ancient indian history

Hindu Mahasabha

हिन्दू महासभा

भारत के हिन्दुओं को संगठित करने के लिए “हिन्दू महासभा” बनाई गई। सन् 1902 ई० में दरभंगा के राजा की अध्यक्षता में दिल्ली में इसकी बैठक हुई। जिसमें हिन्दुओं की समस्याओं को हल करने के विषय पर विचार किया गया।
सन् 1902 ई0 में ”भारत धर्म महा मण्डल” के अन्तर्गत कई हिन्दू संस्थाएँ जुड़ी और एक संविधान तैयार किया गया इसका मुख्य केन्द्र बनारस में बनाया गया। सन् 1912 ई० में दरभंगा के राजा अध्यक्ष तथा मदन मोहन मालवीय इसके प्रमुख सदस्य थे। 14 अगस्त, 1923 ई० में बनारस में हिन्दू महासभा का अधिवेशन हुआ। मुसलमानों द्वारा मुलतान तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं का कत्ले आम तथा स्त्रियों का अपमान इस सम्मेलन के मुख्य विषय थे। इस सम्मेलन में सिक्ख, बौद्ध, जैन, वैष्णव, आर्यसमाजी आदि सभी मतों के लगभग 1500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। अर्थात् इसाई और मुस्लमानों के अतिरिक्त सभी थे। हिन्दू संगठन, शुद्धि, अछूतोद्धार के प्रचार के लिए दिल्ली से तीन समाचार पत्र निकाले गए। अंग्रेजी में “हिन्दुस्तान टाइम्स ” उर्दू में तेज और हिन्दी में अर्जुन हिन्दुस्तान टाइम्स” को मदन मोहन मालवीय ने अकालियों से ले लिया था। मदन मोहन मालवीय ने सन् 1916 ई0 में बनारस विश्व विद्यालय की स्थापना की तथा कठोर परिश्रम किया। हिन्दू धर्म और संस्कृति के विस्तार की यह एक अनुपम उदाहरण है।
सन् 1925 ई० में डा० केशव राम बलिराम हेडगेवार द्वारा विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गठन किया गया। डॉ० हेडगेवार बचपन से ही स्वाभिमानी थे। पाठशाला में विदेशी शासको को लेकर कोई उत्सव मनाये जाते तो वे उनमे भाग नहीं लेते थे। सन 1905 ई० मे वंदे मातरम् आदोलन के समय उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया था। उन्होने नागपुर से बाहर किसी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात् डाक्टरी की शिक्षा कलकता मे पूरी की। 1920 तथा 1931 ई० में महात्मा गाधी द्वारा चलाये गये सत्याग्रह आंदोलनों में भी उन्होंने भाग लिया और जेल यात्राएं की। महात्मा गांधी ने डाक्टर साहिब से पूछा, काग्रेस मे रहकर स्वयं सेवको का दल क्यो नहीं खड़ा किया, अलग क्यो शुरु किया?” उनका उत्तर था
”मैं निस्वार्थी, समर्पित, कर्मठ स्वयं सेवक तैयार करना चाहता हूँ। राजनैतिक दल के अंग बनकर यह सम्भव नहीं होगा। स्वयं सेवको ने सदैव डाक्टर साहिब के सपनों को साकार किया। सन 1947 ई० मे देश विभाजन के समय अंसख्य हिन्दुओ को सुरक्षित स्थानो पर पहुँचाने का कार्य अपनी जान हथेली पर रखकर उन्होने किया। आचार्य विश्वबधु भी डी० ए० बी० कालिज, लाहौर के पुस्तकालय भारत में लाने का श्रेय स्वंय सेवको को देते थे। गोआ मुक्ति के लिये इनके बलिदान अद्वितीय है। भारत माता के किसी कोने में संकट आने पर स्वयं सेवक सेवा कार्य के लिए तत्काल पहुच जाते है। चाहे बाढ़ की स्थिति हो, भूकम्प आये तथा आकाल पड़े, वे निस्वार्थ भाग से कार्य सम्पन्न करते है। डॉ० हेडगेवार ने स्पष्ट कहा कि संघ का काम हिन्दुओं को संगठित करना है। स्वदेशी आन्दोलन ने भी भारत की राजनीति को प्रभावित किया। छात्रों को कैद किया गया। कइयों को स्कूल-कालिजों से निकाल दिया, उनके उपर मुकदमें चलाए गए। 16 वर्ष का खुदी राम बोस और प्रफुल्ल चांकी कलकत्ता से मुज्जफरपुर जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिए गए। इस जज ने स्वदेशी आंदोलन के स्वयं सेवकों को सख्त सजांए दी थी। खुदी राम बोस को फांसी की सजा हुई। प्रफुल्ल कुमारी ने गोली मार कर आत्म
