ऋषि मुदगल :
मुदगल अंगिरा कुल में उत्पन्न प्राचीन वैदिक ऋषि थे। वे ऋग्वेद के दशम मंडल के १०२ वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि थे।पिता का नाम मुद्गल और माता भागीरथी थी। इनकी पत्नी का नाम जाबाला था। महाभारत में चन्द्र सेना नाम है। वैदिक ग्रन्थों में इनका कई बार उल्लेख हुआ है। ऋषि मुदगल, राम की सभा के एक मंत्री थे। महर्षि मुदगल ऋग्वेद कि मुख्य शाखा- शाकल्य संहिता के द्रष्टा महर्षि शाकल्य के पाँच शिष्यों में से सर्वप्रथम थे। इनकी पत्नी इंद्रसेना या मुद्गलानी कही गई है। इनका दिव्य, आदर्शमय एवं कल्याणकारी जीवनवृत बृहद् देवता आदि धार्मिक और वैदिक ग्रंथों के अतिरिक्त कई पुराणों में भी है । ऋषि मुदगल और उनके पाँच भाई के कारण पांचाल प्रदेश विख्यात हुआ।
ऋषि मुदगल ने मुद्गलपुराण की रचना की है।
महर्षि मुद्गल पांचाल देश के प्रसिद्ध तीर्थ कुरुक्षेत्र में रहते थे| ये महान् दानी, धर्मात्मा, तपस्वी, जितेंद्रिय, भगवत् भक्त एवं सत्यवक्ता थे और देवता, अतिथि, गौ, ब्राह्मण तथा संत-महात्माओं के परमभक्त थे।
ये शिलोच्छवृति से सपरिवार अपना जीवन निर्वाह करते थे। प्रत्येक पंद्रह दिनों में एक द्रोण धान्य, जो लगभग ३४ सेर के बराबर होता है, इकट्ठा कर लेते थे। उसी से पार्वायणान्तीय इष्टियों का संपादन करते अर्थात् प्रत्येक पन्द्रहवें दिन अमावस्या एवं पूर्णिमा को दर्शपौर्णमास याग एवं आयनों में आग्रायण-यज्ञ किया करते थे। एक बार भगवान् विष्णुको प्रसन्न करने के लिये ऋषि मुदगल ने यज्ञ का अनुष्ठान किया। उनके यज्ञ तथा भक्ति भाव से सन्तुष्ट होकर गरुड़ की पीठपर बैठे हुए भगवान् विष्णु ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया।
भगवान दर्शन पाकर महर्षि मुद्गल बहुत प्रसन्न हुए और कहा – हृषीकेश ! मैं कृतार्थ हो गया । मेरी धर्मपत्नी भी धन्य धन्य हो गयी । मेरा जन्म, मेरा जीवन सफल हो गया। मेरी तपस्या का फल मुझे मिल गया । भगवान विष्णु ने कहा मुद्गल ! मैं तुमसे बहुत प्रभवित हूँ और इस यज्ञ में प्रत्यक्ष रूप से भोग लगाने के लिये आया हूँ। तदनन्तर भगवान ने मुद्गल मुनि से कहा – ‘सुव्रत ! मैं प्रसन्न हूँ और तुम्हें वर देना चाहता हूँ; तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो । मुद्गल ने कहा – ‘प्रभो! आपने प्रत्यक्षरूप से दर्शन देकर मेरी सेवा स्वीकार की है, इतने से ही मैं कृतार्थ हो गया। आपमें मेरी निश्चल एवं निश्छल भक्ति बनी रहे – यह मेरा पहला वर है। इसके सिवा मैं प्रतिदिन सायंकाल और प्रातः काल आपके स्वरूपभूत अग्निकी तृप्ति एवं आपकी प्रीति के लिये गाय के दूधसे हवन करना चाहता हूँ। मेरी यह इच्छा पूर्ण हो– यही मेरे लिये द्वितीय वर होगा । भगवान् ने अपने भक्त मुदगल की ये दोनों ही इच्छाएँ पूर्ण कीं। उन्होंने विश्वकर्मा के द्वारा एक सरोवर का निर्माण कराया और सुरभि गाय को आज्ञा दी कि तुम प्रतिदिन सबेरे और शाम को यहाँ आकर इस सरोवर को अपने दूध से भर दिया करो । सुरभि ने ‘बहुत अच्छा कहकर भगवान् की आज्ञा स्वीकार की । भगवान् ने मुदगल से यह कहा – ‘महर्षे! तुम देहावसान होने के पश्चात् सब बन्धनोंसे मुक्त हो मेरे परम धाम में आ जाओगे। यों कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये। उनके जीवनकाल तक सुरभि प्रतिदिन वहाँ दूध देती रही । आज भी वह सरोवर क्षीरसागर के नाम से विख्यात परम तीर्थ बनकर महर्षि मुदगल के मूर्तिमान् सुयश की भाँति शोभा पा रहा है।
English Translation.
