अंधेरे बहुत हैं
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
धुन्धला धुन्धला
अब संसार दिखने लगा
उम्र का यह पड़ाव भी
तकदीर लिखने लगा
हर दिशा पे मुसीबतों का ही डेरा है
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
आज मेरे ही अंग दगा दे रहें हैं
मुश्किलों की कतार दिखाई दे रही हैं
हर कतार में दुश्मनो का बसेरा है
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
वाह खुदा तूने यह क्या वृदावस्था बनाई
जवानी में भूल याद करने की अवस्था बनाई
पहुँच चूका उस मुकाम पर
जहां कुछ भी नहीं मेरा है
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
आज मैं थक गया हूँ कोई मुझे संभालो
सर्द बर्फ बदन है मेरा
कोई इस पर चादर डालो
मेरी डगर में नफरत के
बीजों का भरमार डेरा है
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
वक़्त की रफ़्तार से घिसता
एक निराश इंसान
हर कदम उठता जिस और
थे कई वीरान शमशान
रूह मेरी को घायल कर
नोकीले काँटों का पहरा है
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
मुश्किल ज़िन्दगी मुश्किल लोग
कोई तो हल निकालो
जलती चिता और मेरे
झुलसते बदन पर घी डालो
वक्त आखरी लमहों
में बिल्कुल अकेला है
अंधेरे बहुत हैं और कम सवेरा है
क्या करें वृद्धावस्था ने आ घेरा है
~मोहन अलोक