ancient indian history

Rishi Richik

 

ऋचीक :
विष्णु धर्म में और्व और ऋचीक को एक ही माना है। अनेक स्थानों पर इसे भृगुनंदन, भार्गव एवं भृगु कहा है।  आप्तवान् का पुत्र उरु और उरु का पुत्र ऋचीक और्व था। ये ऋषि राजा कृतवीर्य हैहय के राज पुरोहित थे कृतवीर्य इन्हें बहुत सी सम्पति दी थी कृतवीर्य के पश्चात उसका पुत्र कार्तवीर्य अर्जुन सिंहासन पर बैठा तो उसने भार्गवों से धन-सम्पति वापिस मांगी। कुछ लोगों ने डर से धन लौट दिया। परन्तु कुछ ने धरती में गाढ़ दिया। एक भार्गव स्त्री के घर धन निकला। अर्जुन बहुत क्रुद्ध हुआ उसने भार्गवों के संहार का आदेश दे दिया। शरण में आए भार्गव ऋषि भी राजा की सेना द्वारा मारे गए। गर्भस्थ बच्चों की भी हत्या कर दी गई। कई स्त्रियों हिमालय की ओर भाग गई। अधिकतर भार्गव आनर्तदेश (गुजरात) छोड़कर कान्यकुब्ज में बस गए।
हैहय क्षत्रियों ने सभी ओर अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरू कर दिया था। कई क्षत्रिय राजा उनकी बढ़ती हुई शक्ति पर रोक लगाना चाहते थे। उन्हीं में से कान्यकुब्ज के राजा गाधि भी एक थे। ऋऋचीक के कहने पर गाधि ने अपनी पुत्री सत्यावती का विवाह उनसे करने का प्रण किया परन्तु यह शर्त रखी कि ऋचीक एक हजार श्याम वर्ण अश्व राजा को दें। स्कन्द पुराण में घोड़ों की संख्या सात सौ है। ऋषि ऋचीक कान्यकुब्ज देश में गंगा के किनारे बैठ गए। चार ऋचाओं का पठन कर इन्होंने अश्व प्राप्त किए। यह स्थान अश्व तीर्थ कहलाता है।
ऋचीक अपनी पत्नी सत्यवती के साथ गृहस्थ धर्म निभाने लगे। तपस्या पर जाने से पूर्व उन्होंने अपनी पत्नी को वर मांगने के लिए कहा। सत्यवती ने अपने लिए शान्त ब्राह्मण प्रवृत्ति वाला पुत्र तथा अपनी मां के लिए क्षत्रियोचित गुणों वाला पुत्र मांगा ऋचीक ने दो चरू सिद्ध करके दिए एक सत्यवती के लिए दूसरा उसकी मां के लिए।

सत्यवती की मां ने चरू बदल दिए। बेटी का चरू स्वयं खा लिया और अपना बेटी कोदे दिया। सत्यवती यह जानकर बड़ी व्यथित हुई। उसने ऋचीक से प्रार्थना की कि वह अपना बेटा शान्त स्वभाव वाला चाहती है, क्रूर और कठोर नहीं। हाँ, पोता चाहे क्षत्रियों जैसे गुणों वाला हो। सत्यवती का पुत्र जमदग्नि शान्त, क्षमाशील, तप-परायण हुआ जमद् का अर्थ है- भक्षण।
जमदग्नि के अतिरिक्त ऋचीक के दो पुत्र शुनः शेप व शुनः पुच्छ हुए। ऋचीक धनुर्विद्या में प्रवीण थे। इन्हें विष्णु ने एक धनुष दिया था, जो इन्होंने जमदग्नि को दे दिया। गाधि का पुत्र विश्व रथ या विश्वामित्र हुए, जो क्षत्रिय होते भी ऋषि बने।
महर्षि ऋचिक भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी के पिता के पिता थे अर्थात् परशुराम जी इनके पौत्र थे। भगवान शिव और भगवान विष्णु का प्रयलंकारी युद्ध होने के बाद भगवान शिव ने अपना पिनाक धनुष राजा देवरथ को दे दिया था जो माता सीता के पिता राजा जनक के पूर्वज थे। भगवान विष्णु ने अपना सारंग धनुष इन्हीं महर्षि ऋचिक के पौत्र , महर्षि जमदग्नि देवी रेणुका के पुत्र भगवान विष्णु के अवतार परशुराम धारण किया था। बाद में परशुराम जी ने इसे महाराज दशरथ और देवी कौशल्या के पुत्र , महाराज अज के पौत्र श्रीराम को दे दिया था।

English Translation.

Richik:
Maharishi Richik was the father of Lord Vishnu’s incarnation Parshuram ji’s father, that is, Parshuram ji was his grandson. After the epic battle between Lord Shiva and Lord Vishnu, Lord Shiva gave his pinaka bow to King Devaratha who was the ancestor of King Janak, the father of Mother Sita. Lord Vishnu had donned his Sarang bow by the grandson of this Maharishi Richik, Parshuram, the incarnation of Lord Vishnu, the son of Maharishi Jamdagni Devi Renuka. Later Parshuram ji gave it to Shri Ram, the grandson of Maharaj Aj, the son of Maharaj Dashrath and Devi Kaushalya.
In Vishnu’s religious belief, Aurva and Richik are always considered the same. In many places he is called Bhrigunandan, Bhargava and Bhrigu. The son of Aptiwan was Uru and Uru’s son was Richik Aurva. This sage Kritavirya was the king priest of Haiya.
The king had given him lot of wealth.
After his death, his son Arjun became king. He asked bhargvas to return money given to them by his father.
Some members of bhargava family returned the money with fear. But some threw it on the earth. Some money was found in the house of a bhargava woman. Arjuna was very angry, he ordered the destruction of the Bhargavas. Bhargava Rishi, who came to the shelter, was also killed by the king’s army. The unborn children were also murdered. Many women ran towards the Himalayas. Most Bhargava left Anartesh (Gujarat) and settled in Kanyakubj. Kshatriyas started establishing their dominance on all sides. Many Kshatriya kings wanted to stop his growing power. Among them, King Gadhi of Kanyakubj was also one. At the behest of Rirchiq, Gadhi pledged to marry his daughter Satyavati, but placed the condition that Richik should give one thousand Shyam Varna to Ashwa King. The number of horses in the Skanda Purana is seven hundred. Rishi Richik Kanyakubj sat on the banks of the Ganges in the country. He obtained the horse by reading four rituals. This place is called Ashwa Tirtha. Richik started following sanatna dharma religious belief, along with his wife Satyavati. Before going on penance, he asked his wife to ask for a wish.
Satyavati, asked for a son with a peaceful Brahmin tendency for herself and a son of Kshatriyas qualities for her mother. Richik blessed them with two charus, one each for her and her mother. Satyavati’s mother changed the Charu. Consequently ywo sons were born to her mother and one to Satyavati.  The daughter ate the charu on her own and gave her daughter Kode. Satyavati was very distressed to know this. She prayed to Richik that she wants her son of peaceful, and not cruel and harsh. She wanted that the grandson should be with the qualities like Kshatriyas. Satyavati’s son Jamadagni Shanta, forgiveness, Tapa-Parian Hua Jamad means Bhasak. Apart from Jamadagni, Richik’s two sons, were Shun and Shunah. Richik was proficient in archery. He was given a bow by Vishnu, which he gave to Jamadagni. Gadhi’s son became Vishwa Chariot or Vishwamitra, who became a sage as a Kshatriya.

 

 

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