ऋष्य श्रृंग ऋष्य श्रृंग के पिता विभांडक ऋषि थे। वह ऋषि कश्यप के पोते थे। इनका आश्रम कौशिकी नदी पर था। उन्होंने हिमालय निवासी सनत्कुमारों से ज्ञान प्राप्त किया था। उनके पूरे शरीर पर बाल थे। ऋष्य श्रृंग के सिर पर सींग थे। अतः जन्म के शीघ्र माता ने उन्हें त्याग दिया। पिता ने ही इनका पालन पोषण किया और उन्हें वेद-वेदागों में पारंगत किया। पिता के अतिरिक्त वे किसी के समक्ष नहीं जाते थे। अंग देश का राजा लोमपाद ब्राह्मणों से दुर्व्यवहार करता था। उसके राज्य में सूखा पड़ गया। उसे पता चला कि यदि वह ऋष्य श्रृंग को अपने राज्य में ले आए तो अनावृष्टि समाप्त हो सकती है। परन्तु यह बड़ा कठिन कार्य था। एक वृद्वा वेश्या इस कार्य के लिए तैयार की गई। उसने कुछ तरूणियों को साथ लिया, एक नौका को आश्रम बनाया और विभांडक की अनुपस्थिति में उनके आश्रम के पास पहुंची। ऋषिश्रृंग ने उन सबकों मुनिकुमार समझा और सद्व्यवहार किया। वेश्या ने बड़ी युक्ति से उन्हें फंसा लिया और साथ लेकर अंगदेश पहुंची। उनके पहुंचने के बाद राज्य में अनावृष्टि समाप्त हो गई। राजा लोभपाद ने प्रसन्न होकर बेटी शान्ता का विवाह ऋषि से कर दिया। ऋषि विभांडक पुत्र को ढूंढते हुए अंग देश पहुंचे। उन्होंने एक पुत्र होने तक ऋष्यश्रृंग को वहां ठहरने की अनुमति दी। पुत्र जन्म के पश्चात् ऋषि शान्ता को लेकर अपने पिता के पास लौट आए। शान्ता राजा दशरथ की पुत्री थी। उसको बचपन में ही राजा लोमपाद ने गोद ले लिया था। राजा लोभपाद की मध्यस्थता से राजा दशरथ ने ऋष्यश्रृंग को पुत्रकामेष्टि का अध्वर्यु बनाया। परिणामतः राजा दशरथ के घर राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चार पुत्र हुए। ऋष्यश्रृंग के नाम से ऋष्यश्रृंग संहिता, श्रृंग स्मृति आदि ग्रंथ हैं। आचार, शौच, श्राद्ध तथा प्रायश्चित आदि के विषय में उनके विचार मिताक्षरा, अपरार्क, स्मृति चन्द्रिका आदि में उद्धृत मिलते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, विभांडक ने घोर तपस्या की जिससे देवता भयभीत हो गए और अप्सरा उर्वशी को उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। उर्वशी ने उन पर मोहित होकर उनसे विवाह कर लिया, जिससे ऋष्यशृंग का जन्म हुआ। उनके माथे पर एक सींग जैसा उभार होने के कारण उन्हें यह नाम “ऋष्यशृंग” मिला। ऋष्यशृंग को जन्म देने के बाद उर्वशी स्वर्ग चली गई। विभांडक इस धोखे से आहत हुआ कि उसने समस्त स्त्री जाति से घृणा की और अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर स्त्री की छाया नहीं पड़ने देने का निश्चय किया। ऋषि वाल्मीकि की रामायण के अनुसार ऋष्यशृंग ने राजा दशरथ के लिए एक पुत्र पाने के लिए अश्वमेध यज्ञ और पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। जिस स्थान पर उन्होंने ये यज्ञ किए, वह अयोध्या से लगभग 38 किमी पूर्व में था और वहाँ अभी भी उनका आश्रम और पत्नी की कब्रें हैं। एक बार अंगदेश राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। अंगराज चित्ररथ ने कई ऋषियों और उनके मंत्रियों से परामर्श किया। उन्होंने उसे ऋष्यशृंग को अंगदेश की भूमि पर लाने की सलाह दी, तभी उसकी विपत्ति दूर होगी। इसलिए राजा ने ऋष्यशृंग को लुभाने के लिए देवदासियों की मदद ली क्योंकि ऋष्यशृंग ने अपने जन्म के बाद कभी किसी महिला को नहीं देखा था। और ऐसा ही हुआ। अंगदेश में ऋष्यशृंग का बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया गया। अंगराज रोमपद ने उसके पिता के क्रोध से भयभीत होकर तुरंत ही अपनी पुत्री शांता का हाथ ऋष्यशृंग को सौंप दिया। ऐसा माना जाता है कि रिंग ऋषि और शांता के वंश बाद में सेंगर राजपूत बने। सेंगर राजपूतों को रिंगवंशी राजपूत भी कहा जाता है। शांता का श्रृंगीवर नाम का एक पुत्र था। जब उसका बेटा बड़ा हुआ, तो उसने गृहस्थ आश्रम छोड़ दिया और वानप्रस्थ आश्रम स्वीकार कर लिया और श्रृंगवेरपुर में एक आश्रम बनाया जहाँ उसने कई यज्ञ किए।
