जमदग्नि और परशुराम : जमदग्नि ऋषि ऋचीक के पुत्र थे अतः उन्हें आर्चिक भी कहते हैं। वे वैवस्वत मन्वतर के सप्तर्षियों में एक हैं। कश्यप ऋषि ने उन्हें षडाक्षर का उपदेश दिया। वे अक्षर ब्रह्म का उपदेश करते थे। ऋग्वेद में इनके कई सूक्त हैं। इनका विवाह इक्ष्वाकु राजा रेणु, प्रसेनजित की पुत्री कामली रेणुका से हुआ। इन्द्र ने इन्हें वर दिया कि ईश्वर के अंश से उनके एक पुत्र होगा। यह पुत्र राम अथवा परशुराम विख्यात हुआ यह विष्णु का अवतार माना जाता है। उपनयन के बाद कश्यप ने इन्हें मंत्रोपदेश दिया। इन्होंने शंकर को प्रसन्न कर धनुर्विधा शस्त्र विद्या एवं मंत्रोपयोग आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया। जमदग्नि के चार पुत्र और थे- रुमण्वत, सुषेण, वसुमत् और विश्वावसु । एक बार रेणुका राजा चित्ररथ या चित्रांगद को अपनी शनियों के साथ क्रीड़ा करते देखती रही और आश्रम में देर से लौटी जमदग्नि ने अपने पुत्रों को मां का वध करने (त्याग देना) की आज्ञा दी। चारों पुत्रों ने इन्कार कर दिया। परन्तु परशुराम पिता की आज्ञा पालन के लिए तत्पर हो गए। पिता ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने को कहा। परशुराम ने मां और भाईयों को पुनर्जीवित (अपना लेना) करने का वर मांगा। तब जमदग्नि को बहुत पश्चाताप हुआ। उसने क्रोध छोड़ दिया। गंगा तट पर जमदग्नि ने कई वर्ष कठोर तप किया। इन्द्र ने प्रसन्न होकर इन्हें कामधेनु दी। एक बार हैहय राजा कार्तवीर्य अर्जुन सेना सहित अकस्मात् जमदग्नि के आश्रम में पहुचा। ऋषि ने षडरसी राजसी भोजन से उन सब का सत्कार किया। राजा को पता लगा कि यह दुर्लभ सत्कार सामग्री गाय ने तत्काल उत्पन्न कर दी है, तो उसने ऋषि से गाय मांगी। पर ऋषि ने देने से इन्कार कर दिया क्रुद्ध राजा ने ऋषि के आश्रम को आग लगा दी। परशुराम ने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए कार्तवीर्य अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा की परन्तु जमदग्नि ने इसे रोक दिया। परशुराम ने पिता को समझाया, “दुष्टों का दमन न करने के भंयकर प्रणाम होते हैं।” जमदग्नि ने उन्हें ब्रह्मा की सम्मत्ति प्राप्त करने के लिए कहा। ब्रह्मा ने शंकर के पास भेजा। इनकी सम्मति प्राप्त करने के बाद वे अगस्त्य ऋषि के पास गए। वहां से आज्ञा लेकर गंगा के उद्गम पर तपस्या की और शास्त्र प्रशिक्षण लिया। तत्पश्चात् नर्मदा तट पर आकर कार्तवीर्य को युद्ध का सन्देश भेजा। दोनों में घमासान युद्ध हुआ। परशुराम ने हैहय राजा कार्तवीर्य, तथा उसके पुत्रों व सौ अक्षौहणी सेना नष्ट कर दी परशुराम यह वृत्तान्त शिवजी को बताने गए। गणेश ने उन्हें शिव से मिलने वहीं दिया। परशुराम ने फरसे से गणेश का दांत तोड़ दिया जमदग्नि ने क्षत्रिय हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए परशुराम को 12 वर्ष तप करने को कहा। परशुराम की अनुपस्थिति में हैहय राजा ने अपनी विशाल सेना से जमदग्नि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया। गाय की रक्षा हेतु असंख्य शूरवीर खडगधारी महाबलि सैनिक प्रकट हुए। उन्होंने राजा की सेना को हरा दिया। राजा ने और सेना मंगवाई। उन्होंने सभी आश्रमवासियों को मूर्च्छित कर दिया। अकेले मुनि ने शर और धनुष लेकर युद्ध किया। परन्तु धेनु की रक्षा में असमर्थ रहे। राजा ने जमदग्नि की हत्या कर दी। गाय भी आर्तनाद करती गोलोक चली गई। रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम को बुलाया और इक्कीस बार छाती पीट कर पति की हत्या का वृत्तान्त सुनाया। परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी को शत्रुओं से विहीन करने का प्रण किया। परशुराम पिता के शव और मां को डोली में बैठा कर कान्य कुब्ज आश्रम से निकल पड़े। वे विभिन्न तीर्थ स्थानों व वनों को लांघते पश्चिमी घाट पर “मल्लकी” तीर्थ दत्तात्रेय क्षेत्र में पहुंचे। जहां रेणुका ने भी देह त्याग दी। उन्होंने वहीं माता-पिता का दाह संस्कार किया। महाराष्ट्र में यह स्थान “माहूर” कहलाता परशुराम प्रतिज्ञा पालन हेतु अपने गुरु अगस्त्य के पास पहुंचे। उन्होंने परशुराम को उत्तम रथ व आयुध दिए। जमदग्नि पुत्र परशुराम इक्ष्वाकु राजा हरित के समकालीन थे। दाशरथि राम हरित से तीस पीढ़ी बाद हुए। अयोध्या का राजा बृहद्दल जो महाभारत युद्ध में मारा गया। वह राम के तीस पीढ़ी बाद हुआ। इस प्रकार परशुराम महाभारत से साठ पीढ़ी पहले हुआ।
