ऋषि पूर्ण काश्यप : पूर्ण काश्यप वर्द्धमान महाबीर के समकालीन ऋषि थे। राजा अजातशत्रु को मिलने गए छः महापुरूषों में से महाबीर के साथ एक पूर्ण काश्यप थे। जिन का उल्लेख जैन धर्मग्रन्थों में है। जैन साहित्य में उन्हें “पूरन कास्सप” नाम दिया है। वर्द्धमान महावीर भी काश्यप थे। बौद्ध धर्म में पूर्ण कश्यप को नास्तिक दार्शनिक, संघ आचार्य, तीर्थंकर, अनुभवी विचारक, या नवीन मत का संस्थापक आदि माना गया है। ‘समांजफला सुत्त’ में अजातशत्रु और बुद्ध के बीच संवाद का उल्लेख है, जिसमें अध्यात्मवाद को भौतिकवादी विचारधारा से श्रेष्ठ माना गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार जो कोई नास्तिकता में विश्वास करता है, वह अनिवार्य रूप से एक विकासवादी था। उस समय के नास्तिक वास्तव में प्रकृति के साथ संतुलन में रहने के अभ्यासी थे। जिनके पास जटिल रीति-रिवाजों और परंपराओं में खुद को उलझाने का समय नहीं था। जो स्वप्न और संकल्प के बीच की दूरी को कम करने का कौशल जानते थे। ब्राह्मण उन्हें धार्मिक शिक्षा के अयोग्य समझते थे। पूर्ण कशप के अलावा मक्खली गोसल, अजित केशकंबली, पुकुद कात्यायन, संजय वेल्थिपुत्त आदि उस समय के प्रमुख नास्तिक विचारकों में से थे। बौद्ध और ब्राह्मणवादी पुजारियों के अलावा, उन्हें जैन धर्म के विचारकों द्वारा भी निशाना बनाया गया था। इसे उस समय के भौतिकवादी चिंतन की विडम्बना ही कहा जा सकता है कि अपने समय की एक महत्वपूर्ण विचारधारा होते हुए भी इस ऋषि द्वारा प्रदत्त उस परंपरा का कोई स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। कश्यप के साथ जुड़ा हुआ ‘पूर्ण’ उपसर्ग उनके ज्ञान की समग्रता का सूचक है। ‘दिघनिकाय’ के ‘समांजफल सुत्त’ के अनुसार मगध सम्राट अजातशत्रु ने गौतम बुद्ध से पूर्ण कश्यप के विचारों की चर्चा की।
अफगानिस्तान में बजौर (प्राचीन अवजपुर) के निकट अपच या अवज नामक स्थान से प्राप्त शक शासक भगमोय के समय के बुद्ध के पत्थर निर्मित अस्थि-कलश पर खुदे लेख में काश्यप सम्प्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं का उल्लेख है। स्पष्ट है इस भिक्षु सम्प्रदाय का संस्थापक कोई कश्यप वंशीय बौद्ध आचार्य था। कश्यप के गोत्रकारों की संख्या 127 है। जिनमें से प्रमुख आश्वलायनिन, अग्निशर्मायज्ञ, आजिहायन, आसुरायण, कात्यायन, कार्तिकेय, काश्पेय, कालष्ठारिन देवयान, पैलमौलि, भवनंदन, भोज, माठार, मातंगिन, मारीच योधायन, वात्स्सयान, शालहलेयं, गोमिल, नभ, पैप्पलाद शाण्डिल्य, संयाति जालंधर, दानव, देव जाति, हिरण्य बाहु आदि हैं। कश्यप गोत्रीय प्रमुख मंत्रकार, कश्यप, असित, देवल, निघुंव, रैभ्य और विक्षम हैं। आश्वलायनिन, कात्यायन, कार्तिकय, काश्येय, दाक्षायन, देवयान, पैलमौलि, प्रचेय, भवनंदन, भोजा, माठार, मातंगिन, मारीच, योधायन, वात्स्यायन, शालहलेय आदि के कश्यप, विध्रुव, वत्सार प्रवर है। अग्निशर्सयण, अघच्छायामय, आग्ना प्रासेव्य, आजिहायन, आश्रयानि, आश्वलायनिन, आश्वतायन, आसुरायण, उदग्रजा उद्वलायन, कन्यक, कात्यायन, कार्तिकेय, काशयपेय, काष्ठाहारिण, कौवरेक(ग) कौरिष्ठ (ग) गोमायन (ग). ज्ञानसंज्ञेय दाक्षायण, देवयान, निकृतज्ञ, पैलमौलि, प्रागायण, प्रस्चेप, बर्हि, भवनंदिन्, भृगु, भोज, मौतपायन, (भीमपायमग ) महाचक्र, माठार, मातंगिन, मारीच, मृगय, मेषकिरीटकाय मेषण योगदायन, योध्यान, वातस्यायन, वैकर्णेय, वैवशय, शाक्रायण, शालहलेय, श्याकार, श्यामोहर, श्रोतन, ससिसाहरितायन, हस्तिदान, हास्तिक ये सभी कश्यप, निध्रुव व वत्सर इन तीन प्रवरों के हैं। अनसूय, कादूपिगांक्षि, दिवावष, नष्कुरय, यानमुनी, (सासुकि) राजवर्तप (राजबल्लभ), रौपसेवकि, शैशरोदवहि, सजातंबि, सैंरधि T, स्नातक ये द्विगोत्री होकर कश्यप, वत्सर व वसिष्ठ इन तीन प्रवरों के हैं। उत्तर, कर्दम, काश्यप, कुलह, केरल, कैरात, गर्दभमुख गोमिल, जालंधर, दानव, देवजाति, नभ, निदाघ, पिप्पलय पूर्य. पैप्पलादि, भतग्र, भुजातपूर, मसृण, मृगकेतु, वृषकण्ड, शाण्डिल्य, संयाति, हिरण्यबाहु ये असित, कश्यप, देवल, तीन प्रवरों के हैं। English Translation Rishi Purna Kashyap: Purna Kashyapa Vardhamana was a contemporary sage of Mahabir. Among the six great men who went to meet King Ajatashatru, Mahabir was accompanied by Purna Kashyapa. This is also mentioned in