English Translation. Rishya Shringa. Rishya Shringa’s father was Vibhandak Rishi and he was the grandson of sage Kashyapa. His ashram was on the Kaushiki river. He had acquired knowledge from the Sanatkumars, residents of the Himalayas. He had hair all over his body. Rishya Shringa had horns on his head. So soon after birth, his mother had abandoned him. This was his father who nurtured him and made him well versed in the Vedas. He did not go in front of anyone except his father. Lompad, the king of Anga, misbehaved with the brahmins. There was a drought in his kingdom. He came to know that if he brought sage Shringa to his kingdom, the drought could end. But it was a very difficult task. An old prostitute was prepared for this work. She took some maidens with her, made a boat to the ashram and reached Vibhandaka’s ashram in his absence. Rishishringa considered them all to be sages and behaved well. The prostitute trapped him with a great trick and reached Angadesh with him. After his arrival, the drought ended in the state. King Lobhapad was pleased and married his daughter Shanta to the sage. Rishi Vibhandak reached Anga country in search of his son. He allowed Rishyasringa to stay there until he had a son. After the birth of the son, the sage returned to his father with Shanta. Shanta was the daughter of King Dasaratha. He was adopted by King Lompad in his childhood. Was. With the mediation of King Lobhapad, King Dashrath made Rishyasringa the Adhvaryu of Putrakameshti. As a result, Ram, Lakshman, Bharat and Shatrughna had four sons in the house of King Dashrath. Rishyashringa Samhita, Shringa Smriti etc. are books by the name of Rishyashringa. His views on conduct, defecation, Shraddha and atonement etc. are quoted in Mitakshara, Aparark, Smriti Chandrika etc. According to mythology, Vibhandak did severe tapasya that the deities were horrified and sent Apsara Urvashi to break his tapasya. Urvashi got fascinated with him and married him, As a result of which Rishyashringa was born. He got this name “Rishyashringa” because of a horn-like protrusion on his forehead. After giving birth to Rishyashringa, Urvashi left for heaven. Vibhandak was hurt by this deception that he hated the female caste and decided not to let the shadow of a woman fall on his son Rishyasringa. According to Rishi Valmiki’s Ramayana Rishyashringa performed Ashwamedha Yagya and Putrakameshti Yagya, to get a son for King Dasaratha. The place where he performed these yagyas was about 38 km east of Ayodhya and there is still his ashram as well as wife’s graves. Once there was a severe famine in Angadesh kingdom. Angraj Chitraratha, consulted many sages and his ministers. They advised him to bring Rishyasringa to the land of Angadesh, only then his calamity will go away. So the king took the help of Devadasis to woo Rishyasringa because Rishyasringa had never observed a woman after his birth. And so it happened. Rishyasringa was welcomed with great enthusiasm in Angadesh. Fearing the wrath of her father, Angraj Rompad, immediately handed over the hand of his daughter Shanta to Rishyasringa. It is believed that the lineage of Ring Rishi and Shanta later became the Sengar Rajputs. Sengar Rajputs are also called Ringvanshi Rajputs. Shanta had a son named Shringivar. When her son grew up, he left Grihastha Ashram and accepted Vanprastha Ashram and built an ashram in Shringverpur where he performed several yagyas.