ancient indian history

Akbar

अकबर
जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था।  अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था।
अकबर  का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था उसके  मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे नेहरु द्वारा लिखित,  मिथ्या कथा, ”डिस्कवरी ऑफ इण्डिया” में  अकबर को  महान बताया गया है  दर असल वह एक शैतान था।   धूर्त व क्रूर  अकबर  को महान’ कहकर, हम राजस्थान के वास्तविक महापुरूषों के साथ अन्याय कर रहे हैँ । अकबर को एक सर्वाधिक परोपकारी उदार, दयालु, सैक्यूलर और ना जाने किन-किन गुणों से सम्पन्न शहंशाह के रूप में लिखा  गया है, लेकिन सत्य यह है कि  अकबर को उसी के जीवनीकारों और उसी के द्वारा लिखवाये गये इतिहास से पहचाना जा सकता है । अकबर के इतिहास कार फतहनामा-ई-चित्तौड़ : अकबर में लिखते हैँ :

“हमने अपना बहुमूल्य समय अपनी शक्ति से, सर्वोत्तम ढंग से जिहाद, (घिज़ा) युद्ध में ही लगा दिया है और अमर अल्लाह के सहयोग से, जो हमारे सदैव बढ़ते जाने वाले साम्राज्य का सहायक है, अविश्वासियों के अधीन बस्तियों निवासियों, दुर्गों, शहरों को विजय कर अपने अधीनकरने में लिप्त हैं, कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग दे और तलवार के प्रयोग द्वारा इस्लाम के स्तर को सर्वत्र बढ़ाते हुए, और बहुत्ववाद के अन्धकार और हिंसक पापों को समाप्त करते हुए, उन सभी का विनाश कर दे। हमने पूजा स्थलों को उन स्थानों में मूर्तियों को और भारत के अन्य भागों को विध्वंस कर दिया है,, अल्लाह की ख्याति बढ़े जिसने, हमें इस उद्देश्य के लिए, मार्ग दिखाया और यदि अल्लाह ने मार्ग न दिखाया होता तो हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मार्ग ही न मिला होता!” अपने हरम को सम्पन्न व समृद्ध करने के लिए अकबर ने अनेकों हिन्दू राजकुमारियों के साथ बलात शादियाँ की और  धूर्त सैक्यूलरिस्टों ने इसे, अकबर की हिन्दुओं के प्रति स्नेह, आत्मीयता और सहिष्णुता के रूप में चित्रित करते  हैं।अकबर ने कभी भी, किसी भी मुगल महिला को,किसी भी हिन्दू को शादी में नहीं दिया । अकबर ने, युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों को अपने परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांगने व प्राप्त कर लेने की एक परिपाटी बना रखी थी। अकबर ने अपनी काम वासना की शांति के लिए गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया किन्तु एक अति वीरतापूर्ण संघर्ष के उपरान्त यह देख कर कि हार निश्चित है, रानी ने आत्म हत्या कर ली । राजपूत सरदारों और भील आदिवासियों द्वारा संगठित रूप में हल्दी घाटी में मुगलों के विरुद्ध लड़ा गया युद्ध मात्र एक शक्ति संघर्ष नहीं था बल्कि जेहादी इस्लामिक आतंकवाद व आतताईपन के विरुद्ध सशक्त हिन्दू प्रतिरोध ही था। राणाप्रताप के विरुद्ध अकबर के अभियानों के लिए सबसे बड़ा, सबसे अधिक, सशक्त प्रेरक तत्व था इस्लामी जिहाद की भावना, जिसकी व्याखया व स्पष्टीकरण कुरान की अनेकों आयतों ओर अन्य इस्लामी धर्म ग्रंथों में किया गया है।
हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना के  राजपूत, और राणा प्रताप के निमित्त राजपूत जब  परस्पर युद्ध कर रहे  थे तब  उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था तब अकबर की ओर से युद्ध कर रहे बदांउनी ने, अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाई जाये  ताकि शत्रु को ही आघात हो, और वह ही मरे , कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया था कि यह बहुत अधिक महत्व की बात नहीं कि गोली किस को लगती है क्योंकि यह सभी राजपूत  काफ़िर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।”
वास्तव में अकबर एक चालाक राजनीतिज्ञ और   दूरदर्शी शासक सिद्ध हुआ। बाबर और हुमायू के राज्य की अस्थिरता का कारण उसकी समझ में आ गया था। शासक मुसलमान थे, प्रजा हिन्दू। मुगल साम्राज्य की नींव भी हिन्दू प्रजा की सद्भावना पर दृढ़ की जा सकती थी। उसने हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्त किया। राजा टोडरमल, बीरबल, राजा मान सिंह, आदि शासन के दृढ़ स्तम्भ बन गए थे। उनके पूर्ववर्ती मुस्लिम शासकों पर उल्माओं काजियों और मौलवियों का प्रभाव था। उन्हीं के हाथों न्याय और प्रशासन सौंपे हुए थे। वे हिन्दुओं पर मनमाना अत्याचार करते थे। अकबर ने न्याय-व्यवस्था की मुख्य शक्तियों अपने हाथ में ली। अन्तिम अपील वह स्वयं सुनता था। उसने जजिया कर भी उठा दिया था। राजा टोडरमल के परामर्श से उसने अयोध्या का जन्मभूमि मन्दिर भी हिन्दुओं को लौटा दिया था। इन सब कार्यों का परिणाम यह हुआ कि मुगल साम्राज्य भारत में दृढ़ नीवों पर स्थापित हो गया और अकबर के पश्चात कई पीढ़ियों तक रहा। यह तब डावां डोल हुआ. जब औरंगजेब ने अकबर की नीति को अमूल वूल बदलकर उत्पीड़न की नीति पुनः अपना ली
वस्तुतः अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता को नीति के रूप में ही अपनाया था, विश्वास या उद्देश्य के रूप में नहीं। उसके शासन का उद्देश्य भी भारत में इस्लाम फैलाने का रहा। सहनशीलता को केवल अधिक प्रभावी साधन के रूप में स्वीकार किया गया था। हिन्दुओं के कुछेक दूरदर्शी नेता मुगलों की वास्तविक नीति को समझते थे। इसलिए राणा प्रताप जैसे वीर राजपूत असहनीय यातनाएं सहकर भी अकबर की अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए। ऐसे नेता जनता के श्रद्धाभाजन बन गए। दूसरी ओर जिन मानसिंह जैसे राजपूतों ने मुगलों को बहिन-बेटी देकर उच्च पद प्राप्त किए थे, वे जनता की दृष्टि से गिर गए। उनका अन्य राजपूतों ने बहिष्कार कर दिया। मान सिंह के वंशज आज भी अपने नाम के साथ मान सिंह लगाते हैं। स्वाभिमानी राजपूत आज भी उनके साथ वैवाहिक सम्बंध नहीं रखते।
3 अक्टूबर 1605 को, अकबर पेचिश के हमले से बीमार पड़ गया, जिससे वह कभी उबर नहीं पाया। ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु 26 अक्टूबर 1605 को हुई थी। उन्हें सिकंदरा, आगरा में उनके मकबरे में दफनाया गया था  जो उसकी पसंदीदा और मुख्य पत्नी मरियम-उज़-ज़मानी की कब्र के बगल में एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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