Rishi Mudgal:
Mudgal was an ancient Vedic sage born in Angira clan. He was the seer sage of the 102nd Sukta of Dasam Mandal of Rigveda. His father’s name was Mudgal and mother Bhagirathi. His wife’s name was Jabala. Chandra Sena is his name in the Mahabharata. He has also been mentioned many times in the Vedic texts. Sage Mudgal was a minister in the court of Rama. Maharishi Mudgal was the first of the five disciples of Maharishi Shakalya, the seer of the Shakalya Samhita, the main branch of the Rigveda. His wife is called Indrasena or Mudgalani. His divine, ideal and benevolent life story is also mentioned in many Puranas apart from religious and Vedic texts like Brihad Devta. Panchal Pradesh became famous because of the sage Mudgal and his five brothers.
Sage Mudgal has composed Mudgalpuran.
Maharishi Mudgal lived in Kurukshetra, the famous pilgrimage center of Panchal country. He was a great donor, religious soul, ascetic, Bhagwat devotee and a truthful speaker and was the supreme devotee of gods, guests, cows, Brahmins and saints.
He used to live his life with his family by penance. Every fortnight one drona of grain, which is equal to about 34 kgs, was collected. From the same, while editing Parvayanantiya Ishti, that is, on every fifteenth day, on new moon and full moon, they used to perform Agrayan-Yajna in Darshapurnmas Yag and Aayan. Once, to please Lord Vishnu, sage Mudgal performed a ritual of Yagya. Satisfied with his sacrifice and devotion, Lord Vishnu, sitting on the back of Garuda, appeared before him.
Maharishi Mudgal was very happy after seeing God and said – Hrishikesh.! I am grateful to you. My wife has also been blessed. My birth, my life has become successful. I got the fruit of my penance. Lord Vishnu said Mudgal! I am very impressed with you and have come directly in this Yagya. After that God said to Mudgal Muni – I am happy with you and want to give you a boon. Ask for whatever you want. Mudgal said – ‘ Lord! You have accepted my service by giving me a direct darshan, that’s why I am grateful. May my constant and unflinching devotion remains in you – Yhis is my first boon. Apart from this, I want to perform Havan every evening and morning with cow’s milk for the satisfaction of fire as well as for your love. May this wish of mine be fulfilled – this will be my second boon. The Lord fulfilled both these wishes of his devotee. He got a lake built by Vishwakarma and ordered Surbhi cow to come there every morning and evening and fill the lake with her milk. Surbhi accepted God’s order’l. God said this to Mudgal, Maharshi ! After your death, you will be free from all bondages and will come to my supreme abode. By saying this, God disappeared. Surbhi continued to give milk thereafter, every day till his life. Even today, that lake, known as Kshirsagar, which become an ultimate sanatna dharma pilgrimage and is being adorned like Suyash, the idol of Maharishi Mudgal.