Jain scriptures. In Jain literature he is named as “Puran Kassap”. Vardhman Mahavir also belonged to Kashyap gotra. In Buddhism, Purna Kashyap has been considered as an atheist philosopher, Sangha Acharya, Tirthankar, experienced thinker, or founder of the new school etc. The ‘Samanjaphala Sutta’ refers to a dialogue between Ajatashatru and the Buddha, in which spiritualism is considered superior to materialistic ideology. According to Buddhism anyone who believed in atheism, was essentially an evolutionist. The atheists of that time were actually practitioners of living in balance with nature. who had no time to entangle themselves, in complicated customs and traditions of those days. Those eho knew the skill of reducing the distance between dream and resolution. Brahmins considered such people, unfit for religious education. Apart from Purna Kashap, Makkhali Gosala, Ajit Keshakambali, Pukud Katyayan, Sanjaya Welthi putta etc. were among the prominent atheist thinkers of that time. Apart from Buddhist and Brahmanical priests, he was also targeted by ideologues of Jainism. It can be called the irony of materialistic thinking of that time that despite being an important ideology of its time, there is no independent text of the traditions, provided by this sage. The prefix ‘Purna’ associated with Kashyapa is indicative of the totality of his knowledge. According to the ‘Samanjaphal Sutta’ of ‘Dighnikaya’, the Magadha emperor Ajatashatru discussed the ideas of Purna Kashyapa with Gautama Buddha. Buddhist monks of the Kashyapa sect are mentioned in an inscription on a stone urn made of Buddha, (made of stone) from the time of the Saka ruler Bhagmoya, near Bajaur (ancient Avajpur) in Afghanistan, named Apach or Avaj. It is clear that the founder of this monk sect was a Buddhist teacher of Kashyap dynasty. The number of gotrakars of Kashyap is 127. Prominent among them are Ashvalayanin, Agnisharmayagya, Ajihayan, Asurayan, Katyayan, Kartikeya, Kaashpeya, Kalasthaarin Devayan, Palamauli, Bhavanandan, Bhoj, Mathar, Matangin, Maricha Yodhayan, Vatsyayan, Shalhaleyan, Gomil, Nabha, Pappalad Shandilya, Sanyati Jalandhar, Danav, Deva. Caste, Hiranya Bahu etc. The main chanters of the Kashyapa gotriya are Kashyapa, Asit, Deval, Nighunva, Raibhya and Viksham. Ashvalayanin, Katyayan, Kartikya, Kashyaya, Dakshayan, Devyan, Palamauli, Pracheya, Bhavanandan, Bhoja, Mathar, Matangin, Maricha, Yodhayan, Vatsyayan, Shalhaleya etc. have Kashyap, Vidhruv, Vatsar Pravar. Agnisharsayan, Aghachhayamay, Agna Prasevya, Aajihayan, Ashrayani, Ashwalayanin, Ashwatayan, Asurayan, Udgraja Udvalayan, Kanyak, Katyayan, Kartikeya, Kashaypeya, Kasthaharin, Kauvarek (c) Kaurishtha (c) Gomayan (c). Knowledgeable Dakshayana, Devayana, Nikritagya, Palamauli, Pragayana, Praschepa, Barhi, Bhavanandin, Bhrigu, Bhoja, Mautpayan, (Bhimpayamg) Mahachakra, Mathar, Matangin, Maricha, Mrigaya, Meshkiritkaya Meshan Yogadayan, Yodhyan, Vatsyayan, Vaikarney, Vaivashay, Shakrayan, Shalhaleya, Shyakar, Shyamohar, Shrotan, Sasisaharitayan, Hastidaan, Hastika, all these belong to Kashyap, Nidhruv and Vatsar. Anasuya, Kadupigankshi, Divavasha, Nashkurya, Yanmuni, (Sasuki) Rajvartap (Rajballabh), Raupsevaki, Shaishrodvahi, Sajatambi, Saindarhi T, Graduates being Dwigotri, Kashyap, Vatsar and Vasistha belong to these three Pravaras. Uttar, Kardam, Kashyap, Kulah, Kerala, Kairat, Gardabhmukh Gomil, Jalandhar, Demon, Devjati, Nabha, Nidagh, Pippalaya Purya. Pappaladi, Bhatagra, Bhujatpur, Masrin, Mrigketu, Vrishkanda, Shandilya, Sanyati, Hiranyabahu. These are Asit, Kashyap, Deval, of the three Pravaras.