भगवान् परशुराम और कवि बाल्मीकि दोनों भृगुवंश के उज्जवल रत्न हैं। प्रथम महान् योद्धा थे, उन्होंने दुष्ट शत्रुओं का नाश किया और द्वितीय ने अपनी लेखनी द्वारा क्षत्रिय राजा राम एवं उसके परिवारको अमर कर दिया। महाभारत और पुराणों में बाल्मीकि को भार्गव कहा गया है। महाभारत के अन्तर्गत ‘रामोपाख्यान’ के रचयिता भी भार्गव ही माने जाते हैं। ये ग्रन्थ बाल्मीकि को छब्बीसवां वेदव्यास और विष्णु का अवतार मानते हैं। ऋषि का आश्रम तमसा एवं गंगा नदी के तट पर था वे अपने आश्रम के कुलपति थे। भारतीय परम्परा के अनुसार कुलपति उस महर्षि को कहते थे, जो दस हजार शिष्यों का भरण-पोषण और उन्हें शिक्षा प्रदान कर सके। उनके शिष्यों में प्रमुख भरद्वाज थे। एक बार बाल्मीकि ने नारद से पूछा “इस समय संसार में गुणवान, पराक्रमी, धर्मज्ञ, सदाचारी, विद्वान, दोषहीन, सामर्थ्यशाली और सुन्दर पुरुष कौन है?” नारद ने कहा, “ऐसा सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति संसार में मिलना दुर्लभ है। तथापि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राम में ये समस्त गुण पाए जाते हैं राम बलवान् कान्तिमान्, धैर्य सम्पन्न, बुद्धिमान, नीतिज्ञ, वक्ता, शत्रुनाशक, धर्मज्ञ, यशस्वी, ज्ञानवान, इन्द्रिय-निग्रहीं एवं तत्वज्ञानी हैं, वे सदा सज्जनों से घिरे रहते हैं, यथा नदियों द्वारा समुद्र ।” कुछ समय पश्चात् महर्षि बाल्मीकि भारद्वाज के साथ तमसा तट पर पहुँचे एक स्वच्छ स्थान देखकर उनहोंने भारद्वाज से कहा, “वत्स, यह स्थान बहुत रमणीक है। आज मैं इसी उत्तम् तीर्थ पर स्नान करूंगा।” उन्होंने शिष्य से वत्कल भुत छटा को निहारते सघन वन में नीरवता और शान्ति का राज्य था। चीत्कार कर वह जोड़ा, काम क्रीड़ा में मग्न था। नन्हें शरीर को बिंध गया. और क्रोच्ची कृति के सौंदर्य में मग्न मुनि का ध्यान क्रॉच्ची के चीत्कार ने अपनी ओर खींच लिया। रुधिर से सरोबार, तड़पते पक्षी और उसकी और उन्मुख व्याध को देखकर सहसा मुनि की अगाध करूणा इन शब्दों में फूट पड़ी :मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शश्वती समाः। यत्क्रौंच-मिथुनादेकमवधीः काम-मोहितम् ।। अरे निषाद, तुम अनन्त वर्षों तक प्रतिष्ठा को मत प्राप्त हो, क्योंकि काम मोहित क्रोच्च में से एक को तूने मार दिया। बाल्मीकि सोचने लगे कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर उन्होंने यह क्या कह दिया। जब इस श्लोक का उन्होंने विश्लेषण किया तो जाना कि यह चार चरणों में आबद्ध था। प्रत्येक चरण में आठ अक्षर थे और वीणा की लय पर गाया जा सकता था। वे शिष्यों के साथ विचार विर्मश कर रहे थे कि उसी समय ब्रह्मा आ पधारे और बोले, “मेरी ही प्रेरणा से यह पद्य-बद्ध श्लोक तुम्हारे मुख से निसृत हुआ है। तुम संसार में प्रथम कवि हो। इन्हीं पद्यों में राम-कथा लिखो। तुम्हारी लिखी राम कथा सदा प्रचलित रहेगी : यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले । तावद्रामायण–कथा लोकेषु प्रचरिष्यति ।। राम कथा जुग-2 अटल, सभ कोई भाखत नेता (दशम ग्रन्थ साहिब) इस सृष्टि में जब तक पर्वत खड़े रहेंगे, जब तक नदियाँ रहेगी. तब तक राम कथा का गान लोग करते रहेंगे। निःसन्देह यह कथा आज भी जीवित है और देश-विदेश की अनेक भाषाओं में लिखी जा चुकी है और अब भी लिखी-पढ़ी जाती है। नारद से सुने राम कथा के सार को महर्षि बाल्मीकि ने श्लोक बद्ध कर रामायण की रचना की। सीता-संरक्षण- जब जनापवाद के भय से राम ने सीता को त्याग दिया और लक्ष्मण उसे बाल्मीकि के आश्रम के पास बन में छोड़ चला गया तो वह निर्जन वन में अकेली असहाय रोने लगी। तमसा पर स्नान कर के लौटते हुए बाल्मीकि के शिष्यों ने उसे देखा और मुनि को सूचित किया। बाल्मीकि तत्काल शिष्यों सहित वहाँ पहुंचे और उसे सान्तवना देकर अपने आश्रम में ले गए। निरपराधी सीता को शरण देना बाल्मीकि के हृदय की उदारता और निर्भीकता का प्रमाण है। शत्रुघ्न लवणासुर को मारने ससैन्य जा रहे थे। उन्होंने बाल्मीकि आश्रम में रात्रि बिताने का निर्णय किया। आधी रात को सीता ने जुड़वा बेटों को जन्म दिया। बाल्मीकि ने कुशा, घास के लव अर्थात् टुकड़ो से मार्जन कर उनका जात कर्म संस्कार किया। नाम