आधुनिक इतिहासकारों ने महाभारत का समय चौदह सौ से बारह सौ वर्ष ईसा पूर्व निर्धारित किया हैं तथा परशुराम का महाभारत से लगभग 2550 वर्ष ई० पूर्व से 2250 वर्ष ई० पूर्व तक निर्धारित किया है। परशुराम ने रुद्र द्वारा दिया शंख फूंका कार्तवीर्य के पुत्र शूरसेन ने अन्य राजाओं के साथ परशुराम का सामना किया। परन्तु वे सभी मारे गए। उनकी राजधानी महिष्मती परशुराम की सेना द्वारा जला दी गई। उनमें से थोड़े क्षत्रिय बचे, वे कैदी बना लिए व निम्न कार्य करने पर बाध्य हुए। परशुराम महेन्द्र पर्वत पर दस वर्ष तपस्या करते उसके पश्चात् दो वर्ष अपने शत्रुओं की सन्तानों का वध करते खाण्डव वन की पहाड़ियों में हैहय क्षत्रियों के साथ भंयकर युद्ध होता रहा हारे हुए कई क्षत्रियों को परशुराम कुरुक्षेत्र ले आए। वहां उन्होंने पितरों को तर्पण दिया। तत्पश्चात् चन्द्रपाद (गया) नामक स्थान पर उन्होंने श्राद्ध किया। इस प्रकार वे प्रतिज्ञा मुक्त हुए। ऋषियों ने परशुराम को क्षत्रिय-हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए प्रायश्चित करने को कहा। उन्होंने रथ और अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और पुनः ब्राह्मण बन गए। उनके शस्त्र त्याग देने के पश्चात् हैहयों ने उनके सम्बंधियों पर अत्याचार आरम्भ कर दिए। विश्वामित्र के पोते परावसु ने परशुराम को भरी सभी में ताना दिया “तुम क्षत्रियों से डर कर वनों में भाग गए हो।” इस चुनौती से परशुराम ने पुनः शस्त्र धारण किए और शत्रुओं का संहार आरम्भ कर दिया। परशुराम हैहय युद्धों में अयोध्या, कान्य कुब्ज, वैशाली, विदेह और काशी के राजा परशुराम साथ थे। परशुराम हैहय युद्ध का उल्लेख अथर्ववेद में भी है। यह युद्ध प्राचीन भारत का प्रथम महायुद्ध कहलाता है। कच्छ से कन्या कुमारी तक का इलाका “परशुराम देश कहलाने लगा। भृगुवंशियों या भार्गवों का इतना प्रभाव बढ़ गया कि कई लोग भार्गवों में शामिल हो गए। जैसे मौद्गलायन, सांकृत्य, गार्ग्यायन, कपि, मैत्रेय आदि पशुराम ने हैहय राजाओं का संहार कर सम्पूर्ण पृथ्वी जीतकर, अश्वमेघ यज्ञ किया। इसके लिए बतीस हाथ ऊँची स्वर्ण वेदी बनाई। इस यज्ञ में मार्कण्डेय ‘ब्रह्मा’ कश्यप ‘अध्वर्यु’ (यजुर्वेद ज्ञाता), गौतम ‘उद्गाता’ था (सामवेद के ज्ञाता) व विश्वामित्र होता’ थे। भारद्वाज, अग्निवेश आदि ऋषियों ने भी इसमें भाग लिया। यज्ञ के बाद महेन्द्र पर्वत के अतिरिक्त परशुराम ने सारी पृथ्वी कश्यप को दान दे दी। शेष क्षत्रियों के बचाव के लिए कश्यप ने परशुराम को दक्षिण सागर के पश्चिमी तट पर चले जाने को कहा। परशुराम ने समस्त भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। उस समय ब्राह्मण देश का नेता व कर्णधार समझा जाता था। प्रजा के हितों का पालन करने वाले व्यक्ति को राज्य–सत्ता सौंपी जाती थी। परन्तु हैहय राजाओं ने ऋषियों के आश्रमों को नष्ट कर गर्भवती स्त्रियों को मौत के घाट उतार, मर्यादाओं का उल्लंघन किया था। कई क्षत्रिय राजा भी उनकी बढ़ती हुई शक्ति को रोकना चाहते थे। अतः उनकी सहायता से परशुराम ने हैहयों से टक्कर ली। अपनी माता व पिता के शव को लेकर स्थान-स्थान पर घूमने का उनका उद्देश्य, अत्याचारी राजाओं के विरूद्ध प्रजा को जागृत करना था। भगवान परशुराम ने हैहयों के विशाल साम्राज्य को नष्ट कर दिया था। अपने