रामचरित मानस के लक्ष्मण शेष के अवतार हैं। शास्त्रीय महाकाव्य रामायण में, लक्ष्मण को भगवान विष्णु की अभिव्यक्ति का एक घटक माना जाता है, हालांकि कुछ परंपराओं से पता चलता है कि वह शेष के अवतार हैं। जन्म के समय ही तत्त्वज्ञानी गुरु वसिष्ठ ने उनके शुभ लक्ष्णों को देखकर उनका नाम लक्ष्मण रखा। राम ब्रह्म हैं। लक्ष्मण उनके अंश । वे राम निष्ठ हैं। राम के साथ उनकी प्रीति शाश्वत बाल्यकाल से ही है। दोनों का परस्पर प्रेम ब्रह्म और जीव के समान है। लक्ष्मण का अस्तित्व ही राम पर निर्भर है। राम ही उनके स्वामी गुरू माता-पिता सब कुछ हैं। मन, कर्म, वचन से वे राम के चरणों के अनुरागी हैं। वनवास काल में उन्हें माता-पिता बंधु पत्नी, घर की याद नहीं सताती । लक्ष्मण ने दुख और सुख में सदैव राम का साथ दिया है। विश्वामित्र के यज्ञरक्षा से आरम्भ करके, स्वयंवर सभा में चित्रकूट और पंचवटी की पर्ण कुटीरों में, दण्डक वन में पम्पासर और प्रस्रवन पर्वत पर सुवेल के सैन्य शिविर में सर्वत्र वे प्रतिच्छाया के समान राम के साथ रहे हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि उनके मूर्च्छित होने पर राम अत्यन्त शोक ग्रस्त हो जाते हैं और उन्हें सीता से भी अधिक अपना स्नेह-भाजन कहते हैं । अयोध्या लौटने के बाद भी वे रामका दाहिना हाथ बने रहते हैं। लंका युद्ध के अनुभवशील लक्ष्मण को श्री राम सेनापति के पद पर प्रतिष्ठित करते हैं। राम के लिए उन्हें क्रूर से क्रूर बनना पड़ता है। सीता- निर्वासन का कठोरतम कार्य भी उन्हें ही सौंपा जाता है। गर्भवती असहाय सीता को निर्जन वन में छोड़ना लक्ष्मण के लिए अत्यन्त दुखद है, परन्तु आज्ञाकारी लक्ष्मण पाषाण हृदय बनकर यह कार्य भी करते हैं। सीता को लक्ष्मण सदैव माता- तुल्य मानते हैं। वे सीता के मर्मवेधी वचनों से भी विचलित नहीं होते। न ही भाई राम के सामने उस कटुवाणी का उल्लेख करते हैं। श्री राम के पूछने पर कि सीता को अकेली क्यों छोड़ आए हो, वे केवल यही कहते है पद कमल अनुज कर जोरी कहेउ नाथ कछु मोहे न खोरी सीता के द्वारा फेंके गए आभूषणों की पहचान के समय वे केवल पैरों के आभूषण ही पहचान पाते हैं क्योंकि चरणवंदना के समय वे प्रतिदिन देखते थे। लक्ष्मण के व्यक्तित्व में तेजस्विता, निर्भीकता, साहस, वीरता, ब्रह्मचर्य आदि गुणों का समावेश हैं। मानस के लक्ष्मण को राम तुल्य कहना अत्युक्ति नहीं, क्योंकि वे उन्हीं के अंश हैं । भरत के बेटों को तक्षशिला और पुष्कलावत के राजा बनाने के पश्चात् श्री रामचन्द्र ने भरत के परामर्श से कारूपथ देश को अपने अधि कार में किया और वहां भी सुन्दर नगर बसाए । लक्ष्मण की एक पुत्री थी उनका नाम सोमदा था और मेघनाद, लक्ष्मण का दामाद था। । लक्ष्मण के दो बेटे थे अंगद और ‘चंद्रकेतु । उर्मिल-लक्ष्मण के बेटे अंगद के लिए अंगदीया नामक राजधानी तथा चन्द्रकेतु के लिए चन्द्रकान्ता नाम की राजधानी का निर्माण किया । दोनों का अभिषेक किया। अंगद के पास एक वर्ष व भरत चन्द्र केतु के पास एक वर्ष रहने तथा उन्हें सुदृढ़ करने के पश्चात् अयोध्या लौट आए। श्रीराम द्वारा त्यागे जाने से दुखी होकर लक्ष्मण सीधे सरयू नदी के तट पर पहुंचे और योग क्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दिया। रामायण का प्रत्येक पात्र, हमारे समाज के लिए आदर्श था। उदाहरण के लिए: – रावण ने माता सीता को स्पर्श नहीं किया, हालांकि वह उनकी कैद में थी और महिलाओं के प्रति उनके सम्मान को दर्शाती है। उन्होंने बहुत उच्च नैतिकता और चरित्र का प्रदर्शन किया। लक्ष्मण एक आदर्श भाई थे। जब राम को उनके पिता द्वारा वनवास भेजा गया, तो लक्ष्मण स्वेच्छा से उनके साथ शामिल हो गए – उनके भाई के प्रति स्नेह और भक्ति के कारण। लक्ष्मण जी ने सीता स्वयंवर के दौरान अपने बड़े भाई राम पर परशुराम के क्रोध को आत्मसात कर लिया था और उनके अभिमान को चूर-चूर कर दिया था। जब परशुराम ने भगवान राम पर आक्रमण करने की धमकी दी तो लक्ष्मण जी ने तर्क दिया कि यदि परशुराम ने शिवधनुष पर प्रहार किया तो लक्ष्मण भी श्री राम की रक्षा के लिए प्रहार करेंगे। यह प्रसंग आज के आधुनिक युग में बहुत सार्थक सिद्ध होता है कि हमें अपने से अधिक शक्तिशाली लोगों के दबाव में नहीं रहना चाहिए और जहाँ विरोध करना स्वाभाविक हो वहाँ विरोध अवश्य करना चाहिए। सीता की खोज करते हुए जब सीता के आभूषण मिले। माता सीता के आभूषणों को पहचानने के लिए कहने पर लक्ष्मण ने उत्तर में कहा, ”मैं न तो बाहों में बंधे केयूर को पहचानता हूं और न ही कानों की बालियों को। मैं तो सिर्फ माता सीता ke पैरों की पायल को पहचानता हूं। भाई की पत्नी के साथ सम्बन्ध के आदर्श गुण का यह उत्तम उदाहरण है। चौदह वर्ष तक अपनी ही पत्नी उर्मिला से दूर रहना वैराग्य का उत्तम उदाहरण है। वह उर्मिला को जंगल की कठिनाइयों से दूर रखने के लिए अपने साथ नहीं ले गए। यह उनकी पत्नी के लिए सच्चा प्यार दर्शाता है