गोस्वामी तुलसी दास
गोस्वामी तुलसीदास संत थे। उन्होंने राम चरित मानस की रचना की थी। वे हिंदी साहित्य के एक महान कवि थे। उन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। गो० तुलसी दास के समय भारत पर मुगलों का राज्य था। पंजाब के सूबेदार दौलत खां द्वारा आमंत्रित बाबर ने सन् 1518 ई० से लेकर 1525 ई० तक भारत पर कई आक्रमण किये व पंजाब के कई स्थान अपने अधिकार में कर लिए। 1526 ई० में पानीपत के स्थान पर इब्राहीम लोधी व बाबर के मध्य भीषण युद्ध हुआ। लोधी मारा गया, बाबर की विजय हुई। 1527 ई० में बाबर ने राणा संग्राम सिंह पर आक्रमण कर दिया। बाबर ने इस जीत को अल्लाह की देन समझा और राजपूतों के शिरों का स्तूप बनाकर अपनी जीत का स्मारक खड़ा किया। उसने हिन्दुओं के मन्दिर तोड़ कर मस्जिदें बनाई, अयोध्या का वर्णन करते हुए लाला सीता राम लिखते हैं। “बहुत ही थोड़ी तोड़ फोड़ से मन्दिर की मस्जिद बन गई” मूसा आशिकान ने मरते समय कहा “जन्म स्थान का मन्दिर हमारे ही कहने से तोड़ा गया है। इस के दो खम्बे बिछाकर हमारी लाश रखी जाए और दो हमारे सिरहाने गाढ दियें जाए।” मुस्लिम राम भक्त अमीर खुसरो का जन्म एटा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उन्होने राम नाम की महिमा गाई है। मुस्लिम राम भक्तों को उन से प्रेरणा मिली है।
रहीम अपने बुरे दिनों में गो० तुलसी दास के साथ चित्रकूट में रहे, उन्होंने श्री राम के प्रति अपने भाव इस प्रकार प्रकट किये है। चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेश। जा पर विपदा परत है, वह आवत यही देश ।। भज मन राम सिया पति रघुपति ईश। दीन बन्धु दुखः हारन कौशलाधीश ।। उन की वाणी का अन्य उदाहरण है।
राम नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उत्पादि। कहि रहीम तिहि आपुनो जनम गंवायो वादि ।।
दरिया का कथन :
सुमरिन राम का कर लीजे दिन रात । हाथ काम मुख राम है, हिरदे सांची प्रीत । दरिया ग्रेहीं साध की, याही उत्तम रीत ।। रज्जब कहते हैं।
राम रसायन पीजिए, पी ए ही सुख होय ।।
गोस्वामी तुलसी दास रचित 40 कृतियों में से केवल 12 ही प्रमाणिक मानी जाती है। अन्य भाव, भाषा शैली भिन्न होने के कारण विद्वान किसी अन्य लेखक द्वारा रचित मानते है। राम साहित्य के अन्तर्गत वे रचनाएं हैं। राम चरित मानस के अतिरिक्त बजरंग बाण, बजरंग साठिका, छंदावली रामायण, छप्पय रामायण, हनुमान स्तोत्र, हनुमान चालीसा, हनुमान पंचक, पद-बंध रामायण, राम मुक्तावली, संकट मोचन आदि ।
तुलसी दास के प्रमाणिक ग्रन्थों में राम साहित्य के अन्तर्गत निम्न ग्रन्थ हैं। राम चरित मानस, जानकी मंगल, गीतावली, राम लला नहछु, बरवै रामायण, हनुमान बाहुक, रामाज्ञा प्रश्न आदि। राम चरित मानस भक्ति काव्य है। यह तुलसी दास का सर्वोतम ग्रंथ है। इस में सात काण्ड हैं। इस ग्रन्थ में राम जन्म से लेकर अयोध्या लोटने तथा राम राज्य का वर्णन है। अन्तः साक्ष्य के आधार पर इस का आरम्भ मंगलवार, चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, स० 1631 वि० है। दोहा, चौपाई, सोरठा, छंद आदि वृत में रचित है। ग्रन्थ-रचना का मुख्य उद्देश्य राम भक्ति का प्रचार है। तुलसी दास ईष्ट देव राम हैं। वे ही मानस कथा के प्रतिपाद्य हैं । जेहि मंहु आदि मध्य अवसाना । प्रभु प्रति पाद्य राम भगवान।। राम चरित मानस के प्रेरणा स्रोत :