जीवन काल में उन्होंने उनके सभी छोटे बड़े शक्ति केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया था। परन्तुं उनके बाद वे फिर उठ खड़े हुए। तालजंघ हैहयों के वंशज थे उनमें पांच उपजातियां थीं। उन्होंने कान्यकुब्ज, कौशल और काशी पर बार-बार हमले किए और अयोध्या के राजा हरित के पोते बाहु को राज्यच्युत कर दिया। राजा बाहु की मृत्यु भार्गव ऋषि अग्नि और्व के आश्रम के पास हुई। बाहु की गर्भवती पत्नी को ऋषि ने आश्रम में रखा। उसका बेटा सगर हुआ। सगर को ऋषि ने अस्त्र-शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया। उसका राज्याविभषेक अथर्वनीधि वसिष्ठ ने किया। सगर ने आग्नेय अस्त्रों कीसहायता लेकर हैहय राजाओं को पराजित कर अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया है। भगवान परशुराम से सम्बंधित मुख्य आश्रम निम्न है :जमदग्नि आश्रम या पंचतीर्थ, मेरठ के पास हिंडन नदी पर मातृ-तीर्थ, महाराष्ट्र में माहूर, रेणुका दहन। महेन्द्र पर्वत. पूर्वी घाट, परशुराम की तपोभूमि उड़ीसा में है। शूर्पारक बम्बई के पास सोपारा ग्राम सागर को हटा कर परशुराम ने तपःस्थली बनाया था कच्छ से लेकर कन्या कुमारी तक का क्षेत्र परशुराम क्षेत्र कहलाता था। मडगांव या मातृगांव गोवा में तथा अन्य स्थानों पर भगवान परशुराम के मन्दिर हैं। गोकर्ण क्षेत्र, दक्षिण में कारावार जिले में हैं। जंबुवन, कोटा (राजस्थान) के पास पाठन ग्राम परशुराम तीर्थ, नर्मदा नदी के तट पर लोहान्य ग्राम। रेणुका गिरि, अलवर – रिवाडी रेलमार्ग पर रैणागिरि। परशुराम ताल या रेणुका ताल, हिमाचल में नाहन के पासं चिपलूण, महाराष्ट्र में। राम हृद, कुरुक्षेत्र के पास वहां परशुराम जी ने कुण्डों की स्थापना की थी। इन्हें संमत-पंचक भी कहते हैं। भृगु कुल के मंत्रकार ऋषि निम्न हैं : आत्मवत्, आद्विषेण, उर्व या और्व, गृत्स, च्यवन, जमदग्नि, दधीचि ऋचीक, दिवोदास, प्रचेतस ब्रह्मवत् भृगु, युद्धाजित, वीतहव्य, वेद, वैन्य (पृथु) रौनक, सारस्वत, सुवर्चस, सुधस्, अपर, नभ, कवि आदि। भार्गव गण:- भृणु वारूणि, च्यवन के अतिरिक्त सात गण प्रमुख हैं-वत्स, विद्, आष्टिषेण, यरक, वैन्य, शौनक, मित्रायु भृगुकुल के प्रमुख गोत्रकार ऋषि निम्न हैं: आप्तवान, और्व, च्यवन, जमदग्नि और भृगु इन पांच प्रवरों के अन्तर्गत गोत्रकार ऋषि हैं अनन्त, अनुमति, आतवान, आलुक, ऐलिक और्य, कुत्स, कोत्स, कौसि, गायन, गार्ग्यायन, गोष्ठायन, च्यवन, बालाकि, भृगु, मंड, मुंड, मार्कड, भार्गेय, मांडूक, मौदगलायन, यौज्ञेय, रौहित्यायनि, लालाटि, लुब्ध, लोलक्षि, लिंबुकि, वात्स्य, विरूपक्ष विष्णु-वीतहव्य वेगायन, वैशंपायन, शांगख शिखावर्त, साकृत्य, सार्पि, सौह, सावर्णिक, सौचिक आदि भृगु रैवस, वीत हव्य और वैवस चार प्रवरों के अन्तर्गत गोत्रकार ऋषि है काश्यपि, कौशापि, गार्गीय, चालि, जाबालि, तिथि, दम, पिलि, बालपि, भागवित्ति, भागिल, मथित, मौन, यस्क, रामोद, वीतहव्य, सौर आदि । आप्तवान, च्यवन और भृगु तीन प्रवरात्मक गोत्रकार ऋषि है उभयजात और्वेय कायनि, जामदग्नि, पौलस्त्य, विद, बैज मृत मारूत, शाकटायन आदि। दिवोदास, भृगु वहन्यश्व इन तीन प्रवर वाले गोत्रकार ऋषि हैं- आप कायनि, अपिशि खांडव, द्रौणायन, मैत्रेय, शाकटाक्षः शालायनि और हंसजिह्न आदि । भृगु और गृत्समद दो प्रवरों के ऋषि हैं- एकायन, कार्दमायनि, गृत्समद, चौक्षि, प्रत्यूह, मत्स्यगंध, यज्ञपति, शाकायन, सनक, सौरि आदि। उपरोक्त सूची के अतिरिक्त भृगु कुल में कई और गोत्रकार ऋषि हुए हैं। जिनके नाम से भार्गवों की उपजातियाँ बन गई !
English Translation
