सोमनाथ मंदिर गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का उल्लेख कई वेद पुराणों में किया गया है और इसकी गणना द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रदेव ने भगवान शिव को अपना गुरु यानी नाथ मानकर तपस्या की थी। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ यानी ‘चंद्रमा के स्वामी’ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान सोमनाथ के दर्शन और उनकी पूजा करने से भक्तों के लिए मोक्ष के मार्ग खुल जाते हैं। सोमनाथ मंदिर 150 फीट ऊंचा है । इसमे एक असेंबली हॉल और एक डांस हॉल हैं । यह मन्दिर काठियावाड़ (गुजरात) में पत्थरों की शिलाओं पर खड़ा था, जिन्हें लकड़ी के 56 स्तम्भों ने सहारा दिया हुआ था। लिंग की ऊँचाई 7 फुट 6 इन्च थी तथा घेरा 4 फुट 6 इन्च। दो सौ मन सोने की जंजीर घण्टे के साथ लगी थी। मूर्तियाँ हीरे-जवाहरों से जड़ित थी। लिंग मोतियों से जगमगाता था। दस हजार गांवों की आय मंदिर के नाम थी। तीन सौ पचास स्त्री-पुरुष प्रतिदिन मंदिर की सेवा करते थे। इस मंदिर पर कई बार आतंकवादियों ने हमला किया है महमूद गजनी ने जनवरी, 1025 ई० में सोमनाथ पर हमला किया। उसने मंदिर की सारी संपत्ति लूट ली और मंदिर में रखी मूर्तियों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। मंदिर की रक्षा करते हुए कई हिंदू पुजारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मंदिर की पवित्रता की रक्षा करते हुए क्षेत्र के कई निवासी भी मारे गए। इस मंदिर को बाद में गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। इस मंदिर पर एक बार फिर 1297 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान ने हमला किया और इसकी बेशकीमती संपत्ति को लूट लिया (जब गुजरात पर दिल्ली की सल्तनत का कब्जा था) 13वीं और 14वीं शताब्दी में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा मंदिर को कई बार तोड़ा गया था, लेकिन भक्तों द्वारा इसके जीर्णोद्धार की प्रक्रिया भी साथ-साथ चलती रही। औरंगजेब के समय में भी सोमनाथ मंदिर पर दो बार हमला किया गया और उसे नष्ट कर दिया गया। उन्होंने यहां अपनी भारी हथियारों से लैस सैन्य टुकड़ियों को भेजकर हिंदू भक्तों के व्यापक नरसंहार को अंजाम दिया। लेकिन फिर भी हिन्दुओं का आना जाना और भगवान सोमनाथ की पूजा करना जारी रहा ।हिन्दुओं ने पूरी शक्ति से अपने आराध्य देव की रक्षा का प्रयत्न किया। पचास हजार हिन्दू लड़ते-2 शहीद हुए। लूटा हुआ माल व शिव लिंग के टुकड़े ऊँटों पर लाद कर महमूद गजनवी अपने देश ले गया और उन्हें जामा मस्जिद के कदमों पर रखा ताकि आते-जाते लोग उन्हें रोंघे। वह 15 दिन सोम नाथ रहा। अपार धन राशि के साथ वह सुरक्षित गजनी जाना चाहता था, क्योंकि उसे पता चल गया था कि मार्ग में कुछ लोग उसका रास्ता रोकेंगे। उसने सिंप पार करके एक पथ प्रदर्शक को साथ लिया। वह व्यक्ति शिव भक्त था। उसने मन ही मन निश्चय किया कि महमूद के सैनिकों को कुछ सजा मिलनी चाहिए। उसने सेना को ऐसे स्थान पर पहुंचाया, जहां मीलों तक पानी नहीं था। सैनिकों ने उसकी शरारत को भाप लिया और उसके टुकड़े-2 कर दिये। इस गुमनाम वीर जेसे असंख्य हिन्दू हुए हैं, जिन्होंने मातृभूमि और धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए प्राणों की परवाह नहीं की और मृत्यु का आलिंगन किया। वापसी पर महमूद का विरोध जाटों ने भी किया। उसकी लम्बी और काटदायक यात्रा का अन्त 1026 ई0 में हुआ। 1927 ई० में जाटों को सबक सिखाने के लिए। महमूद फिर भारत आया। जाटों ने उसका मुकावला किया, परन्तु उनका भी वहीं हाल हुआ जो धर्म-योद्धाओं का होता है। 1030 ई0 में महमूद मर गया। मुस्लिम इतिहासकार उटी एक महान सम्राट और इस्लामिक धर्म का योद्धा मानते हैं। परन्तु उसने हिन्दुओं के धार्मिक स्थल तोड़े। भारत के धन-जन की जो हानि उसके द्वारा हुई, ऐसा संसार में कोई उदाहरण नहीं है। भारत में अभी भी ऐसे मुस्लमान है जो उसकी प्रशंसा करते हैं। 1947 ई० में सोमनाथ मन्दिर के निर्माण की बात शुरू हो रही थी उसी समय आसाम के एक उर्दू पत्र में सम्पादक ने लिखा, “सोमनाथ मन्दिर का फिर निर्माण होने लगा है। मुसलमानों को कोई महमूद गजनवी तैयार करना चाहिए।” यह सुनकर महात्मा गांधी बहुत दुःखी हुए।