ऋषि वैशंपायन वैशंपायन भृगु कुल का गोत्रकार ऋषि है। वह कृष्ण द्वैपायन व्यास के चार वेद प्रवर्तक शिष्यों में एक था। अन्य पैल, जैमिनी और सुमन्तु थे। इन चारों को व्यास ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया। वैशंपायन कृष्ण यजुर्वेदीय तैत्तरीय संहिता का निर्माता था। पाणिनि की अष्टाध्यायी और पंतजलि के महाभाष्य में इसे वैदिक गुरू कहा है। ऋषि वैशंपायन ने कृष्ण यजुर्वेद की 86 संहिताएँ रची और याज्ञवल्क्य सहित अपने 86 शिष्यों में बांट दी। विष्णु पुराण के अनुसार संहिताओं और शिष्यों की संख्या 27 है। वैशंपायन याज्ञवल्क्य से क्रुद्ध हो गया और अपना दिया हुआ ज्ञान उसे लौटाने को कहा। याज्ञवल्क्य ने गुरु से प्राप्त समस्त ज्ञान वापिस कर दिया। वैशंपायन के अन्य शिष्यों ने वह ज्ञान बांट लिया ( देखिए याज्ञवल्क्य ) महाभारत परम्परा में भी वैशंपायन एक महान् आचार्य माना गया है। व्यास द्वारा रचित जय (महाभारत ) उत्तम इतिहास अर्थशास्त्र और मोक्ष शास्त्र ग्रन्थ है। पौरूष निर्माण की सभी शिक्षाएँ इससे मिलती है। व्यास से प्राप्त ‘जय’ ग्रन्थ को परिवर्द्धित कर वैशंपायन ने जनमेजय को यह कथा सुनाई थी। वैशम्पायन वेद व्यास के विद्वान शिष्य थे। हिन्दुओं के दो महाकाव्यों में से एक महाभारत को मानव जाति में प्रचलित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। पाण्डवों के पौत्र महाबलि परीक्षित के पुत्र जनमेजय को वैशम्पायन ने एक यज्ञ के दौरान यह कथा सुनाई थी। कृष्ण यजुर्वेद के प्रवर्तक भी ऋषि वैशम्पायन ही है जिन्हे उनके गुरु वेेदव्यास ने यह कार्य सौंपा था। इनके शिष्य याज्ञवल्क्य ऋषि थे जिनसे वाद विवाद होने के कारण याज्ञवल्क्य ने शुक्ल यजुर्वेद को प्रसारित किया| यह कहानी वैशम्पायन द्वारा यज्ञ के दौरान पांडवों के पौत्र महाबली परीक्षित के पुत्र जनमेजय को सुनाई गई थी। वैशंपायन के प्रमुख ग्रन्थ – वैशंपायन संहिता, वैशंपायन नीति संग्रह, वैशंपायन स्मृति और वैशंपायन नीति प्रकाशिका उपलब्ध हैं। विभिन्न विद्वानों के अनुसार वैशंपायन का समय 2500 सौ से 2000 ई पूर्व है।
English Translation
Sage Vaishampayan: The gotra of Vaishampayan is Bhrigu. He was one of the four disciples of lord Vyasa. The other three were Pail, Gemini and Sumantu. Vyasa provided knowledge of the Rigveda, Yajurveda, Samaveda and Atharvaveda to these four disciples. Vaishampayan Krishna was the creator of the Yajurveda & Taittariya Samhita. He is called Vedic Guru in Panini’s Ashtadhyayi and Mahabhashya of Patanjali. Rishi Vaishampayan composed 86 verses of Yajurveda and distributed it among his 86 disciples including Yajnavalkya. According to Vishnu Purana, the number of verses as well as number of disciples is twenty seven. Once Vaishampayan, got angry with Yajnavalkya and asked him to return the knowledge, which was given to him. Yajnavalkya returned all the knowledge received from his Guru. Other disciples of Vaishampayan shared the knowledge. (see Yajnavalkya) Vaishampayan is also considered a great teacher during Mahabharata period. Mahabharata composed by Vyasa is considered as an excellent history textbook as well as economics and Moksha Shastra Granth. All the teachings of the creation of verses are available from these scriptures. Vaishampayan narrated this story to Janmejaya by reading the book. Vaishampayan was a learned disciple of Veda Vyasa. The credit of the two epics of sanatna dharma goes to him especially his contribution for making Mahabharata available for mankind. Vaishampayan narrated his story to Janamejaya, son of Mahabali Parikshit, grandson of Pandavas. Sage Vaishampayan, who was assigned this task by his Guru, was also promoter of Krishna Yajurveda. His disciple was Yajnavalkya sage, who had preached Yajurveda. This story was narrated by Vaishampayan to Janamejaya, son of Mahabali Parikshit, grandson of Pandavas during the yajna. The major texts of Vaishampayan – Vaishampayan Samhita, Vaishampayan Smriti and Vaishampayan policies. According to various scholars, the time of Vaishampayan is 2500 hundred to 2000 BC.