हिरण्यनाभ, अयोध्या के राजा विश्वसह का पुत्र था ।भगवान् श्रीराम के पुत्र कुश से अतिथि नामक पुत्र का जन्म हुआ, अतिथि का पुत्र हुआ निषध, निषध से नभ, नभ से पुण्डरीक और पुण्डरीक से क्षेमधन्वा। क्षेमधन्वा का देवानीक, देवानीक का अनीह, अनीह का पारियात्र, पारियात्र का बलस्थल और बलस्थल का पुत्र हुआ वज्रनाभ। यह सूर्य का अंश था । वज्रनाभ से खगण, खगण से विश्वसह और विश्वसह से हिरण्यनाभ की उत्पत्ति हुई।विश्वसह अपने आजानु बाहु पुत्र हिरण्यनाभ को राजा बनाकर वल्कलधारी हो कर जंगल में तप करने चला गया। हिरण्य नाभ का पुत्र कौशल्य हुआ। कीर्तियों से ब्रह्मलोक तक प्रसिद्ध वह कौशल्य ब्रह्मज्ञानी वसिष्ठ नामक अपने पुत्र को राज्य देकर ब्रह्मत्व गति अथवा मुक्ति को प्राप्त हुआ। वह श्रेष्ठ व प्रजा पालक राजा था । गुरू माता-पिता आदि की सेवा करने वाले विष्णु तुल्य देह वाले कमलपत्र के नेत्र वाले वसिष्ठ को सत्पुत्र वालों की प्रथम गणना में रख गया। उसका पुत्र ‘पुष्य’ हुआ । पुष्य को राज्य भार सौंप कर विद्वान जैमिनी मुनि को आत्म समर्पण कर वे उनके शिष्य बन गए। हिरण्यनाभ जैमिनिका का शिष्य और योगाचार्य था। कोसल देशवासी याज्ञवल्क्य ऋषि ने उसकी शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्म योग की शिक्षा ग्रहण की थी । वह योग हृदय की गाँठ काट देने वाला तथा परम सिद्धि देने वाला है। हिरण्यनाभ का पुष्य, पुष्य का ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि और सुदर्शन, सुदर्शन का अग्निवर्ण, अग्निवर्ण का शीघ्र और शीघ्र का पुत्र हुआ मरू । मरू ने योग साधना से सिद्धि प्राप्त कर ली और वह इस समय भी कलाप नामक ग्राम में रहता है। कलियुग के अन्त में सूर्यवंश के नष्ट हो जाने पर वह उसे फिर से चलायेगा। उसका पुत्र सुदर्शन अभी 6 वर्ष का था जब ध्रुवसन्धि शिकार खेलते-2 मारा गया । मन्त्रियों ने अयोध्या के सिहांसन पर बच्चे को बैठा दिया पहले जन्मान्तर में देखी गई विद्याओं को स्मरण करते हुए, के समान गुरूओं के सुख कारक सुदर्शन राजा ने तीनों विद्याओं-अन्वीक्षिकी त्रयी, वार्ता, मंत्री, सेना आदि को वशीभूत कर लिया। विद्वानों में प्रधान और जितेन्द्रिय रघु कुल उत्पन्न सुदर्शन अन्तिम अवस्था में अपने पुत्र अग्निवर्ण को अपने स्थान पर अभिषिक्त कर नैमिष अरण्य को चले गए। इक्ष्वाकु वंश का अन्तिम राजा सुमित्र था।