ancient indian history

Chaitanya Mahaprabhu

चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन् 1485 ई0 में बंगाल के नदिया या नवद्वीप में हुआ।
चैतन्य महाप्रभु को भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में माना जाता है । वह वैष्णव धर्म के भक्ति योग के भी प्रचारक हैं । इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी । चैतन्य महाप्रभु ने भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया।
वे कृष्ण-भक्त थे। उन्होंने कृष्ण भक्ति का प्रचार आम जनता में कीर्तन के द्वारा आरम्भ किया। मुस्लिम शासक हुसैन शाह और मुल्लाओं को हिन्दुओं का यह धार्मिक प्रचार अच्छा नहीं लगा। उन्होंने हिन्दुओं पर कहर बरपा दिया। एक दिन चैतन्य प्रभु के शिष्य कीर्तन कर रहे थे। मुल्ला ने कुछ मुस्लिम युवकों को लेकर उन पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने कीर्तनकारियों को पीटा, उनके वाद्ययंत्र तोड़ दिए। नदिया के हिन्दू निवासियों का जीना कठिन हो गया। उन्हें तिलक लगाने और जनेउ पहनने से मना कर दिया. यदि कोई हिन्दू ऐसा करता तो उसका घर नष्ट कर दिया जाता। ज्ञानानन्द स्वामी चैतन्य मंगल में लिखते है, यदि किसी हिन्दू घर में शंख की ध्वनि सुनाई पड़ती तो उसका घर परिवार नष्ट कर दिया जाता । चेतन्य महाप्रभु मुसलमानों के इस कुकर्मों से बहुत दुःखी हुए। उन्होंने एक बहुत बड़ी कीर्तन मण्डली बनाई। काजी ने धमकी दी कि वह क्षेत्र के सारे हिन्दुओं को मलिया मेट कर देगा। कीर्तन में इकट्ठे हुए हजारों लोगों को देखकर काजी को नर्म होना पड़ा।
मुस्लिम बंगाल में चेतन्य प्रभु का जीवन संकट पूर्ण था। चैतन्य महाप्रभु द्वारा चलाई गई कृष्ण भक्ति के विस्तार का श्रेय उड़ीसा के हिन्दू राजा प्रताप रूद्र को जाता है। वह महाप्रभु का शिष्य बन गया था। चेतन्य महाप्रभु बंगाल छोड़ कर उड़ीसा चले गए थे। जगन्नाथ पुरी में वे लगभग बीस वर्ष रहे।

सुलतान हुसैन शाह का एक हिन्दू अफसर सनातन कृष्ण-कीर्तनमण्डली का सदस्य बन गया। एक दिन सुलतान ने उसे कीरतन में शामिल देख लिया। उसने आग बबूला होकर उड़ीसा पर आक्रमण करने का उसे आदेश दिया। सनातन ने निर्भीकता से उत्तर दिया तुम हमारे देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ते और हमारे धार्मिक स्थलों को नष्ट करते हों, इसलिए मैं इस युद्ध में शामिल नहीं हूंगा।’ सनातन जैसे असंख्य वीर हुए हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म-संस्कृति की रक्षा की हैं, जिनका इतिहास में नाम नहीं है। खेद है यदि उड़ीसा और विजयनगर साम्राज्यों के राजा परस्पर लड़कर शक्ति क्षीण न करते। दोनों इकट्ठे होकर मुसलमान शासकों का सामना करते तो भारत का नक्शा कुछ और तरह का होता।

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