हर्षवर्धन का समय 606 ई0 से 641 ई0 तक था । ह्यूनस्यांग हर्ष के विषय में लिखता है- “वह शक्तिशाली शासक, उच्चकोटि का कवि ओर नाटककार था । साहित्यकारों का सम्मान करता था । वह बौद्धमत का कट्टर, अनुयायी बन गया । वह भूल गया कि वह एक राजा है। अहिंसा को परम धर्म मान लेने से साम्राज्य की रक्षा नहीं हो सकती।” चीनी यात्री ने हमारी धार्मिक उदारता की सराहना की है। परन्तु इस धार्मिक उदारता को विधर्मियों हमारी कायरता समझा। गजनवी से लेकर अभी तक धार्मिक स्थलों पर प्रहार किया, जो जारी है। स्पष्ट है, जब भारत शक्तिशाली रहा, आक्रमणकारियों ने मुंह की खाई। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त, पुष्यमित्र शुंग और गुप्त वंशीय महाराजाओं ने भारत का नाम उज्जवल किया, परन्तु जब भारत के शासक अहिंसा को परम धर्म मान कर क्षात्र धर्म से विमुख हुए भारत पर विदेशियों द्वारा आक्रमण आरम्भ हो गए।
महात्मा गांधी की अहिंसा नीती पिछली शताब्दी का एक जीवन्त उदाहरण है । जब हिंदुस्तान को एक तिहाई हिस्सा ज़िन्नाह को देना पड़ा। यही नही इस त्रासदी में लाखों हिन्दूओं को अपने पूर्वजों के घर छोड़ने पड़े और लाखों लोग मारे गये। आठवीं शताब्दी के आरम्भ में इस्लामिक शक्तियों ने भारत को कुचलना आरम्भ किया। देश विभाजन के समय जो अमानवीय अत्याचार हिन्दुओं पर ढाए गए, उनके घाव अभी तक भरे नहीं। अभी भी भारत के जिस क्षेत्र में ( काश्मीर, मेवात आदि) मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर मनमाने अत्याचार कर रहे हैं । हिन्दु और उनके धार्मिक स्थल असुरक्षित हैं। वह तभी सुरक्षित होंगे, जब हिन्दु संगठित होंगे, भारत के शासक अपनी दुलमुल नीति त्यागेंगे और तुलसीदास के कथन “भय बिन होए न प्रीत” को अपनाऐंगे।