यूनान के दार्शनिक 1. पयथागोरस पयथागोरस यूनान का दार्शनिक और गणितज्ञ था. उसका जन्म लगभग 580 ई0 पूर्व समोस द्वीप में हुआ था। बाद में यह इटली के ‘क्रोटोना” नगर में बस गया। वहां उसने भातृत्व नामक संस्था बनाई। यह संस्था सम्पन्न और सुसंस्कृत लोगों की थी। आम जनता इस संस्था के विरुद्ध हो गई। इस संस्था के कई सदस्यों का लोगों ने संहार कर दिया। यह घटना लगभग 529 ई० पूर्व घटी थी। इतिहासकार नहीं जानते कि उसी नरसंहार में पयथागोरस भी मारा गया या वंहा से बच निकला। पयथागोरस के अनुसार आत्मा असर है । मृत्यु के पश्चात् वह दूसरे शरीर में पशु योनि में भी प्रवेश कर सकती है। स्पष्ट है कि हिन्दू संस्कृति से विश्व के सभी विद्वान प्रभावित थे। 2. सुकरात – सुकरात यूनानी दार्शनिक और प्रतिष्ठित शिक्षक था। उसने अपने जीवन के विषय में कुछ नहीं लिखा। उसके शिष्य प्लैटो तथा प्लैटो के शिष्य अरस्तु व अन्य लोगों के लेखों से ही जानकारी मिलती है। सुकरात का जन्म अदन में 469 ई० पूर्व हुआ था। उस की पत्नी बहुत कर्कशा थी। उसका दुर्व्यवहार असहनीय था। सुकरात ने अनुभव किया कि बुराई और कुकृत्यों का कारण अज्ञानता है। उसने अपना सम्पूर्ण जीवन सत्यता और भलाई में लगा दिया। वह गलियों, बाजारों में लोगों को प्रवचन देता, प्रश्न पूछता, परन्तु उनके उत्तरों पर उसे सन्तोष न होता। अदन में उसके कई अनुयायी बन गए। परन्तु बहुत से लोग उसके प्रगतिशील विचारों से सहमत नहीं थे। उन्होंने सुकरात पर दोष लगाया कि वह धर्म और लोगों की विचारधारा के विरुद्ध है और युवा वर्ग को कुमार्ग पर ले जा रहा है। इसलिए प्रभावशाली अदनवासी उसके विरुद्ध हो गए। सुकरात भाग कर बच सकता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया और 399 ई० पूर्व में सहर्ष मौत को गले लगाया। उसके सदाचारी जीवन और साहसिक मृत्यु ने उसे इतिहास में अमर कर दिया। यह सदैव अपने शिष्यों को आदर्शवादी बनने की शिक्षा देता था। सुकरात के अनुसार जो व्यक्ति शासन करने के योग्य हो उसे ही शासक होना चाहिए। 3. प्लेटो प्लेटो का जन्म 427 ई० पूर्व और मृत्यु 347 ई० पूर्व हुई। वह प्राचीन युनान का एक दार्शनिक, शिक्षक, वैचारिक और लेखक था। धनी लोगों के वर्ग में उसके दो नातेदार थे। वे प्लेटो को अपने साथ राजनीति में लेना चाहते थे। परन्तु उनकी निर्दयता और तानाशाही रवैये के कारण प्लेटो बहुत दुःखी था। सन् 403 ई0 में अदन वासियों ने तानाशाही समाप्त करके प्रजातन्त्र स्थापित कर दिया। सन् 399 ई0 पूर्व प्लैटो के शिक्षक सुकरात पर मुकदमा चला कर उसकी हत्या कर दी गई थी। क्षुब्ध प्लैटो अदन छोड़कर कई वर्ष इधर-उधर घूमता रहा। 387 ई० पूर्व वह अदन लौटा और एक बगीचे में उसने अकादमी खोल ली जिसमें गणित और राजनीति पर शोधकार्य होने लगा। वह अधिक समय अकादमी में ही रहता। प्लैटो के अनुसार आत्मा अमर है। मृत्यु से शरीर नष्ट हो जाता है परन्तु आत्मा नहीं। मृत्यु के पश्चात् आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है। कुछ समय पश्चात् आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश पाती है। परन्तु परमात्मा से मिलने के लिए उसकी तड़प बनी रहती है। 4. अरस्तु : अरस्तु का जन्म 384 ई0 पूर्व हुआ। इसका पिता मकदूनिया के शासक का चिकित्सक था। यह प्लेटो का शिष्य था। प्लेटो और अरस्तु युनानी दार्शनिकों में से प्रमुख समझे जाते है । 18 वर्ष की अवस्था में अरस्तु ने प्लेटो की अकादमी में दाखिला लिया और बीस वर्ष यहां रहा। प्लेटो के अनुसार यह बहुत मेधावी छात्र था। प्लेटो की मृत्यु के पश्चात् 347 ई० पूर्व अरस्तु ने अकादमी छोड़ दी और अकादमी के पूर्व छात्र हरमीज के पास चला गया। हरमीज उस समय ऐशिया माइनर का शासक बन गया था। उसकी गोद ली बेटी के साथ अरस्तु का विवाह हो गया । 343 ई0 पूर्व मकदूनिया के शासक जनरल फिलिप-2 ने अरस्तु को अपने बेटे सिकन्दर का शिक्षक नियुक्त कर दिया। सात वर्ष तक सिकन्दर ने उससे शिक्षा प्राप्त की। 334 ई० पूर्व अरस्तु अदन लौट आया। एक वर्ष पश्चात् सिकन्दर की मृत्यु हो गई। अरस्तु सिकन्दर का शिक्षक था और सिकन्दर ने अदन पर आक्रमण किए थे। इसलिए अदन के लोग अरस्तु को अच्छा नहीं समझते थे। उन्होंने अरस्तु पर दोषारोपण किया कि वह देवताओं का आदर नहीं करता। ऐसा ही ३११ ई० में अदनवासियों ने सुकरात पर दोष लगाकर उसकी हत्या कर दी थी अत: अरस्तु यहां से भाग निकला। 322 ई० पूर्व उसकी मृत्यु हो गई। अरस्तु की कुछ शिक्षाएँ सर्व साधारण के लिए थी, जो अकादमी से बाहर सिखाई जाती था । वे बची नहीं है । कुछ शिक्षाएँ स्कूल के भीतर पढ़ाई जाती थी। वह पुस्तकों के रूप में थी। कुछ शोध सामग्री और ऐतिहासिक रिकार्ड थे, जो अरस्तु और उसके शिष्यों द्वारा तैयार किए गए थे। इनमें से कुछ बचे हैं, अधिकतर नष्ट हो गए हैं।