तुलसी दास के कथन के अनुसार “उन की रचना” नाना पुराण निगमागम सम्मत है। अध्यात्म रामायण से अधिक प्रभावित है। इस के अतिरिक्त तुलसी दास महाभारत, अनर्ध राघव, प्रसन्न राघव, आनन्द रामायण, अद्भुत रामायण, रघुवंश, नृसिंह, भागवत पुराण, योग वसिष्ठ सत्योपाखान आदि से भी प्रभावित है।
सर्व प्रथम योग वसिष्ठ में काकभुशुणिड की कथा मिलती है, परन्तु उसमें राम भक्ति या पूर्व जन्म की कथाएं उपलब्ध नहीं है। सत्योपाख्यान में काकभुशुणिड की कथा कुछ अन्तर के साथ है।
वास्तव में मानस की कथा वस्तु का मूल आधार वाल्मीकि रामायण है। परन्तु इस में प्रकाशित धर्म-भावना मध्यकालीन सहित्य की है।
तुलसी की भक्ति भावना मानस के छंद योजना से भी दिखाई देती है। मानस का आरम्भ वैदिक अनुष्टुप से तथा प्रत्येक काण्ड के आरम्भ में संस्कृत वृतों में मंगला चरण उन की शास्त्र निष्ठा व संस्कृत प्रेम और धार्मिक रुचि के प्रमाण है। संस्कृत के सरस और मधुर छंदो के प्रयोग ने ग्रन्थ के समस्त वातावरण को दिव्यता प्रदान कर दी है।
संगीत की दृष्टि से भी राम चरित मानस के छंद अत्यधिक मनमोहक है। इस ग्रन्थ का सस्वर पाठ एक अनुयम आहलाद प्रदान करता है। समाज के सभी वर्गों में इस का पाठ अति लोकप्रिय है। सुन्दर काण्ड में राम भक्त हनुमान का यशोगान है। विघ्न निवारण हेतु लोग मंगलवार व शनिवार को सुन्दर काण्ड का पाठ करते है। गोस्वामी तुलसी दास के हृदय की सब से बड़ी बलवती भावना भक्ति थी। कई स्थलों पर उनका भक्ति काव्य मधुर हो उठा है। यथा भय प्रगट कृपाला, दीन दयाला कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भूत रूप विचारी ।तथा एहि मंह रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुराण श्रुति सारा ।। मंगल भवन अमंगल हरि । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ।। धन्य भूमि वन पंथ पहारा। जहं जहं नाथ पाउ तुम धारा ।। धन्य विहग मृग कानन चारी । सफल जनम भए तुम्हहिं निहारी ब्रह्म का स्वरूप : सगुण उपासक होते हुए भी तुलसी दास के काव्य में ब्रह्म के दोनों रूपों के दर्शन होते हैं ब्रह्म निरंकार रूप में भक्ति का आलम्बन नही बन सकता भक्ति के आलम्बन के लिए उसे सगुण रूप धारण करना होगा। तुलसी दास के अनुसार निर्गुण ब्रह्म भक्तों के प्रेम वश सगुण रूप धारण कर लेता है। अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई ।।
सैद्धान्तिक रूप में ब्रह्म निराकार ही माना गया है। तुलसी दास के सगुण राम भी वस्तुतः निर्गुण हैं। उन्होने निर्गुण और सगुण में भेद नही माना। भवबन्धनों से मुक्ति पाने के लिए दोनों रूपों को अपनाया जा सकता है। सगुनहिं अगुनहिं नहिं कुछ भेदा । उभय हरे भव संभव खेदा ।।
उन का कथन है :
हिय निर्गुण नयनहिं सगुन रसना राम सुनाम
तुलसी दास ने ज्ञान मार्ग की निन्दा नहीं की अपितु मुक्ति निरूपण करते समय ज्ञान की महता को स्वीकार किया। उन्होनें अपने काव्य में दोनों का परस्पर सम्बन्ध दिखलाया है।
जानकी मंगल : इस में विश्वा मित्र के साथ राम लक्षमण का मिथिला गमन से लेकर राम सीता के विवाह का वर्णन है भाषा ब्रज व अवधी मिली हुई है।
गीतावली – इस कृति में राम का जीवन चरित्र गेय छंदों में है। भाषा ब्रज है रचना काल 1643 वि० है ।