करण भी मार्जनी के अनुरूप कुश और लव दिया। माता-पिता, गोत्र आदि के संकीर्तन के साथ नाम करण आदि सब संस्कार किए जाते हैं। राम-सीता के नाम से बालकों का संस्कार सुनकर शत्रुध्न बहुत प्रसन्न हुआ। वह सीता की पर्णशाला में जाकर कहने लगा, “माता बड़े भाग्य की बात है।” बाल्मीकि ने ही कुश–लब को शिक्षा दीक्षा दी। उन्हें क्षत्रियोचित गुणों से सम्पन्न किया। उन्हें स्वयं रचित राम काव्य सिखाया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ पर वाल्मीकि ऋषि को निमन्त्रण मिला। वे कुश लव को साथ लेकर उपस्थित हुए। कुश लव ने ताल सुरों के साथ रामायण गान आरम्भ किया। ऋऋषियों, ब्राह्मणों राजाओं के निवास स्थान पर राजमार्गों पर दोनों बच्चों ने गायन जारी रखा। प्रतिदिन वे बीस सर्गों का गान करते उन्हें वाल्मीकि ने कहा था, “मन की अपेक्षा न करना। ऋषि को यदि कोई धन देना चाहता, तो वे कहते,” हम मुनि कुमारों को धन की क्या आवश्यकता है? लोगों के पूछने पर, “तुम किसके पुत्र हो?” वे कहते, “हम ऋषि वाल्मीकि के शिष्य हैं।” राम ने भरत के द्वारा बच्चों को अठारह 2 हजार स्वर्णमुद्राएं देने को कहा, परन्तु बच्चों ने लेने से इन्कार कर दिया। लोगों की उत्सुक्ता बढ़ गई। वे कहने लगे यदि दोनों बच्चों ने मुनि वेश न बनाया होता तो राम और इनमें अन्तर न होता वाल्मीकि ने श्री राम से कहा, “सीता पवित्र है यह दोनों आप के पुत्र है। यद्यपि तुम सीता को शुद्ध समझते थे लोकापवाद के कारण तुमने इसे त्यागा था। ऋषि ने कहा, “हे राम, यदि सीता की पवित्रता में तनिक भी दोष हो तो मेरी कई वर्षों की तपस्या का मुझे कुछ फल न मिले सीता निष्पाप है। श्री रामचन्द्र ने कहा, “हे धर्मज्ञ आप के पुनीत शब्दों पर मुझे विश्वास है कुश लव मेरे ही पुत्र हैं। मैं जानता हूँ।” वाल्मीकि रामायण में सात काण्ड हैं। इनमें अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुन्दर और युद्ध काण्ड वाल्मीकि रचित माने जाते है। बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड बाद में लिखे गए माने जाते हैं। डा० याकोबी, श्री चि० वि० वैद्य एवं डा० मैकडानल आदि रामायण की रचना बौद्धकाल से पहले की मानते हैं। विदेशी व भारतीय अनुसंधान कर्ताओं द्वारा श्री रामचन्द्र जी का समय लगभग 2000 ई० पूर्व माना जाता है। यदि ऋषि वाल्मीकि श्री रामचन्द्र के समकालीन हुए हैं तो रामायण का रच काल लगभग वही होगा। बाल काण्ड और उत्तर काण्ड यदि बाद में लिखे गए हों, तो सम्भवतः उनका समय लगभग छः सौ ई० पूर्व होगा। कई विद्वान ऋषि प्रचेतस के पुत्र वाल्मीकि और डाकू से परिवर्तित वाल्मीकि को एक मानते हैं। यह असम्भव है क्योंकि महाकवि वाल्मीकि को विष्णु का अवतार कहा गया है। विष्णु का अवतार बालपन में ही विलक्षण प्रतिमा का स्वामी होना चाहिए। जैसे राम, कृष्ण थे न कि चोर, डाकू आदि । डाकू वाल्मीकि का मूल नाम अग्नि शर्मा या रत्नाकर था उसे ऋषियों ने राम नाम जपने को कहा था। डाकू से बन ऋषि वाल्मीकि उस समय होगा जब राम की देवता के रूप पूजा होने लग गई थी। अर्थात् जब भक्त निराकार व साका राम की पूजा करने लगे थे। कवि वाल्मीकि के समय श्री राम राजा राम थे, उनका दैवी करण नहीं हुआ था। वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त ऋषि वाल्मीकि के नाम पर वाल्मीकि सूत्र, वाल्मीकि शिक्षा, वाल्मीकि हृदय और गंगाधृव ग्रन्थ उपलब्ध हैं। वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की।महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है। English Translation Bhrigu dynasty great poet Valmiki: Lord Parshuram and poet Valmiki both are the bright gems of Bhrigu clan. The first was a great warrior, he had destroyed the evil enemies and the second got, the Kshatriya king Rama and his family, immortalized, with his pen. In Mahabharata and Puranas, Valmiki has been called Bhargava. Bhargava is also considered as the author of ‘Ramopakhyan’ scripture of Mahabharata. These texts consider Valmiki, as the twenty-sixth Vedavyasa and an incarnation of Vishnu. Rishi’s hermitage was on the banks of