Jamadagni and Parshuram: Jamdagni was the son of Rishi Richik, hence he is also called Archik. He is one of the Saptarishis of Vaivaswat Manvatar. Kashyap Rishi taught him the Shadakshar. He used to preach Akshar Brahma. There are many hymns of him in Rigveda. He was married to Kamali Renuka, daughter of Ikshvaku king Renu, Prasenjit. Indra gave him a boon that he would have a son from a part of God. This son became famous as Parshuram, he is considered an incarnation of Vishnu. After Upnayan, Kashyap gave him a mantra. By pleasing Shankar, he acquired the knowledge of archery, weaponry etc. Jamadagni had four more sons – Rumanvat, Sushen, Vasumat and Vishvavasu. Once Renuka saw King Chitraratha or Chitrangada playing with her Saturns and Jamadagni, who returned late to the hermitage. Jamadagni ordered his sons to kill their mother. All the four sons refused to murder her. But Parshuram got ready to obey his father’s order. The father was pleased and asked him to ask for a blessing.
Parshuram asked for the boon of reviving to life, his mother and brothers. Then Jamdagni repented a lot. He sacrificed his anger. Jamdagni did severe penance for many years on the banks of the Ganges. Indra was pleased with him and gave him a Kamdhenu cow. Once Haihay King Kartavirya Arjuna along with the army suddenly reached Jamadagni’s hermitage. The sage felicitated them all with 60 royal meals. When the king came to know that this rare hospitality material was produced by the Kamdhenu cow, he immediately, asked the sage for gifting him the cow. But the sage refused to give the cow. This enraged the king. He set the sage’s hermitage on fire. Thereafter Parashurama vowed to kill Kartavirya Arjuna to avenge his father’s insult. But Jamadagni stopped him. Parshuram explained to his father, “There are terrible salutations for not suppressing the wicked.” Jamadagni asked him to get Brahma’s consent, before killing, the king. Brahma sent him to Shankar. After getting his consent, he went to the sage Agastya. Taking permission from him, he did a penance at the origin of Ganga and took detailed training on religious scriptures. After that he returned to the banks of Narmada and communicated a message of declaration of war to Kartavirya. There was a fierce battle between the two armies. Parshuram destroyed Haihay king Kartavirya, and his sons and hundreds of the soldiers Akshauhani army. Parshuram thereafter went to tell this story happily to Lord Shiv ji. Ganesha allowed him to meet Shiva. Parshuram broke Ganesha’s tooth with his axe, in anger. Jamadagni asked Parashurama to do penance for 12 years to get rid of the sin of killing a Kshatriya. In the absence of Parshuram, King Haihay attacked Jamadagni’s hermitage with his huge army. Innumerable brave sword-wielding Mahabali soldiers appeared to protect the cow. They defeated the king’s army. The king called for more army. He made all the ashram residents unconscious. The sage fought alone with a spear and a bow. But he was unable to protect Dhenu. The king killed Jamdagni. The cow also gone to him crying. Renuka called her son Parshuram and narrated the whole story of killing of her husband by beating her chest, many times. Parashurama vowed twenty one times to make the earth devoid of enemies. Parshuram left the Kanyakubj ashram with his father’s dead body and mother sitting in a doli. Crossing various pilgrimage places and forests, they reached the “Mallaki” shrine Dattatreya area on