यह अंशुमान् के पुत्र थे। कपिल मुनि के शाप से सगर के साठ हजार पुत्र दग्ध हो गए थे। ऋषि ने अंशुमान् को युक्ति बताई थी कि गंगा को उस क्षेत्र तक लाया जाए तो वे पुनर्जीवित हो सकते हैं । अंशुमान् और दिलीप ने गंगा को धरती पर लाने का घोर परिश्रम किया, पर वे अपने जीवनकाल में सफल नहीं हुए। महाभारत मेंं अभिमन्युवध के समय ‘नारद ने सृंजय से राजा दिलीप के उत्कर्ष का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है- नारद जी कहते हैं– सृंजय! इलविला के पुत्र राजा दिलीप की भी मृत्यु सुनी गयी है, जिनके सौ यज्ञों में लाखों ब्राह्मण नियुक्त थे। वे सभी ब्राह्मण वेदों के कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड के तात्पर्य को जानने वाले, यज्ञकर्ता तथा पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न थे। राजा दिलीप सत्यवादी मानव थे। पृथ्वीपति दिलीप ने यज्ञ करते समय अपने विशाल यज्ञ में धन-धान्य से सम्पन्न इस सारी पृथ्वी को ब्राह्मणो के लिये दान कर दिया था। राजा दिलीप के यज्ञों में सोने की सड़कें बनायी गयी थीं। इन्द्र आदि देवता मानो धर्म की प्राप्ति के लिये उन्हें अलंकृत करते हुए उनके यहाँ पधारते थे। वहाँ पर्वतों के समान विशालकाय सहस्त्रों गजराज विचरा करते थे। राजा का सभामण्डप सोने का बना हुआ था, जो सदा देदीप्यमान रहता था। वहाँ रस की नहरें बहती थीं और अन्न के पहाड़ों जैसे ढेर लगे हुए थे। राजन! उनके यज्ञ में सहस्त्र व्याम-विस्तृत सुवर्णमय यूप सुशोभित होते थे। उनके यूप में सुवर्णमय चषाल और प्रचषाल लगे हुए थे। उनके यहाँ अप्सराएँ नृत्य करती थीं.और साक्षात गन्धर्वराज विश्वावसु प्रेमपूर्वक वीणा बजाते थे। कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम के अनुसार रघु के वंश में 29 राजा पैदा हुए थे। इन 29 राजाओं में दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। ये राजा समाज के आदर्श माने जाते थे। ये सभी समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल रहे। के गुण भगवान राम का विस्तार से वर्णन किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि रामायण की रचना किसके द्वारा की गई है आदिकवि वाल्मीकि, भगवान राम को नायक बनाते हैं, लेकिन कालिदास द्वारा लिखी गई कहानी ने किसी चरित्र को नायक के रूप में उभारा नहीं। उन्होंने अपनी कृति ‘रघुवंश’ में पूरे राजवंश की कहानी की रचना की, जो दिलीप से शुरू होती है और अग्निवर्ण पर समाप्त होती है। अग्निवर्ण की मृत्यु और उनकी पत्नी के राज्याभिषेक के परिणामस्वरूप महाकाव्य शुरू होता है। राजा अग्निवर्ण के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन के कारण इस वंश का पतन हो गया। इस वंश के 29 राजा निम्नलिखित थे:- दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, कुश, अतिथि, निषध, नल, नभ, पुण्डरीक,, क्षेमधन्वा, देवानीक, अहीनगु, पारिपात्र, शिल, उन्नाभ, वज्रनाभ, शंखण, व्युषिताश्व, विश्वसह, हिरण्यनाभ, कौसल्य, ब्रह्मिष्ठ, पुत्र, पुष्य, धृवसन्धि, सुदर्शन, अग्निवर्णदिलीप (प्रथम) यह अंशुमान् के पुत्र थे। कपिल मुनि के शाप से सगर के साठ हजार पुत्र दग्ध हो गए थे। ऋषि ने अंशुमान् को युक्ति बताई थी कि गंगा को उस क्षेत्र तक लाया जाए तो वे पुनर्जीवित हो सकते हैं । अंशुमान् और दिलीप ने गंगा को धरती पर लाने का घोर परिश्रम किया, पर वे अपने जीवनकाल में सफल नहीं हुए। महाभारत मेंं अभिमन्युवध के समय ‘नारद ने सृंजय से राजा दिलीप के उत्कर्ष का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है- नारद जी कहते हैं– सृंजय! इलविला के पुत्र राजा दिलीप की भी मृत्यु सुनी गयी है, जिनके सौ यज्ञों में लाखों ब्राह्मण नियुक्त थे। वे सभी ब्राह्मण वेदों के कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड के तात्पर्य को जानने वाले, यज्ञकर्ता तथा पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न थे। राजा दिलीप सत्यवादी मानव थे। पृथ्वीपति दिलीप ने यज्ञ करते समय अपने विशाल यज्ञ में धन-धान्य से सम्पन्न इस सारी पृथ्वी को ब्राह्मणो के लिये दान कर दिया था। राजा दिलीप के यज्ञों में सोने की सड़कें बनायी गयी थीं। इन्द्र आदि देवता मानो धर्म की प्राप्ति के लिये उन्हें अलंकृत करते हुए उनके यहाँ पधारते थे। वहाँ पर्वतों के समान विशालकाय सहस्त्रों गजराज विचरा करते थे। राजा का सभामण्डप सोने का बना हुआ था, जो सदा देदीप्यमान रहता था। वहाँ रस की नहरें बहती थीं और अन्न के पहाड़ों जैसे ढेर लगे हुए थे। राजन! उनके यज्ञ में सहस्त्र व्याम-विस्तृत सुवर्णमय यूप सुशोभित होते थे। उनके यूप में सुवर्णमय चषाल और प्रचषाल लगे हुए थे। उनके यहाँ अप्सराएँ नृत्य करती थीं.और साक्षात गन्धर्वराज विश्वावसु प्रेमपूर्वक वीणा बजाते थे। कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम के अनुसार रघु के वंश में 29 राजा पैदा हुए थे। इन 29 राजाओं में दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। ये राजा समाज के आदर्श माने जाते थे। ये सभी समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल रहे। के गुण भगवान राम का विस्तार से वर्णन किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि रामायण की रचना किसके द्वारा की गई है आदिकवि वाल्मीकि, भगवान राम को नायक बनाते हैं, लेकिन कालिदास द्वारा लिखी गई कहानी ने किसी चरित्र को नायक के रूप में उभारा नहीं। उन्होंने अपनी कृति ‘रघुवंश’ में पूरे राजवंश की कहानी की रचना की, जो दिलीप से शुरू होती है और अग्निवर्ण पर समाप्त होती है। अग्निवर्ण की मृत्यु और उनकी पत्नी के राज्याभिषेक के परिणामस्वरूप महाकाव्य शुरू होता है। राजा अग्निवर्ण के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन के कारण इस वंश का पतन हो गया। इस वंश के 29 राजा निम्नलिखित थे:- दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, कुश, अतिथि, निषध, नल, नभ, पुण्डरीक,, क्षेमधन्वा, देवानीक, अहीनगु, पारिपात्र, शिल, उन्नाभ, वज्रनाभ, शंखण, व्युषिताश्व, विश्वसह, हिरण्यनाभ, कौसल्य, ब्रह्मिष्ठ, पुत्र, पुष्य, धृवसन्धि, सुदर्शन, अग्निवर्ण