Tamsa and Ganga rivers. He was the patriarch of his hermitage. According to ancient India’s tradition of those days, the Vice Chancellor was called Maharishi, who could feed and provide education to atleast ten thousand disciples. Chief among his disciples was Bhardwaj. Once Valmiki asked Narad “Who is the virtuous, mighty, pious, virtuous, learned, faultless, powerful and handsome man in this world, at this time?” Narad said, “It is rare to find such a person with all these qualities in the world. However, all these qualities are found in Lord Ram, born in the Ikshvaku dynasty. – which is always surrounded by several gentlemen, like an ocean with many rivers. After some time, Maharishi Balmiki reached Tamsa bank with Bharadwaj. Seeing a clean place, he said to Bharadwaj, “Vats, this place is very pleasant. Today I want to take bathe in this excellent pilgrimage.” I will.” He asked the disciple to look at the Vatkal Bhut Chhata. Silence and peace reigned in the dense forest. He found a couple of birds, which were engrossed in sex and play. Their little body was tied. And the attention of the monk who was engrossed in the beauty of he Krocchi’s, was drawn towards the cry of one of the Crocchi birds. Drenched in blood, seeing the suffering bird and the disease facing it, suddenly the sage’s immense compassion, burst out in these words: Ma Nishad Pratishthan Tvamagam: Shashwati Samah. Yatcrunch-Mithunadekamavadhi: Kama-Mohitam. Oh Nishad, you do not get fame for eternal years, because you killed one of these lustful croches. Valmiki started thinking that what did he say after suffering from the grief of the bird. When he analyzed this verse, he came to know that it was bound in four steps. Each stanza had eight syllables and could be sung to the beat of the veena. He was discussing with the disciples that at the same time Brahma came and said, “With my own inspiration, this verse-bound verse has come out of your mouth. You are the first poet in this world. Write a Ram-Katha in similar verses. Ram Katha written by you shall always be prevalent in all times. “Yavat Sthasyanti Girayah Saritscha Mahitale. Tavdramayan-Katha Lokeshu Pracharishyati. Ram Katha Jug-2 Atal, Sab Koi Bhakhat Neta” (Dasam Granth Sahib)
As long as the mountains stand in this world, as long as the rivers remain. Till then people will keep on singing Ram Katha. Undoubtedly, therefore, this story is still alive today and has been written in several languages of the country and abroad and is still being written and being read by all. Maharishi Valmiki composed the Ramayana after listening to the essence of Ram Katha from Narada. Sita-Protection- When Lord Rama abandoned Sita due to the fear of his tribal subjects and when Lakshman left her in the forest near Valmiki’s hermitage, she started crying helplessly alone in the deserted forest. While returning from a bath at Tamsa, Valmiki’s disciples saw him and informed the sage. Valmiki immediately reached there along with his disciples and consoled her and took her to his ashram. Giving refuge to the innocent Sita, is a testimony to the generosity and fearlessness of Maharishi Valmiki’s heart. Once Shatrughan was proceeding to to kill Lavanasura, with his large army. He decided to spend the night at Valmiki Ashram.