the Western Ghats. Where Renuka also left her body. He cremated his parents there. In Maharashtra this place is called “Mahur”. Parshuram went to his Guru Agastya to fulfill his vow. He gave the best chariot and best weapons to Parshuram. Jamdagni’s son Parshuram was a contemporary of Ikshvaku king Harit. Dasharathi Ram happened thirty generations after Harit. Brihaddal, the king of Ayodhya, who was killed in the Mahabharata war, happened thirty generations after Ram. Thus Parshuram happened sixty generations before the Mahabharata. Modern historians have determined the time of Mahabharata from 1400 to 1200 years BC and that of Parshuram from Mahabharata from about 2550 BC to 2250 BC. Parashurama blew the conch shell given by Rudra. Kartavirya’s son Shurasena along with other kings confronted Parashurama. But all of them were killed. His capital Mahishmati was burnt by Parashurama’s army. A few Kshatriyas survived and were made prisoners and forced to do work as slaves. Parshuram did ten years of penance on the Mahendra mountain, after killing the two children of his enemies. There was a fierce battle with the Haihay Kshatriyas in the hills of the Khandav forest, many Kshatriyas were defeated. Parshuram brought them to Kurukshetra. There, he offered oblations to his ancestors. After that he performed Shradh at a place called Chandrapad (Gaya). Thus they were all freed from the pledge. The sages asked Parashurama to atone to be absolved of the sin of Kshatriya-killing. He abandoned the chariot and weapons and became a Brahmin, once again. After his giving up arms, the Haihayas, once again started torturing his relatives. Vishvamitra’s grandson Paravasu taunted Parashurama in public “You have fled to the forests fearing the Kshatriyas.” With this challenge, Parshuram again took up his arms and started killing his enemies, angeily. Parshuram was with the Kings of Ayodhya, Kanya Kubj, Vaishali, Videha and Kashi in many Haihay wars. Details of Haihay war is also mentioned in Atharvaveda. This war is called the first great war of ancient India. The area from Kutch to Kanya Kumari came to be known as “Parshuram Desh”. After winning the wars, he performed Ashwamedha Yagya. For this, a golden altar thirty-two cubits were made. Markandeya ‘Brahma’, Kashyapa ‘Adhvaryu’ (knower of Yajurveda), Gautam ‘Udgata’ (knower of Samaveda) and Vishwamitra ‘Hota’ were present in this Yajna. Adi rishis also participated in it. After the Yajna, Parshuram donated the whole earth to Kashyapa except Mahendra mountain. To save the remaining Kshatriyas, Kashyapa asked Parashurama to move to the western coast of South Sea. Parshuram had established his supremacy over the whole of India. At that time Brahmins were considered as leaders of the country. The state-power was handed over to the person who followed the interests of his subjects. But the Haihay kings violated these norms by destroying the hermitages of sages and killing pregnant women. Many Kshatriya kings also wanted to stop brahmin’s growing power. Therefore, with his help, Parashurama fought with the Haihayas. His purpose of roaming from place to place with the dead bodies of his mother and father was to awaken the people against the tyrannical