महर्षिअंगिरस महर्षि अंगिरस मन्त्रद्रष्टा, योगी, संत तथा महान भक्त हैं। इनकी ‘अंगिरा-स्मृति’ में सुन्दर उपदेश तथा धर्माचरण की शिक्षा व्याप्त है।महर्षि अंगिरस ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं तथा यह सप्तर्षियों में एक है। प्रजापति भी कहा गया है ।इनके दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्रशक्ति की विशेष प्रतिष्ठा है । इनकी पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति थीं । अंगिरस वंश को अथर्वन वंश भी कहा जाता है। अंगिरस के पुत्र अग्नि से उत्पन्न हुए। अंगिरस प्रथम मनुष्य थे, बाद में देवता बने तथा उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। अंगिरसों को प्रथम वाणी का, बाद में छंद का ज्ञान प्राप्त हुआ। ऋग्वेद के नवम् मण्डल के सूक्त अंगिरस कुल के हैं। ब्रह्म विद्या किसने, किसे सिखाई, यह बताते समय यह क्रम दिया है ब्रह्मन-अथर्वन अंगिरस सत्यवहभारद्वाज-अंगिरस शौनक। अंगिरस के मुख्य गोत्रकार अजस (अयस्य) अतथ्य, ऋषिज, गौतम, वृहस्पति, वामदेव तथा संवर्त हैं। अंगिरस, वृहस्पति तथा भरद्वाज तीन प्रवरों के मुख्य उपगोत्रकार अग्निवेश्यस्य आत्रेयायणि कौरूक्षेत्रि, कौरूपति, पैलप्रभु बालडि, बालशयनि, मारूत आदि। अंगिरा, गर्ग, बृह, भरद्वाज तथा सैत्य पांच प्रवरों के मुख्य उपगोत्रकार काण्वायन, कोपचय, गाधिन, गार्ग्य, सायकायनि, स्कंदस आदि हैं। पंतजलि, गार्ग्यहरि, गालव या गालवि, कात्यायनि, मुद्गल, आदि भी अंगिरस गोत्रकार हैं। वायु पुराण के अनुसार अंगिरस गोत्रीय मंत्रकार निम्न है:- अंगिरस अजमीढ़, अंबरीश, अमृत आयाप्य, उतथ्य, ऋषभ, औगज, कक्षीवान, कण्व, गार्ग्य, त्रसदस्यु, दीर्घतमस, पुरुकुत्स, पषदश्व, पौरूकुत्स, बलि, वाष्कलि, वृहदुक्तथ, भरद्वाज, भारद्वाज, मांधाता, मुग्दुल, युवनाश्व वाजश्वस, वामदेव, विरूप, वेघस शेनी, संहति, सदस्युमान्, सुवित्ति। मत्स्य के अनुसार इन मंत्रकारों के नामों में कुछ भिन्नता है। उसमें कवि, काव्य, लक्ष्मण, वैद्यग, शुक्ल, स्मृति संस्कृति आदि भी मंत्रकार हैं। वायु पुराण में दिए गए कुछ मंत्रकारो के नाम नहीं। ब्राह्माण्ड पुराण में भी मंत्रकारों के नामों में भिन्नता है। इसमें कपि, चक्रवर्ती आदि भी दिए हैं। महर्षि अंगिरस की तपस्या और उपासना इतनी तीव्र थी कि इनका तेज और प्रभाव अग्नि की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ गया। उस समय अग्निदेव भी जल में रहकर तपस्या कर रहे थे। जब उन्होंने देखा कि अंगिरा के तपोबल के सामने मेरी तपस्या और प्रतिष्ठा तुच्छ हो रही है तो वे दु:खी हो अंगिरा के पास गये और कहने लगे- ‘आप प्रथम अग्नि हैं, मैं आपके तेज़ की तुलना में अपेक्षाकृत न्यून होने से द्वितीय अग्नि हूँ। मेरा तेज़ आपके सामने फीका पड़ गया है, अब मुझे कोई अग्नि नहीं कहेगा।’ तब महर्षि अंगिरा ने सम्मानपूर्वक उन्हें देवताओं को हवि पहुँचाने का कार्य सौंपा। साथ ही पुत्र रूप में अग्नि का वरण किया। तत्पश्चात वे अग्नि देव ही बृहस्पति नाम से अंगिरा के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हुए।
English Translation.
Maharishi Angiras Maharishi Angiras was a yogi, saint and great devotee. His ‘Angira-Smriti’ is full of noble teachings and religious conduct. Maharishi Angiras, is the son of Lord Brahma and he is one of the Saptarishis. He has also been called Prajapati. There is a special prestige of his divine spiritual knowledge, yoga power, penance and mantra power. His wife was Smriti, the daughter of Daksha Prajapati. The Angiras dynasty is also known as the Atharvan dynasty. The sons of Angiras were born from Agni. Angiras was the first man, who later became a deity and attained divine knowledge. Angiras, first got the knowledge of speech, later the religious verses. The hymns of the ninth circle of Rigveda belong to the Angiras family. While narrating Brahm Vidya, this sequence has been given: Brahman-Atharvan Angiras Satyavah Bharadwaj-Angiras Shaunak. The main clans of Angiras are Ajas (Ayasya), Atathya, Rishis, Gautama, Brihaspati, Vamadeva and Samvarta. Angiras, Brihaspati and Bhardwaj are the main sub-tribes of the three Pravaras, Agniveshyasya Atreyayani, Kaurukshetri, Kaurupati, Pailprabhu Baldi, Balashayani, Marut etc. Angira, Garga, Briha, Bhardwaj and Saitya are the main sub-tribes of the five Pravaras, Kanwayan, Kopachay, Gadhin, Gargya, Saikayani, Skandas etc. Patanjali, Gargyahari, Galav or Galavi, Katyayani, Mudgal, etc. are also Angiras gotrakar. According to Vayu Purana, following are the Angiras gotriya chanters:- Angiras Ajmeed, Ambareesh, Amrit Ayapya, Utathya, Rishabh, Augaj, Kakshivan, Kanva, Gargya, Trasadasyu, Dirghtamas, Purukutsa, Pashdasva, Paurukutsa, Bali, Vashkali, Vrihaduktath, Bharadvaja, Mandhata, Mugdula, Yuvana Vajshvas, Vamdev, Virupa, Veghas Sheni, Sanhati, Sadhahuman, Suvitti. According to Matsya there is some variation in the names of the Mantrakars. Poet, Kavya, Laxman, Vaidyag, Shukla, Smriti Sanskriti etc. are also Mantrakars in it. The names of some of the Mantrakars given in Vayu Purana are not there. There is a difference in the names of the Mantrakars in the Brahmanda Purana as well. Kapi, Chakravarti etc. have also been given in this. The penance and worship of Maharishi Angiras was so intense that it’s intensity and influence increased much more than that of fire. At that time Agnidev was also doing penance by living in water. When he saw that his austerity and prestige was becoming insignificant in front of Angiras, This made him sad and he went to Angira and said – ‘You are the first fire, I am the second fire because of being relatively less compared to your speed. My fire has faded in front of you, now no one will call me fire.’ Then Maharishi Angira respectfully assigned him the task of delivering agni to the deities. At the same time, Agni was described as his son. After that he became famous as the son of Angira and was called by the name, Brihaspati, the god of fire.