ऋषि भरद्वाज : ऋषि भरद्वाज त्रेता युग के आरम्भ में हुए यह इक्ष्वाकु वंश की 43वीं पीढ़ी में हुए राजा अंशुमान के समकालीन थे। ये कुल ब्रह्मा के मानस पुत्र अंगिरा ऋषि के वंशज थे। इनके कई महान् विभूतियाँ हुई हैं, जिनमें प्रमुख वितथ भारद्वाज, कण्व, वामदेव, यवक्रीत, द्रोणाचार्य अश्वत्थामा और पंतजलि हैं। ऋषि भरद्वाज वृहस्पति के पुत्र थे। वृहस्पति वैशाली के राजगुरु थे। वैशाली के राजा मरुत्त ने भरद्वाज का पालन पोषण किया। मत्स्य, वायु पुराणों के अनुसार भरद्वाज का पालन पोषण मरूत् देवता ने किया था। पुरु वंशीय राजा भरत का कोई भी पुत्र राजा बनने योग्य नहीं था। राजा मरुत्त ने होनहार बालक भरद्वाज को भरत के सुपुर्द कर दिया। भरत द्वारा गोद लेने के बाद भरद्वाज क्षत्रिय ब्राह्मण कहलाने लगें। राजा भरत की मृत्यु के बाद भरद्वाज अपने पुत्र वितथ या विदथिन को राज्याधिकारी बनाकर तपस्या हेतु वन में चले गए। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार भरद्वाज लम्बा, क्षीण काय, तपस्वी, विद्वान तथा दीर्घायु था। अर्थवेद व ब्राह्मण-ग्रन्थों में भरद्वाज को वैदिक सूक्त द्रष्टा कहा गया है। ऋग्वेद के छठे मण्डल के अनेक सूक्तों की रचना इन्होंने की थी। इसलिए इनको अपने युग का व्यास कहा गया है। वेद मंत्रों के संग्रहकर्त्ता ऋषि को व्यास-उपाधि से विभूषित किया जाता था। भरद्वाज व्याकरणाचार्य के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने इस शास्त्र का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया। इन्द्र ने वृहस्पति से तथा वृहस्पति ने ब्रह्मा से व्याकरण- विद्या सीखी । सामवेद के अनुसार ब्रह्मा व्याकरणशास्त्र के मूल रचयिता थे। प्रसिद्ध व्याकरण कार पाणिनि व पंतजलि ने भी भरद्वाज व्याकरण से कई नियमों को उद्धृत किया है। आयुर्वेद में भी ऋषि भरद्वाज ने महत्वपूर्ण कार्य किया था। प्रसिद्ध वैद्य धन्वन्तरि उन्हीं के शिष्य थे। भरद्वाज एक कल्पसूत्र के भी रचयिता थे। कल्पसूत्र के तीन भाग होते हैं श्रौत सूत्र, धर्म-सूत्र और गृह्य सूत्र। भरद्वाज संहिता, भरद्वाज स्मृति, वास्तु तत्व और वेद के चार स्तोत्र भी इन्हीं की रचनाएं मानी जाती हैं।
वितथ अथवा विदथिन. भारद्वाज के वंशजों में जो राजसिंहासन पर बैठे वे पौरव कहलाए। वितथ का पराक्रमी पुत्र भुवमन्यु था। उसका ज्येष्ठ पुत्र वृहक्षत्र राजा बना और अन्य चार पुत्र महावीर्य, शुनहोत्र, नर और गर्ग ब्राह्मण बन गए। विदथिन के वंशजों में गार्ग्य सांकृति, उरुक्षत, पुष्कर और काव्य आदि प्रसिद्ध ऋषि हुए। ये सब वैदथिन कहलाए। ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों कुलों से संबद्ध होने के कारण इन्हें द्वामुष्यायन भी कहा जाता है। वैदथिन वंश में हस्ति राजा हुआ। इसने हस्तिनापुर नगर बसाया। इसके तीन पुत्र अजमीढ़ द्विमीढ़ और पुरुमीढ़ थे। अजमीढ़ की पत्नी केशिनी से ऋषि कण्व उत्पन्न हुए, जिन्होंने ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के अधिकतर सूक्तों की रचना की। भागवत के अनुसार ये याज्ञवल्क्य के पंद्रह शिष्यों में एक थे। ये यजुर्वेद की काण्व शाखा के प्रवर्तक थे। कण्व उपनिषद् कण्व नीति, कण्व स्मृति आदि ग्रन्थ इनके नाम से प्रचलित है। कण्व के वंशज काण्वायन ब्राह्मण कहलाए। द्विमीढ़ के वंशज कृत ने हिरण्य नाम कौशल्य से योग विद्या सीखी और स्मृतियों की चौबीस संहिताओं की रचना की थी। अजमीढ़ की छठी पीढ़ी में उत्तर पांचाल देश के राजा मुद्गल हुए। उनका ज्येष्ठ पुत्र ब्राह्मण बन गया। इसका पोता दिवोदास व पोती अहल्या हुई। अहल्या को गौतम से शतानन्द हुए।