kings. Lord Parshuram had destroyed the huge kingdom of Haihayas. In his lifetime, he had destroyed all small and big power centers of kshatriyas. But after that they got up once again. Taljangs were the descendants of Haihayas and they had five sub-castes. Parshuram repeatedly attacked Kanyakubja, Kaushal and Kashi and deposed Bahu, the grandson of Harita, the king of Ayodhya. Raja Bahu died near the hermitage of sage Bhargava Agni Aurva. The sage kept Bahu’s pregnant wife in the hermitage. His son became Sagar. Sagar was trained in weapons by the sage. His coronation was done by Atharvanidhi Vasistha. Sagar recovered his lost kingdom by defeating the Haihay kings with the help of fiery weapons. Following are the main ashrams associated with Lord Parshuram: Jamdagni Ashram or Panchatirtha, on the Hindon River near Meerut Mother-shrine, Mahur in Maharashtra, Renuka Dahan. Mahendra mountain. The Eastern Ghats, the abode of Parshuram, is in Odisha. Parshuram had built a penance place by removing Sagar from Sopara village near Shurpark Bombay. The area from Kutch to Kanya Kumari was called Parshuram Kshetra. There are temples of Lord Parshuram in Madgaon or Matrigaon Goa and at other places. The Gokarna region is in Karawar district to the south. Jambuvan, Pathan village near Kota (Rajasthan) Parshuram Tirtha, Lohanya village on the banks of river Narmada. Renuka Giri, Rainagiri on the Alwar-Rewari railway line. Parshuram Tal or Renuka Tal, Chiplun near Nahan in Himachal Pradesh, Maharashtra. Ram Hrid, near Kurukshetra, Parshuram ji had established ponds there. These are also called Sammat-Panchak. Following are the sages of Bhrigu clan: Atmavat, Advishena, Urva or Aurva, Gritsa, Chyavan, Jamadagni, Dadhichi Richik, Divodas, Prachetas Brahmavat Bhrigu, Yuddhajit, Vitahavya, Veda, Vainya (Prithu) Raunak, Saraswat, Suvarchas, Sudhas, Apar, Nabha, Kavi etc. Bhargava Gana:- In addition to Bhrinu Varuni, Chyavan, seven Ganas are prominent – Vatsa, Vid, Ashtishen, Yarak, Vainya, Shaunak, Mitrayu. Aptavan, Aurva, Chyavan, Jamadagni and Bhrigu are the gotrakar sages under these five Pravaras Anant, Permission, Atvan, Aluk, Ailik Aurya, Kuts, Kots, Kausi, Gayan, Gargyayan, Goshthayan, Chyavan, Balaki, Bhrigu, Manda, Mund, Markad, Bhargeya, Manduka, Maudgalayana, Yogney, Rauhityayani, Lalati, Lubdha, Lolakshi, Limbuki, Vatsya, Virupaksha Vishnu-Vitahavya Vegayana, Vaishampayana, Shangakh Shikhavarta, Sakritya, Sarpi, Sauh, Savarnika, Sauchik etc. Bhrigu Raivas, Veeta Havya and Vaivas Under the four pravaras, the gotra sage is Kashyapi, Kaushapi, Gargiya, Chali, Jabali, Tithi, Dam, Pili, Balpi, Bhagavitti, Bhagil, Mathita, Maun, Yaska, Ramod, Vitahavya, Saura etc. Aptavan, Chyavan and Bhrigu are three prominent gotra sages. Divodas, Bhrigu Vahanyasva are the gotra sages with these three pravaras: Aap Kayani, Apishi Khandava, Draunayana, Maitreya, Shakataksha Shalayani and Hansajihna etc. Bhrigu and Gritsamad are the two great sages- Ekayana, Kardamayani, Gritsamad, Chaukshi, Pratyuh, Matsyagandha, Yajnapati, Shakayana, Sanaka, Sauri, etc. In addition to the above list, there have been many other gotra sages in the Bhrigu family. whose name became the sub-castes of the Bhargavas.