अनकहे अलफ़ाज़ जुबान से फिसल जाते हैं
खामोश मन पर उलझे हालात मचल जाते हैं
तेरे ख्याल में सांसे गुनगुनाएं दर्दे गजल
जैसे गहरे रिश्तों में बेवजह उलझता आँचल
आँखों में में ख्वाब लिए कश्के पल निकल जाते हैं
अनकहे अलफ़ाज़ जुबान से फिसल जाते हैं
खामोश मन पर उलझे हालात मचल जाते हैं
गुजरते हसरतों के लम्हों में उनकी याद
रातें कटी तेरे संग लम्हे गुजरने की फरियाद
ज़हर-ए-ज़हन लिए कुछ इंसान बदल जाते हैं
अनकहे अलफ़ाज़ जुबान से फिसल जाते हैं
खामोश मन पर उलझे हालात मचल जाते हैं
रूठे लम्हों में कुछ जज्बात निकल जाते हैं~मोहन अलोक