अयोध्या के प्रमुख राजा राजा मुचुकुंद पुरुकुत्स के विरक्त होने के पश्चात् सम्राट मांधाता के द्वितीय पुत्र मुचुकुंद ने नर्मदा के तट पर ऋक्ष और पारियात्र पर्वतों के बीच एक नगर बसाया और वहीं रहने लगा। मांधाता के तीन बेटे थे, अमरीश, पुरु और मुचुकुंद। मुचकुंद ने असुरों के खिलाफ लड़ाई में देवताओं की मदद की और विजयी हुए। देवासुर युद्ध में इंद्र ने महाराज मुचुकुंद को अपना सेनापति बनाया था। युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद। कई दिनों तक युद्ध करने के बाद जब मुचुकंद थक गए तो महाराज मुचुकुंद ने आराम करने की इच्छा जताई तो देवताओं ने उन्हें अनिश्चित काल तक सोने का वरदान दिया। एक बार राजा मुचुकुंद ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया। कुबेर ने राक्षसों की सहायता से इस की सारी सेना नष्ट कर दी। इस ने अपनी हार का दोष गुरूओं पर लगाया गुरू वशिष्ठ ने घोर परिश्रम के पश्चात् राक्षसों की समाप्ति की । कुबेर ने ताना देते हुए मुचुकुंद से कहा, “अपने शौंर्य से मुझे जीतों, ऋषियों की सहायता क्यों लेते हो?” मुचुकुंद ने तर्क पूर्ण उत्तर दिया, “ तप और मंत्र का बल ब्राह्मणों के पास है। शस्त्र विद्या क्षत्रियों के पास राजा का कर्त्तव्य है कि वह दोनों शक्तियों का उपयोग करके राष्ट्र का कल्याण करे”। देवासुर संग्राम में राजा मुयुकुंद ने देवों का साथ दिया । दैत्य हार गए। इस की वीरता से प्रसन्न होकर देवों ने इसे वर मांगने को कहा । वह थकावट के कारण एक गुफा में सोया हुआ था । निद्रित अवस्था में ही इस ने कहा, “मुझे नींद से जो जगाए, वह भस्म हो जाए ।” कुछ समय पश्चात् कृष्ण काल यवन राक्षस से बचा हुआ गुफा में आ गया। उसने अपना उत्तरीय मुचुकुंद पर डाल दिया, और स्वयं एक ओर छिप गया। काल यवन भी कृष्ण का पीछा करता हुआ वहां आ पहुंचा उसने पूरे बल कृष्ण समझकर, मुचुकुंद को टांग मारी । मुचुकुंद क्रोध से आग बगूला हो गया, ज्योंही उसने काल यवन को देखा। वह खत्म हो गया । कृष्ण ने उसे क्षत्रिय धर्म निबाहने तथा अपनी नगरी में जाने को कहा। इस की अनुपस्थिति में हैहय राजा ने इस की नगरी पर अधिकार कर लिया था। वहां जाकर इसने देखा कि प्रजा भ्रष्ट हो गई। वह बहुत दुःखी हुआ तथा हिमालय में बदरिका आश्रम में तपस्या करने लगा। वहीं उसने अपना शरीर त्याग दिया । मुचुकुंद के साथ श्री कृष्ण की घटना काल्पनिक लगती है, क्योंकि श्री कृष्ण महाभारत काल में हुए हैं। उस समय ईक्ष्वाकु वंश का राजा वृहद्बल अयोध्या का राजा था । मुचुकुंद वृहदृबल से कई पीढ़ियाँ पहले हुआ है। मुचकुंद, ने असुरों से युद्ध कर, देवताओं को विजयश्री दिलाई थी। जब कई दिनों तक लगातार युद्ध करने के कारण मुचुकंद थक गए, तब देवताओं ने उन्हें अनिश्चित समय तक शयन करने का वरदान दिया था। त्रेता युग में महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए, अमरीष, पुरू और मुचुकुन्द। युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचुकुन्द को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय श्री मिलने के बाद महाराज मुचुकुन्द ने विश्राम की इच्छा प्रकट की।