राजा मांधाता इक्ष्वाकु वंश का पच्चीसवाँ राजा मांधाता हुआ है । इस का समय लगभग तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। ऋग्वेद में इस का कई बार उल्लेख आया है। वहां मांधाता को ऋषि अंगिरा की तरह पवित्र कहा गया है। मांधाता के पिता राजा युवनाश्व द्वितीय थे। वे बहुत दानी राजा थे, उन्होंने अपनी अपार सम्पत्ति ऋषि आश्रमों में दान दे दी थी। मांधाता की माता गौरी पौरव राजा मतिनार की पुत्री थी । उसकी बहिन कावेरी कान्यकुब्ज के राजा जन्हु को व्याही गई थी। मांधाता अयोध्या पर राज्य करते थे। यादव नरेश शशबिंदु की कन्या बिंदुमती इनकी पत्नी थीं, जिनसे मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और 50 कन्याएँ उत्पन्न हुई थीं। मांधाता ने ऋषि उतथ्य से राजधर्म का उपदेश प्राप्त किया। यह उपदेश उतथ्य – गीता’ में संग्रहीत है। ऋषि वसुदण्ड से इसने दण्ड नीति सीखी। अन्य कई ऋषियों से इसने विभिन्न विधाएं सीखीं तथा दिव्यास्त्रों का प्रशिक्षण लिया । मान्धाता एक महत्वाकांक्षी राजा थे। वह दुनिया को जीतना चाहता था। उसके आक्रामक तेवर को देखकर इंद्र सहित देवता बहुत घबरा गए। इंद्र ने अपना आधा राज्य मान्धाता को देने की पेशकश की, लेकिन वह नहीं माना। उन्होंने पूर्ण इंद्रलोक राज्य की इच्छा की। इंद्र ने उन्हें अवगत कराया कि पूरी पृथ्वी भी उनके अधीन नहीं है, लवणासुर उनकी बात नहीं सुन रहा है। मान्धाता लज्जित होकर मृत्युलोक लौट आया। इसके बाद लवणासुर और मान्धाता की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। लवण ने अपने त्रिशूल से राजा मान्धाता को मार डाला और उनकी सेना को हरा दिया
राजा मांधाता का विवाह यादव राजा शशविन्दु की बेटी बिन्दुमति से हुआ। इसके तीन पुत्र पुरूकुत्स, अम्बरीश और मुचुकुंद थे। इसने यादव राजाओं के अतिरिक्त हैहय, द्रयु, आनव आदि को जीत लिया था । हैह्य राजा दुर्दम बहुत पराक्रमी था। उसने मध्य भारत में धाक जमा रखी थी। मांधाता ने उसे परास्त करने के पश्चात् मरूत, गय और वृहद्रथ राजाओं की विशाल सेनाओं को नष्ट कर के उन पर विजय पाई । द्रह्यु राजा रिपु निरन्तर चौदह मास युद्ध करने के पश्चात् उसके हाथों मारा गया । समस्त पृथ्वी को जीतने के पश्चात् गुरू वशिष्ठ के आदेशानुसार इसने सौ राजसूय तथा सौ अश्वमेघ यज्ञ किए । विष्णु पुराण में इस की वीरता का उल्लेख इस प्रकार है :
“जहाँ तक सूर्य उदय होता है और जहाँ तक ठहरता है, वह सारा भू-भाग युवनाश्व पुत्र मांधाता का क्षेत्र है।” पद्य पुराण में राजा मांध आता को दयालु और प्रजापालक कहा गया है। एक बार इसके राज्य में अकाल पड़ गया । सब ओर हाहाकर मच गया। वर्षा न होने का कारण एक वृषल द्वारा तपस्या करना कहा गया और इसे सुझाव दिया गया कि उस तपस्वी का वध कर दिया जाए तो वर्षा हो सकती है, परन्तु मांधाता ने कहा, “प्रत्येक व्यक्ति को तपस्या का अधिकार है। अतः तपस्वी का वध अनुचित है।” उसने एकादशी व्रत रखने आरम्भ कर दिए । वर्षा होने पर अकाल समाप्त हो गया । समस्त प्रजा पुनः सम्पन्न हो गई। वह मांस भक्षण के बहुत विरूद्ध था।
ऋषि-मुनियों की गोष्ठियों में राजा मांधाता सदैव भाग लेता था । वायु पुराण के अनुसार वह क्षत्रिय था, परन्तु विद्वता के कारण ब्राह्मण कहलाने लगा। विदेशी विद्वान लुडविग ने धार्मिकता के कारण इसे राजर्षि कहा है। सभी राजाओं को जीतने के पश्चात् मांधाता ने इन्द्र पर आक्रमण कर दिया । इन्द्र स्वयं युद्ध में शामिल नहीं हुआ । उसने इसका सामना करने के लिए लवणासुर को भेज दिया। लवणासुर के हाथों सम्राट मांधाता की मृत्यु हो गई।