At one midnight, Sita had given birth to twin sons. Balmiki performed their caste rituals by scrubbing with pieces of Kusha, grass. The names “Kush and Luv” were given as per Marjani. Along with chanting of parents, clan etc., all the rites of naming ceremony were performed. Shatrughan was very pleased to hear the rites of children in the name of Ram-Sita. He went to Sita’s parnashala and said, “Mother, it is a matter of great fortune.” This was Valmiki who gave education to Kush-Luv. Endowed them with Kshatriya qualities. Taught them Ram Kavya, composed by himself. According to Valmiki Ramayana, Valmiki Rishi was invited for the Ashwamedha Yagya. He appeared with Kush and Luv. Kush and Luv started singing Ramayana with Taal suras. The two children continued singing on the highways, at the abode of sages, brahmins and kings. Everyday they sang twenty verses as was advised by Valmiki, “Don’t expect money. If someone wants to give money to the sage, he would say,” What need do we sages have for money? When people ask, “Whose son are you?” They would say, “We are the disciples of the great sage Valmiki.” Ram asked Bharat to give eighteen thousand gold coins to the children, but the children refused to accept it. People’s curiosity had increased as regards these children. They started saying that if both the children had not dressed as sages, then there would have been no difference between Lord Ram and them. Valmiki once told, Shri Ram, “Sita is pure, both of them are your sons. Although you considered Sita to be pure, you had abandoned her due to some gossips.” The sage said, “O Rama, had there been even the slightest flaw in Sita’s chastity, I would not have got, the fruits of my many years of penance. Sita is sinless. Shri Ramchandra said, “O religious person, I have faith in your holy words, Kush Lav are my sons. I know this truth.” There are seven kands (Chapters) in Valmiki Ramayana. In these, Ayodhya Kand, Aranya Kand, Kishkindha Kand, Sundar and War Kand are considered to be composed by Valmiki. Balakand and Uttarkand are considered to have been written later. Dr. Jacobi, Mr. Vaidya and Dr. McDonnell etc. consider the creation of Ramayana, before the Buddhist period. The time of Lord Ramchandra, is believed to be around 2000 BC, by foreign and Indian researchers. If Rishi Valmiki was a contemporary of Shri Ramchandra, then the period of creation of Ramayana would be almost the same. If Bal Kand and Uttar Kand were written later, then probably their time would be around 600 BC. Many scholars consider Valmiki, the son of sage Prachetas, and the dacoit-turned-Valmiki to be one. This is impossible, because the great poet Valmiki has been called an incarnation of Vishnu. The incarnation of Vishnu should be the owner of a unique idol in childhood itself. For example, Lord Ram was Lord Krishna. and Rishi Balmiki, was not a thief, or a dacoit. The original name of dacoit Valmiki, was Agni Sharma or Ratnakar, who was asked by sages to chant the name of Lord Ram. The dacoit-turned-sage Valmiki would have happened at a time when Lord Ram was being worshiped as a deity. That is, when the devotees started worshiping the formless Ram. Shri Ram was a King Ram at the time of poet Valmiki, he was not divineized. Apart from Valmiki Ramayana, Valmiki Sutra, Valmiki Shiksha, Valmiki Hridaya and Gangadhriva texts are available, in the name of sage Valmiki. Rishi Valmiki is celebrated as the harbinger-poet in Sanskrit literature. The epic Ramayana, dated variously from the 5th century BCE to first century BCE, is attributed to him, based on the attribution in the text itself. He is revered as Adi Kavi, the first poet, author of Ramayana, the first epic/poem.