राजा दाहर
और
मुसलमानों द्वारा भारत पर आक्रमण
चीनी यात्री हयून सांग कई वर्ष भारत में रहा। वह लिखता है। तक्षशिला विश्व विद्यालय भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर स्थित था। तक्षशिला उच्च शिक्षा का केन्द्र था। यहां अनेक विषयों- दर्शन, ज्योतिष, आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती थी। चीन, तुर्कीस्तान और पश्चिमी एशिया के सैंकड़ों विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिए आते थे। विदेशी मुगल आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफी क्षति पहुंचाई। अंततः छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया। नालन्दा विश्वविद्यालय पांचवी शताब्दी में प्रसिद्ध हुआ. हयून सांग चीनी यात्री ने सात वर्ष तक इस महाविश्वविद्यालय में कक्षा प्राप्त की। 20 वर्ष वह भिक्षु बन गया तथा 29 वर्ष की अवस्था में वह पुनः भारत आया और लगभग 15 वर्ष रहा। हयून सांग लिखता हैं- “भारत में हजारों बड़ी-2 शिक्षा संस्थाएँ है परन्तु नालन्दा के वैभव की कोई भी समानता नहीं कर सकती। यहां दस सहस्र विद्यार्थी बौद्ध-साहित्य के अतिरिक्त वेद, न्याय, व्याकरण, आयुर्वेद, सांख्य दर्शन का अध्ययन करते हैं। प्रतिदिन एक सौ आसानों से व्याख्यान दिए जाते हैं। कई पीढ़ियों से नरेश दान देते आए हैं। दान से ही विद्यार्थियों को भोजन, वस्त्र, औषधि आदि प्राप्त होते हैं। भव्य छात्रावास हैं। विद्याध्ययन करते-2 छात्रों की आयु लगभग तीस वर्ष हो जाती है। उनके ज्ञान व चरित्र के कारण राजा लोग उनका आदर करते हैं। राज धर्म कुलों में जन्म लेकर भी ये लोग वैभव से दूर रहते हैं। वे सत्य-अन्वेषण में सम्मान का अनुभव करते हैं और निर्धनता में उन्हें कोई ग्लानि नहीं। इस प्रकार की शिक्षा से भारत का मस्तक संसार में ऊंचा था। चरित्र की उज्जवलता और आत्म दर्शन लाखों व्यक्तियों का जीवन का ध्येय बना हुआ था। तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। कहा जाता है कि विश्व विद्यालय में इतनी पुस्तकें थी की पूरे तीन महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही। उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले। खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था। चीनी यात्री ने हिन्दू सांस्कृतिक और धार्मिक उदारता की सराहना की है। भारत की विशेषता रही है कि वे अन्य मतावलम्बियों के प्रति सदैव उदार रहे है। खेद है कि हमारी सहनशीलता और उदारता का नाजायज फायदा मुस्लिम आक्रमणकारियों ने उठाया उन्होंने हमें कार्यर समझा। हमारे धार्मिक स्थल तोड़े, हमारी संस्कृति नष्ट की। नारी जाति पर अत्याचार किए। यह क्रम सन् 1947ई0 तक चलता रहा।आज भी कुछ लोग कहते हैं- चुपचाप मार खाओं विरोध न करो। दुष्ट तुम पर अत्याचार करते हैं तो भगवान उन्हें सजा देगा। यह मान्यता सर्वथा गलत है। भारत किसी समय विश्व गुरु कहलाता था। परन्तु ईसा की आठवी शताब्दी के आरम्भ में मुसलमानों द्वारा भारत पर आक्रमण आरम्भ हो गए थें। यह मुहम्मद बिन कासिम से आरम्भ होकर लगभग 1200 वर्ष, भारत की धन सम्पदा की लूट तथा हिन्दुओं पर इस्लाम के कहर का दुखद इतिहास हैं। ईसा की आठवीं शताब्दी के आरम्भ में सिंध प्रदेश का शासक राजा दाहर था। उस के राज्य पर मुहम्मद बिन कासिम ने आक्रमण कर दिया। राजा दाहर हार गया। उसके बलिदान के बाद उसकी रानी लाडो ने सेना का नेतृत्व किया। हिन्दू सैनिक जी जान से लड़े। परन्तु जीत नहीं पाए। मुसलमान आततायियों से बचने का एक ही उपाय था, ‘मृत्यु का आलिंगन’ लाडो रानी अन्य महिलाओं के साथ धधकती चिता में कूद पड़ी। राजा दाहर की पुत्रियाँ उर्मिल और परमिल मुहम्मद बिन कासिम के हाथ लग गई। वह उन्हें खलीफा को सुपुर्द करने के लिए सोथ ले गया क्योंकि इस्लाम मत के अनुसार काफिरों की सम्पत्ति, स्त्रियाँ, बच्चे, पशुधन को माल-ए गनीमत समझकर लूट लेना चाहिए।” राजा दाहर की दोनों बेटियों को अपनी प्रतिष्ठा बचाने का एक उपाय सूझा वे दोनों खलीफा के सामने बिलखने लग गई। खलीफा ने उनके रोने का कारण पूछा। उन्होंने कहा, ” हम आपके योग्य नहीं रहीं। जो व्यक्ति हमें साथ लाया है, उसने हमें भ्रष्ट कर दिया है।” खलीफा क्रोध से आग बगूला हो गया और दोषी को मौत की सजा सुना दी। उसके मरने के पश्चात् उर्मिल और परमिल ठहाके लगाकर हसने लगी। खलीफा ने कारण पूछा। उन्होंने कहा, “हमने झूठ बोला था। सैनिक उनकी ओर बढ़ने वाले थे कि दोनों बहिनों ने पहने हुए कपड़ों के भीतर से कटारें निकाली और एक दूसरे का अन्त कर दिया। दरबारी स्तब्ध हुए देख रहे थे। भारतीय नारियाँ अबला नहीं, वे युद्ध क्षेत्र में लड़ भी सकती हैं और अपने सम्मान की रक्षा के लिए प्राण भी त्याग सकती हैं। ऐसी कथाएं साधारणतया इतिहासकार नहीं लिखते। परन्तु आम लोगों में वे दंत कथाओं के रूप में जीवित रहती हैं। उन्हें उपेक्षित नहीं करना चाहिए। 712 ई0 में सिंध पर अरबों का अधिकार हो गया था। अरब लेखक अल-जहीज 800 ई0 में लिखता है. “हिन्दुस्तान ने विज्ञान और गणित विश्व को सिखाये। हिन्दुस्तान के पास ऐसी लिपि है, जो विश्व की सभी भाषाओं की ध्वनियों को व्यक्ति कर सकती है। उसने भारतीय दर्शन और विद्वत्ता के विषय में भी लिखा है। मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा निस्तर लूट-मार से इसकी सम्पन्नता खत्म की गई। मुहम्मद बिन कासिम के द्वारा सिघ पर अधिकार करने के बाद महमूद गजनवी द्वारा लगभग प्रतिवर्ष ही भारत पर आक्रमण होते रहे हैं।
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