English Translation. Rishi Bhardwaj: Sage Bhardwaj, born in the beginning of Treta Yuga, was a contemporary of King Anshuman, born in the 43rd generation of the Ikshvaku dynasty. These clans were the descendants of Angira Rishi, the Manas son of Brahma. There have been many great Vibhutis of them, in which the main ones are Vitath Bhardwaj, Kanva, Vamdev, Yavakrit, Dronacharya Ashwatthama and Patanjali. Sage Bharadwaj was the son of Brihaspati. Brihaspati was the Rajguru of Vaishali. King Marutta of Vaishali brought up Bhardwaj. According to the Matsya, Vayu Puranas, Bhardwaj was brought up by the god Marut. None of the sons of Puru dynasty, king Bharata was eligible to become the king. King Marutt handed over the promising child, Bharadwaj to Bharat. After being adopted by Bharata, Bharadwaja was called a Kshatriya Brahmin. After the death of King Bharat, Bhardwaj went to the forest for penance by making his son Vitath or Vidthin as the ruler. According to the Aitareya Brahmana, Bhardwaj was tall, lean, ascetic, learned and lived a long life. In Arthveda and Brahmin-texts, Bhardwaj has been called Vedic Sukta seer. He composed many hymns of the sixth division of Rigveda. That’s why he has been called the scholar of his era. The sage who was the collector of Veda mantras was decorated with the title of Vyasa. Bhardwaj is also famous as Vyakarancharya. He got the knowledge of this scripture from Indra. Indra learned grammar from Brihaspati and Brihaspati from Brahma. According to Samveda, Brahma was the original author of grammar. Famous grammarians Panini and Patanjali have also quoted many rules from Bhardwaj. Sage Bhardwaj had done important work in Ayurveda as well. The famous Vaidya Dhanvantari was his disciple. Bhardwaj was also the author of a Kalpasutra. The Kalpasutra consists of three parts, the Srauta Sutras, the Dharma-Sutras and the Grihya Sutras. Bhardwaj Samhita, Bhardwaj Smriti, Vastu Tattva and four stotras of Vedas are also considered to be his creations. Vitath or Vidthin. Among the descendants of Bhardwaj, those who sat on the throne were called Pauravas. Bhuvamanyu was the mighty son of Vitatha. His eldest son Brihakshatra became the king and the other four sons Mahavirya, Shunhotra, Nara and Garga became Brahmins. Among the descendants of Vidthin, Gargya Sankriti, Urukshat, Pushkar and Kavya etc. became famous sages. All these are called Vaidthin. Being associated with both Brahmin and Kshatriya clans, he is also called Dwamushyayan. Hasti became the king in Vaidthin dynasty. He established the city of Hastinapur. His three sons were Ajmeedh, Dwimeedh and Purumeedh. Sage Kanva was born from Keshini, the wife of Ajmidh, who composed most of the Suktas of the first Mandala of the Rigveda. According to Bhagwat, he was one of the fifteen disciples of Yajnavalkya. He was the originator of the Kanva branch of Yajurveda. Kanva Upanishad Kanva Niti, Kanva Smriti etc. books are popular by his name. The descendants of Kanva were called Kanvayan Brahmins. Krit, a descendant of Dwimidh, learned Yoga Vidya from Hiranya named Kaushalya and composed twenty-four codes of Smritis. Mudgal became the king of North Panchal country in the sixth generation of Ajmeed. His eldest son became a Brahmin. His grandson was Divodas and granddaughter Ahalya. Ahalya was blessed with Gautama.