हत्या कर ली। लाला लाजपत राय पर जोहन सांडरस के आदेश द्वारा लाठी प्रहार किया गया था, जो उनकी मृत्यु का कारण बना। सरदार भगत सिंह व राज गुरु ने अपने नेता की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया। उन्होंने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली के असेम्बली हाल में दो बम फेंके। वे दोनों भागे नहीं। उन्होंने पहले ही यह निर्णय किया हुआ था कि भागना नहीं। ”ब्रिटिश सत्ता को हम चैन की नींद नहीं सोने देंगे।” उनके विरूद्ध मुकदमा चलाया गया। सरदार भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी की सजा हुई। सरदार भगत सिंह डी०ए०वी० कॉलेज, लाहौर के विद्यार्थी थे। उनमें मातृभूमि पर मर मिटने का अदभ्य साहस भरा था । सुखदेव अपने चाचा लाला अचिन्त राम के प्रभाव से स्वतन्त्रता युद्ध में कूदे थे। जतिन दास ने 64 दिन के लम्बे व्रत के बाद 13 सितम्बर, 1929 को मृत्यू को गले लगाया। 1924 ई० में चन्द्रशेखर आजाद ने “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का कानपुर में गठन किया। इस संस्था का उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह के द्वारा आजादी प्राप्त करना था। इस संस्था की शाखाएँ पंजाब, बिहार, मदास, उत्तर प्रदेश आदि कई प्रान्तों में फैल गई। चन्द्रशेखर के अतिरिक्त सूर्य सेन, भूपेन्द्र नाथ दत्त, हेमचन्द्र, अशफाक उल्ला, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लहरी और रोशन लाल इस संस्था के प्रमुख सदस्य थे। इनके ऊपर मुकदमा चलाए गए। राम प्रसाद, रोशन लाल, राजेन्द्र नाथ और अशफाक उल्ला को फांसी दी गई। सभी ने खुशी-2 मौत को गले लगाया। भारत माता को मुक्त कराने के लिए, गीता हाथ में लेकर रोशन लाल ने फांसी का फंदा अपने गले में डाला। उसके होंठों पर बंदे मातरम् था।
दिसम्बर, 1929 ई० में पं० जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें पूर्ण स्वराज्य” का नारा बोला गया। 31 दिसम्बर की आधी रात्रि को रावी नदी के किनारे पर तिरंगा झण्डा लहराया गया। ‘बन्दे मातरम्” और “इन्कलाब जिन्दाबाद’ से आकाश गूंजने लगा। नेताओं द्वारा घोषणा की गई कि 26 जनवरी को प्रति वर्ष स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाएगा ।
26 जनवरी 1930 ई० को समस्त भारत में स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया। 13 मार्च, 1940 ई0 को उधम सिंह ने पंजाब के पूर्व लै० गवर्नर माईकल डायर का वध कर दिया। उधम सिंह को मृत्यु दण्ड दिया गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन
यह आंदोलन देशव्यापी था। इसमें स्कूलों-कॉलेजों के छात्र-छात्राओं, गांव के किसानों आदि सभी ने भाग लिया। 11-12 अगस्त 1942 ई० को सरकार की ओर से गोलियाँ चलाई गई। अकेली दिल्ली में 76 लोग मरे, 100 गम्भीर रूप से घायल हुए। लगभग 1 लाख व्यक्ति जेलों में घूंसे गए। महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण राम मोहन लोहिया आदि नेता लोग भी पकड़ गए।
विश्व हिंदू परिषद् –
19 अगस्त, 1964 ई० को जन्माष्टमी के दिन विश्व हिन्दु परिषद की स्थापना संदीपनी साधनालय, मुम्बई में हुई। इस संस्था का उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशों में बसे हुए हिंदुओं को धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर संगठित करना, भाषा, क्षेत्र सम्प्रदाय के कारण उत्पन्न भेद-भावों को खत्म करना, अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार व संरक्षण करना, गोमाता की रक्षा आदि। कई पूर्ण कालिक नवयुवक- युवतियां पिछड़े व अविकसित क्षेत्रों में लोगों का जीवन स्तर उंचा करने के लिए कार्यरत है।

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