत्र पृथ्वी सिंह के हाथ लग गया। पृथ्वी सिंह अकबर के दरबार में उच्च पद पर नियुक्त था। उसे राणा प्रताप का पत्र पढ़कर बड़ा दुःख हुआ। उसने राणा को लिखा, ‘तुम भारत माता के वीर सपूत हो, तुम्हारे ऊपर हमारी कौम को गर्व है। तुम्हारे कारण ही राजपूत समाज में सम्मानित हैं। उन्होंने लिखा हे राणा प्रताप ! तेरे खड़े रहते ऐसा कौन है जो मेवाड़ को घोड़ों के खुरों से रौंद सके ? हे हिंदूपति प्रताप ! हिंदुओं की लज्जा रखो। अपनी शपथ निबाहने के लिये सब तरह को विपत्ति और कष्ट सहन करो। हे दीवान ! मै अपनी मूँछ पर हाथ फेरूँ या अपनी देह को तलवार से काट डालूँ; इन दो में से एक बात लिख दीजिए। यह पत्र पाकर महाराणा प्रताप पुनः अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हुए और उन्होंने पृथ्वीराज को लिख भेजा ‘हे वीर आप प्रसन्न होकर मूछों पर हाथ फेरिए। जब तक प्रताप जीवित है, मेरी तलवार को तुरुकों के सिर पर ही समझिए।’ 1576 में, हल्दीघाटी की प्रसिद्ध लड़ाई 20,000 राजपूतों के साथ राजा मान सिंह की कमान वाली 80,000 पुरुषों की मुगल सेना के खिलाफ लड़ी गई थी। मुगल सेना के विस्मय के लिए लड़ाई भयंकर थी, हालांकि अनिर्णायक थी। महाराणा प्रताप की सेना पराजित नहीं हुई थी लेकिन महाराणा प्रताप मुगल सैनिकों से घिरे हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि इस बिंदु पर, उनके अलग हुए भाई, शक्ति सिंह प्रकट हुए और राणा की जान बचाई। इस युद्ध का एक और शिकार महाराणा प्रताप का प्रसिद्ध और वफादार घोड़ा चेतक था, जिसने अपने महाराणा को बचाने की कोशिश में अपनी जान दे दी थी। इस युद्ध के बाद अकबर ने कई बार मेवाड़ पर अधिकार करने की कोशिश की, हर बार असफल रहा। महाराणा प्रताप स्वयं चित्तौड़ को वापस लेने के लिए अपनी खोज जारी रखे हुए थे। हालाँकि, मुगल सेना के लगातार हमलों ने उनकी सेना को कमजोर बना दिया था, और उसके पास इसे जारी रखने के लिए मुश्किल से ही पर्याप्त धन था। ऐसा कहा जाता है कि इस समय, उनके एक मंत्री, भामा शाह, आए और उन्हें यह सारी संपत्ति प्रदान की – एक राशि जो महाराणा प्रताप को 12 वर्षों के लिए 25,000 की सेना का समर्थन करने में सक्षम बनाती थी । कहा जाता है कि भामा शाह के इस उदार उपहार से पहले , महाराणा प्रताप, अपनी प्रजा की स्थिति से दुखी होकर, अकबर से लड़ने में अपनी हिम्मत खोने लगे थे लेकिन भामा शाह ने अपनी पूरी सम्पती देकर महाराणा प्रताप को फिर सशक्त कर दिया । Kindly visit